Click here to Download Brihad Viman Shastra PDF Book in Hindi – संपूर्ण वृहद विमान शास्त्र हिंदी PDF in Hindi having PDF Size 13.1 MB and No of Pages 368.
समस्त सूत्रपाठ कहा है यह तो पता नहीं लगता, हां प्रारम्भ से क्रमशः १४ सूत्र तो इस में दिए हुए हैं, क्वचित् क्वचित् बीच में भी दिए हुए मिलते हैं और अव्यवस्थितरूप में किन्तु वृत्तिकार बोधानन्द के वृत्तिश्लोक ही मिलते हैं। वृत्तिकार बोधानन्द यति है। लगभग तीन सहस्र श्लोक इस में है और यह प्रन्थ २३ कापियों में प्राप्त हुआ है। इस मन्थ का काल क्या है यह कुछ नहीं बताया जा सकता है, मूलहस्त लेख हमें नहीं मिला किन्तु प्रतिलिपि (Transcript) हमें मिला है।
Brihad Viman Shastra PDF Book
Name of Book | Brihad Viman Shastra |
PDF Size | 13.1 MB |
No of Pages | 368 |
Language | Hindi |
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About Book – Brihad Viman Shastra PDF Book
ट्रांस्क्रिप्ट कापी १६१८ ई० की हमें बडोदा राजकीय संस्कृत लाईब्रेरी में मिली थी पुन १६१६ ई० की प्रतिलिपि (Transcript) यह अब मिली जो आज से ४० वर्ष पूर्व की है, इस्तकापी के मोटे कागज पुराने ढंग के हैं जो अन्य पक्के कागज की पट्टियों में चिपके हुए हैं। पूना कालिज ( से प्राप्त कापी ) के फिल्म फोटो भी प्राप्तहुए हैं उनपर लिखा है “गो वेकुटाचल शर्मा १६ ८ १६१६, ३-६-१६१६ तारीखें प्रति- लिपिकर्ता ने दी हैं।
सूत्रों में ही क्या श्लोकों में भी भाषा पुरानी जचती है, ‘एच’ धातु का प्रयोग बढने अर्थ में नहीं किन्तु प्राप्त होने अर्थ में जाता है” नाशमेघते, लयमेधते । सन्धिया भी आधुनिक ही नहीं आतीं। पतत्यदा, त्रग्राम०, एकमप्यदि, यन्त्राण्यथाक्रमम्, केन्द्र वात”: आदि प्रयोग आते हैं। ‘लोह- तन्त्र, दर्पणप्रकरण, शक्तितन्त्र’ आदि लगभग १०० पुरातन ग्रन्थों के उल्लेख भी दिए हैं।
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नारायण गालव आदि ३६ आचार्यों के नाम भी विमान कलाविषयक शास्त्रनिर्मातृत्व और मतप्रदर्शन के प्रसङ्ग में आए हैं जिनकी सूचि साथ में दी है। विमान में अनेक अप्रसिद्ध नवीन अद्भुत यन्त्र बनाकर रखने का विधान भी किया है। इस से मन्थ की पुरातनता प्रतीत होती है। विमान शब्द का अर्थ– महर्षि भरद्वाज के सूत्र और अन्य आचार्य विश्वम्भर आदि के मत में विपक्षी की भाति गति के मान से एक देश से दूसरे देश एक द्वीप से दूसरे द्वीप।
और एक लोक से दूसरे लोक को जो आकाश में उड़कर जानेवाला यान हो वह विमान कहा जाता है। एक लोक से दूसरे लोक में विमान पहुंचने महादेव महादेवी वाणी गणपति गुरुम् । शास्त्रकार भरद्वाज प्रणिपत्य यथामति ॥ १ ॥ बालाना सुखबोधाय बोधानन्दयतीश्वर । संग्रहाद वैमानिकप्रकरणस्य यथाविधि ॥ लिलेख बोधानन्यवृत्त्याख्या व्याख्या मनोहराम् ४ (शिकार)1पतित यथा, त्रियाम० एकमपि यदि, यन्त्राणि यथाक्रमम् केन्द्र बात० । वेगसाम्याद् विमानोण्डजानामिति ॥ भ० १ । १ ।
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Brihad Viman Shastra PDF Book
देशाद् देशान्तर तद्वद् द्वीपाद द्वीपान्तरं तथा । लोकाल्लोकान्तरं चापि योऽम्बरे मन्तुमर्हति । स विमान इति प्रोक्ता खेटशास्त्रविदा वरं ॥ (इति विश्वम्भरः) की कल्पना आज की ही नहीं किन्तु १६४३ ई० में तो हमने इसे अपनी बडोदावाली “विमानशास्त्र” नामक प्रकाशित पुस्तक में आज से १६ वर्ष पूर्व दिया था और उक्त लेख का ट्रास्किट (प्रतिलिपि) १६१८ ई० अर्थात् भाज से चालीस वर्ष पूर्व वर्तमान था पुन उस ट्रास्क्रिप्ट के मूल म्येनुम्किप्ट में न जाने कब का पुराना है।
अपितु मङ्गल, बुध, शुक्र आदि महों ओर नक्षत्रों की कक्षासन्धियों में आ विमान के जातिभेद- मान्त्रिक (योगसिद्धि से सम्पन्न), तान्त्रिक ( औषधयुक्ति एवं शक्तिमय वस्तुप्रयोग से सम्पन्न ), कृतक-यान्त्रिक (कला मशीन एजिन आदि से प्रयुक्त) ये तीन प्रकार के होते हैं। कृतक जाति में शकुन विमान (पक्षी के आकार का पंखपुच्छसहित विमान), रुक्म विमान (स्वनिज पदार्थों के योग से रुक्म अर्थात सोने जैसी मामा सम्पादित किए लोहे के बना बिमा सुन्दर विमान से धूप के आधार पर चलनेवाला जेट विमान) कहे हैं तथा त्रिपुर विमान (तीनों स्थल जल गगन मे चलने (तरने उडनेवाला विमान) आदि २५ कहे हैं । Brihad Viman Shastra PDF Book
विमान की गतियां भीर मार्ग– विमान की भिन्न भिन्न गतिया ‘चालन, कम्पन, ऊर्ध्वगमन, अधोगमन. मण्डल गति – चक्रगत- घूमगति, विचित्रगति, अनुलोमगति – दक्षिणगति, बिलो मर्गात – वामगति, पराङ्मुखगति, स्तम्भनगति, तितितिरीगतिविधिमा गति है जोकि योग से होती हैं। विमान के मार्ग आकाश में रेवापथ, मण्डल, कक्ष्य, शक्ति, केन्द्र, ये पाच कहे हैं। विमानगति के अवरोधक भी आकाशीय पाच आवर्त्त (बव्वण्डर) बतलाए हैं।
रक्षाविधान और पन्त्रविधान– इस वैमानिक प्रकरण में शत्रुद्वाराप्रयुक्त प्रहारक उपायों से एवं आकाशीय पदार्थों से भी स्वविमान की रक्षा का विधान है। यथा शत्रु ने जब अपने विमान के मार्ग में दम्भोलि (तारपीडो जैसी वस्तु) आदि फेंक दी हो तो उसके प्रहार से बचने के लिए अपने विमान की नियंत्गति (तिरडीगति) कर दो या अपने विमान को कृत्रिम मेघों में छिपादो अथवा शत्रुजन पर तामस यन्त्र से तम.
अन्धकार छोडदो शत्रुद्वारा भूमि में छिपाए हुए प्रहारक अग्निगोल आदि पदार्थों को गुहागर्भादर्श यन्त्र से जान- कर उन से स्वविमान को बचा लेना उस दूरबीन जैसे गुहागर्भादर्श यन्त्र से ऐसे स्थान पर सूर्यकिरणों ऐक्सरे की भांति अन्दर प्रविष्ट हो कर उन छिपे हुए पदार्थों को चित्ररूप में दिखला देती हैं। एवं आकाश में भी शत्रुओं के आक्रमण से बचने के अनेक उपाय बतालाए हैं। Brihad Viman Shastra PDF Book
जैसे- शत्रु के विमानों ने स्वविमान को चारों ओर से घेर लिया हो तो अपने विमान की द्विचक्र कीली को चलाने से ८० सिट (डिमी) की ज्वालाशक्ति प्रकट होगी उसे गोलाकार में घुमादेने पर वे शत्र के विमान जलकर नष्ट हो जायेंगे तथा दूर से बाते हुए शत्रु के विमान की ओर ४६८७ तरने फेंक कर उसे बढ़ने में असमर्थ कर देना । नीचे खड़ी हुई शत्रु सेना पर स्त्रविमान से शब्द सङ्घ-महाशब्दप्रहार करना जिससे वे सैनिक भयभीत होजायें बहरे बन जायें] हृदयभङ्ग को प्राप्त होजावें।
एवं आकाशीय पदार्थों वर्षा, वात, विद्युत्, आतप, शब्द, उल्का, पुच्छलतारों के अवशेषों तथा ग्रह-नक्षत्रों की कक्षासन्धियों से रक्षा करना भी कहा है। वर्षोपसंहार यन्त्र से विमानसे सम्बद्ध वायु ऊपर वेग से प्रगति करेगी उससे पुरोधात वर्षा ज्ञानेवाली वायु) संघर्ष को प्राकर के दो टुकड़ों में विभक्त हो जावेगी जोकि जल की दो शक्तिया है द्रव (पतलापन) और प्राणन ( गीला करनेवाली) पुन विमान पर जल न द्रवित होगा— बहेगा- गिरेगा और न गीला कर सकेगा।
महावात के आघात से बचने को व्यास्यवातनिरसन यन्त्र लगाना उस से वायु को त्रिमुखी – तीन टुकड़ों में कर दूर भगा देना । विद्यन् के प्रभाव को दूर रखनेवाला शिर कीलक यन्त्र विमान के मस्तक में लगाना जो कि छत्री की भाति घूमता हुआ विद्यन् के प्रभाव को कोसों दूर रखता है। भातप (धूपताप) की क्षति से विमान को बचाने के लिए आतपोपसंहार यन्त्र लगाना जिस से उष्णता का नाश शीतता का प्रसार हो। Brihad Viman Shastra PDF Book Download
शक्त्या- यन्त्र से आकाशतरों वातसूत्रों से होने वाली छति से विमान को बचाना। एवं शब्द उल्का, तारों के शेषों और ग्रहों की कहान्दियों के प्रभावों से विमान को बचाने के लिए विविध यन्त्र लगाना । सूर्यकिरणों को स्वाधीन करने के लिये परिवेषक्रियायन्त्र लगाना आदि कहा गया है। एवं को आकर्षित करके विविध उपयोग लेना भी कहा है। इसी प्रकार रूपाकर्षणयन्त्र रूपों का लिये विश्वक्रियापद्मखयन्त्र धूमपारयन्त्र (पनि)।
त्रिपुरविमान बनाना और मीत्कारीयन्त्र बाहिर की वायु को खींचने के लिये लगाना जिस से त्रिपुर केला जल मे भी श्वास ले सकें, वायु विद्यत धूम के यथोचित उपयोगार्थ प्राणकुण्डलिनीयन्त्र कालमापकयन्त्र लगाए जायें एव विद्यनू से चालित या विद्युत के योगसे ३२ यन्त्र प्रयुक्त किए जावें । विमान के प्रत्येक अङ्ग को भिन्न भिन्न कृत्रिम लोहे से तैयार करके बनाना, लोद्दों का खान से ही प्राप्त होना नहीं किन्तु उसकी प्राप्ति के १२ स्थान बतलाए गए हैं।
भुगर्भ में खनिज पदार्थों की सहस्रों रेखा पक्तियां कही हैं। इत्यादि बातें इस वैमानिक प्रकरण में अपने अपने स्थान पर मिलेंगी। धन्यवाद– प्रथम ऋषि दयानन्द का महान धन्यवाद करते है जिन्दोन ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका ग्रन्थ और वेदभाष्य में स्थान स्थान पर विमानयान और उसके द्वारा आकाश में उडान एवं यात्रा करने का वन ऐसे समय में किया। जबकि किसी को इस युग में स्वप्न में भी इस बात की कल्पना न भी उम ऋषिके वचनों से हो विमानविषयक पुरातन ग्रन्थों की खोज में हम प्रवृत्त हुए। Brihad Viman Shastra PDF Book Download
लगभग पन्द्रह वर्ष पूर्व वडादा राजकीय संस्कृत पुस्तकभजन ( लाईब्रेरी) से इस्तलिखित इस वैमानिक प्रकरण का कुछ भाग से प्राप्त हुआ था उसका हिन्दी अनुवाद ‘विमानशास्त्र’ नाम से हमने प्रकाशित भी कर दिया था उसी के साधारपर अन्य खोज हुई बडोदा, पूना, उत्तर, दक्षिण आदि से यह श्लोक सामग्री हमें प्रामई, एतदर्थ श्री तोषजी भट्टाचार्य P H1) मध्यक्ष राजकीय संस्कृत लाईनरी बडोदा का हम धन्यवाद करते हैं।
और श्री सुरेन्द्रनाथ जी गोयल एयर कमोडर के सहयोग की भी हम सरहाना करते हैं। पुन गुरुकुल- कांगडी के अधिकारियों विशेषत गुरुकुल के कुलपति श्री पं० इन्द्र जी विद्यावाचस्पति का भी मैं अत्यधिक हार्दिक धन्यवाद करता हूं जिन्होंने इस अनुवादकार्य के सम्पादनार्थ गुरुकुल में स्थान तथा पुस्तकभवन ऋषि दयानन्द ने वेदभाष्य में “शब्दायमाना विमानान्-शब्द करते हुए विमान” ऐसा भी लिखा है जैसा कि विमान उड़ते हुए शब्द करते हैं।
महर्षि भरद्वाजकृत यन्त्र” मन्थ का एक प्रकरण यह “वैमानिक प्रकरण” है जिसमें ऐसे ४० प्रकरण थे “बेमानिक प्रकरण” का ८ अध्याय १०० अधिकरण ५०० सूत्रों में निबद्ध होना कहा गया है। मन्त्रका जैसे इस मन्यमें भी आस्तिकता का प्रदर्शन करने के लिये मोरम् को मुमुक्षुओं का विमान बतलाया। वैमानिक प्रकरण से पूर्व ‘विमानचन्द्रिका, व्योमयानतन्त्र, यन्त्रकल्प, यानबिन्दु, खेटयानप्रदीपिका, व्योमयानार्कप्रकाश’ इन विमानविषयक शास्त्रों होना जोकि मश नारायण। Brihad Viman Shastra PDF Book Download
शौनक, गर्ग, वाचस्पति चाक्रामणि, घुण्डिनाथ महर्षियों के रचे हुए थे। महर्षि भरद्वाज द्वारा वेद का निर्मन्थन कर “सर्वस्व” अन्य को मक्खन के रूप में निकाल कर दिए जाने का कथना विमान शब्द का अर्थ सूत्रकार महर्षि भरद्वाज तथा भाचार्य विश्वम्भर आदि के अनुसार विपक्षी की भाति गति के मान से एक देश से दूसरे देश एक द्वीप से दूसरे द्वीप और एक लोक से दूसरे लोक को चाकाश में उडान लेने पहुंचने में समर्थ यान है।
अपितु चित्री जल और आकाश में तीनों स्थानों में गति करने वाला बतलाया गया (जिसे आगे त्रिपुर विमान नाम दिया है)। विमान के ३२ रहस्यों का निर्देश करना, यथा-विमान का अहश्यकरण, शब्दप्रसारगा, लखन, रूपाकर्षण, शब्दाकर्षय, शत्रुओं पर धूमप्रसारण शत्रु से बचाने को स्वविमान का पावृत करना, शत्रु के विमानों द्वारा घिर जाने पर उन पर ज्वालाक्ति को प्रसारित करना फेंकना, दूर से आतेहुए शत्रुविमान पर ४०८ तर फेंक कर उढने में असमर्थ कर देना।
रात्रसेना पर असह्य महाशब्द संघरूप शब्दवम) फेंक पर उसे भयभीत बधिर शिथिल तथा इद्रोग से पीडित कर देना आदि । आकाश में विमान के सम्मुख विमानविनाशक आकाशीय पाच भाव (बबण्डरों का निर्मध्यत दाम्बुधि भरद्वाजो महामुनि मवनीत समुद्धत्य मन्त्रसर्वस्वरूपकम् ||१०| विषय माना और उनसे विमान रक्षा का उपाय । विमान में विश्वक्रियादप आदि ३१ यन्त्रों का स्थापन करना ।। कापी संख्या २– Brihad Viman Shastra PDF Book Free
विमानचालक यात्रियों को ऋतुओं की २५ विषशक्तियों के प्रभाव से बचने के लिये ऋतु ऋतु के अनुसार पहिनने और थोड़ने के योग्य वस्त्रों और भिन्न भिन्न भोजनों का विधान, अन्न भोजन के अभाव में मोदक आदि तथा कन्दमूलफलों एवं उनके मुरखों रसों का विशेष सवन करना। विमान में उपयुक्त उमप कोदों के सोम, सौदाल और मौलिक तीन बीज लोड़ों का वर्णन एवं शोधन तथा बीज लोहों की उत्पत्ति में भूगर्भ की आकर्षण शक्ति तथा पृथिवी की बाहिरी कक्षाशक्ति और सूर्यकिरणों भूततन्मात्राओं एवं महों के प्रभाव को निमित्त बतलाना,
तीन सहस्र भूगर्भस्थ खनिज- रेखापक्तियों का निर्देश तथा सातवें रेखापकिस्तर मे तीन खनिजगर्भकोशों में सोम, सौगदाल, मौलिक लोड़ों की उत्पत्ति का कथन ।। कापी सख्या ३- विमान के नियन्त्रों, कीलों (पंचों को भिन्न भिन्न लोगों से बनाने का विधान। लोहे की प्राप्ति के १२ प्रकार या स्थान बतलाए जिससे कि ‘खनिज, जलज, भोषधि, धातुज, कमिज, चारज पटन स्थलन, अपभ्रंशक कृतक नामोंस लोहे कहे गए हैं। बीज लोहे सौम,सौण्डाल, मौल्मिक कहे और प्रत्येक के ग्यारह ग्यारह भेद होने से ३३ भेद बतलाए हैं।
कापी संख्या ४– विधियों के ज्ञानार्थ विमान में दर्पणायन्त्र ‘विश्वक्रियादशकपा कर्पण, रूप्यदर्पण,कुटीदर्पण, पिज्जुनादर्पण, गुहागर्भदर्पण, रौद्रोदय लगाए जाना ॥ विमान की मिन्न भिन्न १२ गनिया चलन कम्पन, गमन, अधोगमन मलति चक्रगति मर्गात विचित्रगति, अनुलोमगति– दक्षिणमति, विलोम- गनि वामगति, परामुखगति, स्तम्भनगति, तिर्यमाति-तिरडीगति, विविधगति या नानागति’ के बाग से या विद्युत्शक्ति से होती हैं। Brihad Viman Shastra PDF Book Free
विद्यतु से चालित या विद्य मम विश्वक्रियादर्श आदि ३२ यन्त्रों का शत्रु के द्वारा किए समस्त क्रिया- कलापको दिखलाने वाला विश्वक्रियाकर्षणादर्शयन्त्र का विधान ॥ ५६०० कापी संख्या ६– यन्त्र का विधान, जिसके द्वारा आकाशतरकों और बातसूत्रों से होने वाली क्षति से विमान बच जाता है तथा परिवेषक्रियायन्त्र का स्थान जो कि विमान के मार्ग में आई सूर्यकिरणों को स्वाधीन करके विमान को निर्वाध गतिशील करता है।
डाक तारों पर लपेटने के लिए गेडे आदि धर्म का विधान बासयोजक, आदि यन्त्रों का निर्माण ३२ मणवर्गों के १२ वे वर्ग में कही १०३ मों का विमान में सूर्य उपयोग लेना परिवेषक्रियाद्वारा विमान में बातसयोजन धूमप्रसारण सूर्यकिरणाकर्षण आदि व्यवहार ।। कापी संख्या – यहाँ के चार अतिचार आदि विरोधी गतियों के संप से आकाश में पहली हुई या प्रभाव से विमान के अद्रों को भाव रखने के लिए।
पसंहारयन्त्राविधान तथा भूगर्भ से भूत और पृथिवी की बाधाओं से प्रकट हुए अनिष्टों के निवारणार्थ विस्तृतास्यक्रियायन्त्र का स्थापन पर कृत्रिम विविध धूमप्रकाशको द्वारा फेंक कर उन्हें विरूप करना आदि मिश्र भिन्न रोगों में मस्त करना आकाशीय वातावरण से विमान के अ तथा विशेषत उपरों में शिथिलता था जाने और उनपर मन लिप्त होजाने से बचाने को पद्मपत्र मुखमन्त्र का विधान || कापी संख्या ६- Brihad Viman Shastra PDF Book Free
प्रीष्मकाल मे उपकरणों के मेल से कुलिका नाम की शक्ति विमान को कर देने वाली उत्पन्न हो जाती है उसे शक्तियन्त्र के विविध अङ्गद्वारा पीलिये जाने का वर्णन तथा मीम में विषयुक्त पञ्चशिखा नाम की पातिका शक्ति उत्पन्न हो जाती है जो कि प्राणियों के जीवनरस का शोषण एवं अनेकविध रोगों का निमित्त है उसे नष्ट करने के लिये पुषियन्त्र (पाकार भरायन्त्र) लगाना, जो कि उसके विषयुक्तप्रवादों को बाहिर निकाल देता है।
दो वायुओं के च एवं सूर्यकिरणों के संसर्ग से समान विद्युत का पतन हो जाया करता है उससे बचने के लिये पादर्शयन्त्र का विमान में लगाना ।। कापी संख्या १०- शत्रु के द्वारा भूमि में द्वार दिए हुए महागोला नियन्त्र का गुहागर्भादर्श यन्त्र ( दूरबीन जैसे यन्त्र) द्वारा सूर्यकिरणें (एक्सरे की भाति) पकड भूमि में प्रविष्ट कर निपट पर प्रतिविम्ब (फोटो) लेलेना । शत्रु पर अन्धकार फैलाने वाला समोयन्त्र आकाशीय १२ वातावरण में हुए।