Bhagavata Purana PDF in Hindi – भविष्य पुराण हिंदी

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सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान् श्रीकृष्णको हम नमस्कार करते हैं, जो जगत्की उत्पत्ति, स्थिति और विनाशके हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक तीनों प्रकारके वापों का नाश करनेवाले है॥ १ ॥ जिस समय श्रीशुकदेवजीका यज्ञोपवीत-संस्कार भी नहीं हुआ था तथा लौकिक-वैदिक कर्मकि अनुष्ठानका अवसर भी नहीं आया था, तभी उन्हें अकेले ही संन्यास लेनेके लिये घरसे जाते देखकर उनके पिता व्यासजीविरहसे कातर होकर पुकारने लगे- बेटा बेटा तुम कहाँ जा रहे हो ?’

Bhagavata Purana PDF book

Name of Book Bhagavata Purana
PDF Size 63.1 MB
No of Pages 977
Language  Hindi
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About Book – Bhagavata Purana PDF Book

उस समय वृक्षोंने तन्मय होनेके कारण श्रीशुकदेवजीको ओरसे उत्तर दिया था ऐसे सर्वभूत-हृदयस्वरूप श्रीशुकदेवमुनिको में नमस्कार करता हूँ॥ २ ॥ एक बार भगवत्कथामृतका रसास्वादन करनेमें कुशल मुनिवर शौनकजीने नैमिषारण्य क्षेत्रमें विराजमान महामति सूतजीको नमस्कार करके उनसे पूछा ॥ ३॥ सोनकजी बोले- सूतजी ! ज्ञान आपका अनारको नष्ट करनेके लिये करोड़ों सूर्यकि समान है। आप हमारे कानोंके लिये रसायन- अमृतस्वरूप सारगर्भित कथा कहिये ॥ ४॥

भक्ति, ज्ञान और वैराग्यसे प्राप्त होनेवाले महान् विवेककी वृद्धि किस प्रकार होती है तथा लोग किस तरह इस माया-मोहसे अपना पीछा ५ इस घोर कलिकालमेव प्रायः आसुरी स्वभाव हो गये है, विविध क्लेशोंसे आक्रान्त इन जीवको शुद्ध (दैवीशक्तिसम्पत्र) बनानेका सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है ? ।। ।। भगवान्का योगदुर्लभ नित्य वैकुण्ठ धाम दे देते हैं ॥ ८ ॥ सूतजीने कहा-शौनकी तुम्हारे हृदय भगवान्‌का प्रेम है, इसलिये में विचारकर तुम्हें सम्पूर्ण सिद्धान्तनिष्क सुनता हूँ, जो जन्म-मृत्यु का नाश कर देता है। ९।

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जो भक्त बढ़ता है और भगवान् श्रीकृष्णको प्रसन्नता प्रधान कारण है, तुम्हे वह साधन बतलाता हूँ उसे न होकर सुनो ॥ १० ॥ श्रीशुकदेवजने कलियुगमें जोयोंके काल- रूपी सर्पर्क मुखका प्राप्त होने का आत्यन्तिक नाश करनेके लिये श्रीमद्भागवतशास्त्रका प्रवचन किया है ॥ ११ ॥ मनको शुद्धिके लिये इससे बढ़कर कोई साधन नहीं है। जब मनुष्यके जन्म-जन्मान्तरका पुण्य उदय होता है, तभी उसे इस भागवतशास्त्र की प्राप्ति होती है।

जब शुकदेवजी राजा परीक्षित्‌को यह कथा सुचनेके लिये सभामें विराजमान हुए, तब देववालोग उनके पास अमृतका कलश लेकर आये ॥ १३ ॥ देवता अपना काम बनाने में बड़े कुशल होते है अतः यहाँ भी सबने शुकदेवमुनिको नमस्कार करके कहा, ‘आप यह अमृत लेकर बदले में हमें कथामृतका दान दीजिये १४ इस प्रकार परस्पर विनिमय (अदला-बदली) हो जानेपर राज परीक्षित अमृतका पान करें और हम सब श्रीमद्भागवतरूप अमृतका पान करेंगे ॥ १५ ॥

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इस संसार कहाँ कोच और कहाँ महामूल्य मणि तथा कहाँ सुधा और कहाँ ? श्रीशुकदेवजीने (यह सोचकर उस समय देवताओंकी हंसी उड़ा दी ॥ १६॥ उन्हे भक्तिशून्य (कथास अधिकारी) जानकर कथामृतका दान नहीं किया। इस दुर्लभ है॥ १७ ॥ सूतजी आप हमे कोई ऐसा शासनको कथा देवओको भी बताइये, जो सबसे अधिक कल्याणकारी तथा पवित्र करनेवालोंमें भी चित्र हो तथा जो भगवान् श्रीकृष् प्राप्त है। चिन्ता केवल लौकिक सुख दे सकती है और कल्पवृक्ष अधिक-से-अधिक वर्गीय

पूर्णाश्रम परीक्षक मुक्ति देखकर भी बड़ा आर्य हुआ था। उन्होंने सत्यत्येक तराजू बांधकर सब व सम्मति दे सकता है; पस्तु देव नोकरीला १८ ॥ अन्य सभी में हल्के पड़ गये, अपने महत्वके कारण भागवत ही सबसे भारी रहा। यह देखकर सभी ऋषियोंको बड़ा विस्मय हुआ ।। १९ । उन्होंने कलियुगमे इस भगवदुप भागवतशास्त्रको हो पढ़ने-सुननेसे तत्काल मोक्ष देनेवाला निक्षय किया ॥ २० ॥

सप्ताह-विधिसे श्रवण करनेपर यह निक्षय भक्ति प्रदान करता है। पूर्वकालमें इसे दयापरायण सनकादिने देवर्षि नारदको सुनाया था ॥ २१ ॥ यद्यपि देवपिन पहले ब्रह्माजीके मुखसे इसे श्रवण कर लिया था, तथापि सप्ताहश्रवणकी विधि तो उन्हें सनकादिने ही बतायी थी॥ २२ ॥ शौनकजीने पूछा- सांसारिक प्रपशसे मुक्त एवं विचरणशील नारदजीका सनकादिके साथ संयोग कहाँ हुआ और विधि-विधान के श्रवणमें उनकी प्रोति कैसे हुई? ॥। २३ ।। Bhagavata Purana PDF Book

सूरुजीने कहा- अब मैं तुम्हें वह भक्तिपूर्ण कथानक सुनाता हूँ, जो श्रीशुकदेवजीने मुझे अपना अनन्य शिष्य जानकर एकान्तमें सुनाया था ॥ २४ ॥ एक दिन विशालपुरी के चारों निर्मल ऋषि सलङ्गके लिये आये। उन्होंने नारदजीको देखा ॥ २५ ॥ सनकादिने पूछा- ब्रह्मन् ! आपका मुख उदास क्यों हो रहा है? आप चिन्तातुर कैसे है? इतनी जल्दी-जल्दी आप कहाँ जा रहे हैं? और आपका आगमन हो रहा है? ॥ २९ ॥

इस समय तो आप उस पुरुष सम्मान व्यामुरत जान पड़ते हैं जिसका सारा जैसे पुरुषोंके लिये यह उचित नहीं है। इसका कारण बताइये ॥ २७ ॥ नारदी (भाषिक, और आदि उरा किन्तु मुझे २८-३० जानकर कथामृत दान नहीं। इस प्रकार यह श्रीमद्भागवतकी कथा देवताओंको भी दुर्लभ है ।॥ १७ ॥ पूर्वकाल श्रीमद्भागवतके से ही राजा परीक्षितकी मुक्ति देखकर ब्रह्माजीको भी बड़ा आर्य हुआ था। उन्होंने सत्यलोकमे तराजू बांधकर सब साधनों को तौला ॥ १८ ॥ अन्य सभी साधन तौलमें हल्के

अ- १ पाखण्डी हो गये हैं; देखने में तो वे विरक्त है, किन्तु स्त्री-धन आदि सभीका परिग्रह करते हैं। घरोत्रियोंका राज्य है, साले सलाहकार बने हुए हैं, लोभसे लोग कन्या विक्रय करते हैं और स्त्री-पुरुषोंमें कलह मचा रहता है। ॥ ३१-३३ ॥ महात्माओंकि आश्रम, तीर्थ और नदियोंपर यवनों (विधर्मियोंका) अधिकार हो गया है; उन दुष्टो बहुत से देवालय भी नष्ट कर दिये हैं॥ ३४ ॥ इस समय यहाँ न कोई योगी है न सिद्ध है न ज्ञानी है और न सत्कर्म करनेवाला ही है सारे साधन इस समय कलिरूप | Bhagavata Purana PDF Book

दावानलसे जलकर भस्म हो गये हैं॥ ३५॥ इस कलियुगमें सभी देशवासी बाजारोंमें अन्न बेचने लगे हैं. ब्राह्मणलोग पैसा लेकर वेद पढ़ाते हैं और स्त्रियों वेश्यावृत्तिसे निर्वाह करने लगी है ॥ ३६ ॥ इस तरह कलियुगके दोष देखता और पृथ्वीपर विचरता हुआ में यमुनाजीके तटपर पहुंचा, जहाँ भगवान् श्रीकृष्णकी अनेकों लीलाएँ हो चुकी है ॥ ३७ ॥ मुनिवरो सुनिये, वहाँ मैने एक बड़ा आर्य देखा। वहाँ एक युवती स्त्री खित्र मनसे बैठी थी ॥ ३८ ॥

उसके पास दो वृद्ध पुरुष अचेत अवस्थामें पड़े जोर-जोर से साँस ले रहे थे। वह तरुणी उनकी सेवा करती हुई कभी उन्हें करानेवर प्रथम करती और कभी उनके आगे देने लगती थी ॥ ३९ ॥ वह अपने शरीर के रक परमात्माको दस दिशाओंगे देख रही थी। उसके चारों ओर सैकड़ों खि उसे पंखा झल रही थी और बार-बार समझी जाती श्रीं ॥ ४० ॥ दूरसे यह सब चरित देखकर में कुल उसके पास चला गया। मुझे देखकर ही हो गयी और बड़ी होकर कहने लगी ॥ ४९ ॥

जो पुरुष लोक सम्पत्ति धन पर और पुत्रादिको चिन्ता छोड़कर शुद्धचित्तसे केवल कथामें ही ध्यान रखता है, उसे इसके श्रवणका उत्तम फल मिलता है ॥ ३७ ॥ बुद्धिमान् वक्ताको चाहिये कि सूर्योदयसे कथा आरम्भ करके साढ़े तीन पहरतक मध्यम स्वरसे अच्छी तरह कथा बाँचे ॥ ३८ ॥ दोपहर के समय दो घड़तक कथा बंद रखे। उस समय कथाके प्रसङ्गके अनुसार वैष्णवोंको भगवान्के गुणों कीर्तन करना चाहिये व्यर्थ बाते नहीं करनी चाहिये ।। ३९ ।। Bhagavata Purana PDF Book

कथाके समय मल-मूत्र वेगको काबू में रखनेके लिये अल्पाहार सुखकारी होता है; इसलिये श्रोता केवल एक ही समय हविष्यात्र भोजन करे ॥ ४० ॥ यदि शक्ति हो तो सातों दिन निराहार रहकर कथा सुने अथवा केवल घी या दूध पीकर सुखपूर्वक श्रवण करे ।। ४१ ।। अथा फलाहार या एक समय ही भोजन करे जिससे जैसा नियम सुभीते से सच है ॥ ५५ ॥ 1 सके, उसीको कथाश्रवण के लिये ग्रहण करे ॥ ४२ ॥

मै तो उपवासको अपेक्षा भोजन करना अच्छा समझता हूँ, यदि यह कथाश्रवणमे सहायक हो। यदि उपवाससे [कथा] पहुंचती हो तो वह किसी ant नहीं ४३ ॥ नारदजी नियमसे सप्ताह सुननेवाले पुरुषोंकि नियम सुनिये विष्णुभक्तकी दीक्षासे रहित पुरुष कथाश्रवणका अधिकारी नहीं है ॥ ४४ ॥ जो पुरुष नियमसे कथा सुने, उसे ब्रह्मचर्य से रहना, भूमिपर सोना और नित्यप्रति कथा समाप्त होनेपर पतलमे भोजन करना चाहिये ॥ ४५ ॥

दाल, मधु, तेल गरि अत्र भादूषित पदार्थ और बासी नाही याग करना चाहिये ॥ ४६॥ काम, क्रोध, मद, मान, मार, लोभ, दम्भ, मोह और तो अपने पास भी नहीं फटकने देना चाहिये ॥ ४० ॥ वह बह्मण, गुरु, गोसेवक तथा स्त्री, राजा और महापुरुषको निन्दामे भी ४८ ॥ नियमसे कम सुननेवाले पुरुषको नहीं दया मौर, सरलता, विन एक को क्योंकि महार होकर शक्ति न होनेके लिये को दान करे तथाको रियोको दूर करनेके लिये ॥ Bhagavata Purana PDF Book Download

फिर श्री अयनले पनि योजनाधार गयी हो, उसके दोष शान्तिके लिये करने को न माननेवाले पुरापठ करे। सभी कर्मफल होते है इसके और चाहिये ॥ ५० ॥ धनहीन, क्षयरोगी, किसी अन्य रोग पीड़ित, भाग्यहीन, पापी, पुरहीन और मुशु भी यह कथा श्रवण करे ॥ ५१ ॥ जिस रजोदर्शन रुक गया हो, जिसके एक ही संतान होकर रह गयी हो, जो हो, जिसको संतान होकर मर जाती हो अथवा जिसका गर्म गिर जाता हो, वह यलपूर्वक इस कथाको सुने ।। ५२ ।।

ये सब यदि विधिवत् कथा सुने तो इन्हें अक्षय प्राप्ति हो सकती है। यह अत्युत्तम दिव्य कथा करोड़ों यशोंका फल देनेवाली है ॥ ५३ ॥ इस प्रकार इस व्रतको विधियोंका पालन करके फिर उद्यापन करे जिन्हें इसके विशेष फलको इच्छा हो, ये जन्माष्टमी व्रतके समान ही इस कथाव्रतका उद्यापन करें ॥ ५४ ॥ किन्तु जो भगवान्‌के अकिञ्चन भक्त है, उनके लिये उद्यापनका कोई आग्रह नहीं है। वे से ही पवित्र है॥

क्योंकि वे तो निष्काम भगवद्भक्त इस प्रकार जब सप्ताह समाप्त हो जाय तब श्रोताओंको अत्यन्त भक्तिपूर्वक पुस्तक और वक्ताको पूजा करनी चाहिये ॥ ५६ ॥ फिर बक्ता श्रोताओको प्रसाद तुलसी और प्रसादी मालाएँ दे तथा लोग और झाँझको मनोहर ध्वनिसे सुन्दर कीर्तन करें ॥ ५७ ॥ जय-जयकार, नमस्कार और शङ्खध्वनि घोष कराये तथा ब्राह्मण और याचकोंको धन और दे ५८ श्रोता विरक्त हो तो कर्मको शान्तिके लिये दूसरे दिन गीतापाठ करे गृहस्य हो तो हरे ५१ उस हवनमें दशमस्कन्धका एक-एक लोक विधिपूर्वक खोर, मधु, तिल और आदि आत दे॥ ६० ॥ Bhagavata Purana PDF Book Download

कहते है-शौनकादि ब्रह्मवादी ऋषियोंके ये प्रश्न सुनकर रोमहर्षणके पुत्र उग्रश्रवाको बड़ा ही आनन्द हुआ। उन्होंने ऋषियोंके इस मङ्गलमय प्रश्नका अभिनन्दन करके कहना आरम्भ किया ॥ १ ॥ यशेोपवीत संस्कार भी नहीं हुआ था, सुतरां लौकिक- वैदिक कर्मक अनुष्ठानका अवसर भी नहीं आया था, उन्हें अकेले हो संन्यास लेनेके उद्देश्यसे जाते | देखकर उनके पिता व्यासजी विरहसे कातर होकर पुकारने सूतजीने कहा- जिस समय श्रीशुकदेवजीका लगे- ‘बेटा! बेटा!’ उस समय तन्मय होनेके कारण ॥

श्रीशुकदेवजीको ओरसे उत्तर दिया। ऐसे सबके हृदयमें विराजमान श्रीशुकदेव मुनिको मैं नमस्कार करता हूँ ॥ २ ॥ यह श्रीमद्भागवत अत्यन्त गोपनीय रहस्यात्मक पुराण है। यह भगवत्स्वरूपका अनुभव करानेवाला और उमस्त वेदोंका सार है। संसारमे फँसे हुए जो लोग इस घोर अज्ञानान्धकारसे पार जाना चाहते हैं, उनके लिये आध्यात्मिक तत्त्वोको प्रकाशित करानेवाला यह एक अद्वितीय दीपक है। वास्तवमें उन्होंपर करुणा करके बड़े-बड़े मुनियोंके आचार्य श्रीशुकदेवजीने इसका वर्णन किया है।

मैं उनकी शरण ग्रहण करता हूँ ॥ ३ ॥ मनुष्योंमें सर्वश्रेष्ठ भगवान्के अवतार नर-नारायण ऋषियोंको, सरस्वती देवीको और श्रीव्यासदेवजीको नमस्कार करके तब संसार और अन्तःकरणके समस्त विकारोंपर विजय प्राप्त करानेवाले इस श्रीमद्भागवत महापुराणका पाठ करना चाहिये ॥ ४ ॥ ऋषियो! आपने सम्पूर्ण विसके कल्याणके लिये कोई भगवान नामसे पुकारते हैं। ११ मुनिजन भागवत-श्रवणसे प्राप्त ज्ञान-वैराग्ययुक्त भक्तिसे अपने हृदयमें उस परमतत्त्वरूप परमात्माका अनुभव करते हैं ।। १२ ।। Bhagavata Purana PDF Book Download

शौनकादि ऋषियो। यही कारण है कि अपने-अपने वर्ण तथा आश्रमके अनुसार मनुष्य जो धर्मका अनुष्ठान करते हैं, उसकी पूर्ण सिद्धि इसीमें है कि भगवान् प्रसन्न हो ॥ १३ ॥ इसलिये एकाग्र मनसे भक्तवत्सल भगवान्‌का हो नित्य निरन्तर श्रवण, कीर्तन, ध्यान और आराधन करना चाहिये ॥ १४ ॥ कमोंकी गाँठ बड़ी कड़ी है। विचारवान् पुरुष भगवान्‌के चिन्तनकी तलवारसे उस गाँठको काट डालते हैं तब भला. ऐसा कौन मनुष्य होगा, जो भगवान्की लीलाकथामे प्रेम न करे ॥ १५ ॥

शौनकादि ऋषियो पवित्र तीथका सेवन करनेसे महत्सेवा, तदनन्तर श्रवणकी इच्छा, फिर श्रद्धा, तत्पश्चात् भगवत्-कथामें रुचि होती है ॥ १६ ॥ भगवान् श्रीकृष्णके यह बहुत सुन्दर प्रश्न किया है; क्योंकि यह प्रश्र श्रीकृष्णके यशका श्रवण और कीर्तन दोनों पवित्र करनेवाले हैं। वे सम्बन्धमे है और इससे भलीभाँति आत्मशुद्धि हो जाती अपनी कथा सुननेवालोंके हृदयमें आकर स्थित हो जाते है ॥ ५ ॥ मनुष्योंकि लिये सर्वश्रेष्ठ धर्म वही है, जिससे हैं और उनकी अशुभ वासनाओं को नष्ट कर देते हैं॥

भगवान् श्रीकृष्ण भक्ति हो—भक्ति भी ऐसी, जिसमें क्योंकि वे संतोंके नित्यसुहृद् ॥ १७ ॥ जब श्रीमद्भागवत किसी प्रकारकी कामना न हो और जो नित्य-निरन्तर बनी अथवा भगवद्भक्तोंके निरन्तर सेवनसे अशुभ वासनाएँ रहे ऐसी भक्ति से हृदय आनन्दस्वरूप परमात्माकी नष्ट हो जाती है, तब पवित्रकर्ति भगवान् श्रीकृष्णके प्रति उपलब्धि करके कृतकृत्य हो जाता है ॥ ६॥ भगवान् स्थायी प्रेमकी प्राप्ति होती है ॥ १८ ॥ Bhagavata Purana PDF Book Download

तब रजोगुण और कृष्णभक्त होते ही अनन्य प्रेमसे उनमें चित्त जोड़ते तमोगुणके भाव काम और लोभादि शान्त हो जाते है ही निष्काम ज्ञान और वैराग्यका आविर्भाव हो जाता और चित्त इनसे रहित होकर सत्वगुणमें स्थित एवं निर्मल पुरुषरूप, जिसे नारायण कहते हैं, अनेक अवतारोंका अक्षय कोष है इसीसे सारे अवतार प्रकट होते हैं। इस रूपके छोटे-से-छोटे अंशसे देवता, पशु-पक्षी और मनुष्यादि योनियोंकी सृष्टि होती है ॥ ५ ॥

उन्हीं प्रभुने पहले कौमारस में सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार—इन चार ब्राह्मणकि रूपमें अवतार ग्रहण करके अत्यन्त कठिन अखण्ड ब्रह्मचर्यका पालन किया ॥ ६ ॥ दूसरी बार इस संसारके कल्याणके लिये समस्त यशोंके स्वामी उन भगवान्ने हो रसातलमें गयी हुई पृथ्वीको निकाल लानेके विचारसे सूकररूप ग्रहण किया ॥ ७ ॥ ऋषियोंकी सृष्टिमें उन्होंने देवर्षि नारदके रूपमें तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वत तन्त्रका (जिसे ‘नारद-पाञ्चरात्र कहते हैं) उपदेश किया॥

उसमें कर्मकि द्वारा किस प्रकार कर्मबन्धनसे मुक्ति मिलती है, इसका वर्णन है ॥ ८ ॥ धर्मपत्नी मूर्तिके गर्भ से उन्होंने नर-नारायणके रूपमें चौथा अवतार ग्रहण किया। इस अवतारमें उन्होंने ऋषि बनकर मन और इन्द्रियोंका सर्वथा संयम करके बड़ी कठिन तपस्या की ॥ ९ ॥ पाँचवें अवतारमें वे सिद्धोंक स्वामी कपिलके रूपमें प्रकट हुए और तत्त्वोंका निर्णय करनेवाले सांख्य-शास्त्रका जो समयके फेरसे लुप्त हो गया था, आसुरि नामक ब्राह्मणको उपदेश किया ॥ १० ॥ Bhagavata Purana PDF Book Free

अनसूयाके वर माँगनेपर छठे अवतार में वे अधिक सन्तान दत्तात्रेय हुए। इस अवतारमें उन्होंने अलर्क एवं प्रह्लाद आदिको ब्रह्मशानका उपदेश किया ॥ ११ ॥ सातवीं बार व प्रजापतिकी लिये बड़ा ही कल्याणकारी हुआ ॥ १४ ॥ चाक्षुष मन्वन्तरके अन्तमें जब सारी त्रिलोकी समुद्रमें डूब रही थी, तब उन्होंने मत्स्यके रूपमें दसवाँ अवतार ग्रहण किया और पृथ्वीरूपी नौकापर बैठाकर अगले मन्वन्तरके अधिपति वैवस्वत मनुको रक्षा की ।। १५ ।।

जिस समय देवता और दैत्य समुद्र मन्चन कर रहे थे, उस समय ग्यारहवाँ अवतार धारण करके कच्छपरूपसे भगवान्ने मन्दराचलको अपनी पीठपर धारण किया ॥ १६ ॥ बारहवीं बार धन्वन्तरिके रूपमें अमृत लेर समुद्रसे प्रकट हुए और तेरहवीं बार मोहिनीरूप धारण करके। दैत्योंको मोहित करते हुए देवताओंको अमृत पिलाया ॥ १७ ॥ चौदहवें अवतारमें उन्होंने नरसिंहरूप धारण किया और अत्यन्त बलवान् दैत्यराज हिरण्यकशिपुको छाती अपने नखोंसे अनायास इस प्रकार फाड़ डाली॥

जैसे चटाई बनानेवाला सौंफको चीरला है ।। १८ ।। पंद्रहवीं बार वामनका रूप धारण करके भगवान् दैत्यराज बलिके यज्ञमें गये। वे चाहते तो थे त्रिलोकीका राज्य, परन्तु माँगी उन्होंने केवल तीन पग पृथ्वी ॥ १९ ॥ सोलहवें परशुराम अवतारमें जब उन्होंने देखा कि राजा लोग ब्राह्मणोंक द्रोही हो गये हैं, तब क्रोधित होकर उन्होंने पृथ्वीको इस बार क्षत्रियोंसे शून्य कर दिया ॥ २० ॥ इसके बाद सत्रहवें अवतारमें सत्यवतोके गर्भसे पराशरजीके द्वारा ने व्यासके रूपमें अवतीर्ण हुए। उस समय लोगोकी समझ और धारणाशक्ति कम देखकर आपने वेदरूप वृक्षकी कई शाखाएं बना दी ॥ Bhagavata Purana PDF Book Free