Durga Saptashati PDF – श्री दुर्गासप्तशती पाठ पीडीएफ

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इसमें पाठ करनेकी विधि स्पष्ट, सरल और प्रामाणिक रूपमें दी गयी है। इसके मूल पाठको विशेषतः शुद्ध रखनेका प्रयास किया गया है। आजकल प्रेसोंमें छपी हुई अधिकांश पुस्तकें अशुद्ध निकलती हैं, किंतु प्रस्तुत पुस्तकको इस दोषसे बचानेकी यथासाध्य चेष्टा की गयी है। पाठकोंकी सुविधाके लिये कहीं-कहीं महत्त्वपूर्ण पाठान्तर भी दे दिये गये हैं।

Durga Saptashati PDF – श्री दुर्गासप्तशती पाठ पीडीएफ

Name of Book Durga Saptashati PDF
PDF Size 1 MB
No of Pages 240
Language Hindi
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 About Book – Durga Saptashati PDF Free Download – श्री दुर्गासप्तशती पाठ पीडीएफ

शापोद्धारके अनेक प्रकार बतलाये गये हैं। कवच, अर्गला और कीलकके भी अर्थ दिये गये हैं। वैदिक-तान्त्रिक रात्रिसूक्त और देवीसूक्तके साथ ही देव्यथर्वशीर्ष, सिद्ध कुंजिकास्तोत्र, मूल सप्तश्लोकी दुर्गा, श्रीदुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला, श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र, श्रीदुर्गामानसपूजा और देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रको भी दे देनेसे पुस्तककी उपादेयता विशेष बढ़ गयी है।

नवार्ण-विधि तो है ही, आवश्यक न्यास भी नहीं छूटने पाये हैं। सप्तशतीके मूल श्लोकोंका पूरा अर्थ दे दिया गया है। तीनों रहस्योंमें आये हुए कई गूढ़ विषयोंको भी टिप्पणीद्वारा स्पष्ट किया गया है। इन विशेषताओंके कारण यह पाठ और अध्ययनके लिये बहुत ही उपयोगी और उत्तम पुस्तक हो गयी है। सप्तशतीके पाठमें विधिका ध्यान रखना तो उत्तम है ही, उसमें भी सबसे उत्तम बात है भगवती दुर्गामाताके चरणोंमें प्रेमपूर्ण भक्ति।

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श्रद्धा और भक्तिके साथ जगदम्बाके स्मरणपूर्वक सप्तशतीका पाठ करनेवालेको उनकी कृपाका शीघ्र अनुभव हो सकता है। Durga Saptashati PDF Free Download आशा है, प्रेमी पाठक इससे लाभ उठायेंगे। यद्यपि पुस्तकको सब प्रकारसे शुद्ध बनानेकी ही चेष्टा की गयी है, तथापि प्रमादवश कुछ अशुद्धियोंका रह जाना असम्भव नहीं है। ऐसी भूलोंके लिये क्षमा माँगते हुए हम पाठकोंसे अनुरोध करते हैं कि वे हमें सूचित करें, जिससे भविष्यमें उनका सुधार किया जा सके।

यह विधि यहाँ संक्षिप्त रूपसे दी जाती है। नवरात्र आदि विशेष अवसरोंपर तथा शतचण्डी आदि अनुष्ठानोंमें विस्तृत विधिका उपयोग किया जाता है। उसमें यन्त्रस्थ कलश, गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तर्षि, सप्तचिरंजीव, ६४ योगिनी, ५० क्षेत्रपाल तथा अन्यान्य देवताओंकी वैदिक विधिसे पूजा होती है। अखण्ड दीपकी व्यवस्था की जाती है।

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देवीप्रतिमाकी अंगन्यास और अग्न्युत्तारण आदि विधिके साथ विधिवत् पूजा की जाती है। Durga Saptashati PDF Free Download नवदुर्गापूजा, ज्योति: पूजा, वटुक-गणेशादिसहित कुमारीपूजा, अभिषेक, नान्दीश्राद्ध, रक्षाबन्धन, पुण्याहवाचन, मंगलपाठ, गुरुपूजा, तीर्थावाहन, मन्त्र-स्नान आदि, आसनशुद्धि, प्राणायाम, भूतशुद्धि, प्राणप्रतिष्ठा, अन्तर्मातृकान्यास, बहिर्मातृकान्यास, सृष्टिन्यास, स्थितिन्यास, शक्तिकलान्यास, शिवकलान्यास, हृदयादिन्यास, षोढान्यास, विलोमन्यास, तत्त्वन्यास, अक्षरन्यास, व्यापकन्यास, ध्यान, पीठपूजा, विशेषार्घ्य, क्षेत्रकीलन, मन्त्रपूजा, विविध मुद्राविधि, आवरणपूजा एवं प्रधानपूजा आदिका शास्त्रीय पद्धतिके अनुसार अनुष्ठान होता है।

इस प्रकार विस्तृत विधिसे पूजा करनेकी इच्छावाले भक्तोंको अन्यान्य पूजा-पद्धतियोंकी सहायतासे भगवतीकी आराधना करके पाठ आरम्भ करना चाहिये। जगदम्बाके श्रीअंगोंकी कान्ति उदयकालके सहस्त्रों सूर्योंके समान है। वे लाल रंगकी रेशमी साड़ी पहने हुए हैं। उनके गलेमें मुण्डमाला शोभा पा रही है। दोनों स्तनोंपर रक्त चन्दनका लेप लगा है।

वे अपने कर कमलों में जपमालिका, विद्या और अभय तथा वर नामक मुद्राएँ धारण किये हुए हैं। Durga Saptashati PDF Free तीन नेत्रोंसे सुशोभित मुखारविन्दकी बड़ी शोभा हो रही है। उनके मस्तकपर चन्द्रमाके साथ ही रत्नमय मुकुट बँधा है तथा वे कमलके आसनपर विराजमान हैं। ऐसी देवीको मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ। सिद्धिकी इच्छा रखनेवाले पुरुष जिनकी सेवा करते हैं तथा देवता जिन्हें सब ओरसे घेरे रहते हैं, उन ‘जया’ नामवाली दुर्गादेवीका ध्यान करे।

उनके श्रीअंगोंकी आभा काले मेघके समान श्याम है। वे अपने कटाक्षोंसे शत्रुसमूहको भय प्रदान करती हैं। उनके मस्तकपर आबद्ध चन्द्रमाकी रेखा शोभा पाती। है। वे अपने हाथोंमें शंख, चक्र, कृपाण और त्रिशूल धारण करती हैं। उनके तीन नेत्र हैं। वे सिंहके कंधेपर चढ़ी हुई हैं और अपने तेजसे तीनों लोकोंको परिपूर्ण कर रही हैं।

मैं सर्वज्ञेश्वर भैरवके अंकमें निवास करनेवाली परमोत्कृष्ट पद्मावतीदेवीका चिन्तन करता हूँ। वे नागराजके आसनपर बैठी हैं, नागोंके फणोंमें सुशोभित होनेवाली मणियोंकी विशाल मालासे उनकी देहलता उद्भासित हो रही है। Durga Saptashati PDF Free सूर्यके समान उनका तेज है, तीन नेत्र उनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। वे हाथों में माला, कुम्भ, कपाल और कमल लिये हुए हैं तथा उनके मस्तकमें अर्धचन्द्रका मुकुट सुशोभित है।

मैं मातंगीदेवीका ध्यान करता हूँ। वे रत्नमय सिंहासनपर बैठकर पढ़ते हुए तोतेका मधुर शब्द सुन रही हैं। उनके शरीरका वर्ण श्याम है। वे अपना एक पैर कमलपर रखे हुए हैं और मस्तकपर अर्धचन्द्र धारण करती हैं तथा कहार-पुष्पोंकी माला धारण किये वीणा बजाती हैं। उनके अंगमें कसी हुई चोली शोभा पा रही है। वे लाल रंगकी साड़ी पहने हाथमें शंखमय पात्र लिये हुए हैं। उनके वदनपर मधुका हलका-हलका प्रभाव जान पड़ता है और ललाटमें बेंदी शोभा दे रही है।

मैं तीन नेत्रोंवाली दुर्गादेवीका ध्यान करता हूँ, उनके श्रीअंगोंकी प्रभा बिजलीके समान है। वे सिंहके कंधेपर बैठी हुई भयंकर प्रतीत होती हैं। Durga Saptashati PDF Free हाथों में तलवार और ढाल लिये अनेक कन्याएँ उनकी सेवामें खड़ी हैं। वे अपने हाथोंमें चक्र, गदा, तलवार, ढाल, बाण, धनुष, पाश और तर्जनी मुद्रा धारण किये हुए हैं । उनका स्वरूप अग्निमय है तथा वे माथेपर चन्द्रमाका मुकुट धारण करती हैं।

प्रथम रहस्यमें पराशक्ति महालक्ष्मीके स्वरूपका प्रतिपादन किया गया है; महालक्ष्मी ही देवीकी समस्त विकृतियों (अवतारों) की प्रधान प्रकृति हैं, अतएव इस प्रकरणको प्राकृतिक या प्राधानिक रहस्य कहते हैं। इसके अनुसार महालक्ष्मी ही सब प्रपंच तथा सम्पूर्ण अवतारोंका आदि कारण हैं। तीनों गुणोंकी साम्यावस्थारूपा प्रकृति भी उनसे भिन्न नहीं है। स्थूल सूक्ष्म, दृश्य-अदृश्य अथवा व्यक्त-अव्यक्त- सब उन्हींके स्वरूप हैं।

वे सर्वत्र व्यापक हैं। अस्ति, भाति, प्रिय, नाम और रूप-सब वे ही हैं। वे सच्चिदानन्दमयी परमेश्वरी सूक्ष्मरूपसे सर्वत्र व्याप्त होती हुई भी भक्तोंपर अनुग्रह करनेके लिये परम दिव्य चिन्मय सगुणरूपसे भी सदा विराजमान रहती हैं। Durga Saptashati PDF उनके उस श्रीविग्रहकी कान्ति तपाये हुए सुवर्णकी भाँति है। वे अपने चार हाथों में मातुलुंग (बिजौरा), गदा, खेट (ढाल) और पानपात्र धारण करती हैं तथा मस्तकपर नाग, लिंग और योनि धारण किये रहती हैं।

भुवनेश्वरी संहिताके अनुसार मातुलुंग कर्मराशिका, गदा क्रियाशक्तिका, खेट ज्ञानशक्तिका और पानपात्र तुरीय वृत्ति (अपने सच्चिदानन्दमय स्वरूपमें स्थिति) का सूचक है। इसी प्रकार नागसे कालका, योनिसे प्रकृतिका और लिंगसे पुरुषका ग्रहण होता है। तात्पर्य यह कि प्रकृति, पुरुष और काल- तीनोंका अधिष्ठान परमेश्वरी महालक्ष्मी रही हैं। उक्त चतुर्भुजा महालक्ष्मीके किस हाथमें कौन-से आयुध हैं, इसमें भी मतभेद है।

रेणुका माहात्म्यमें बताया गया है, दाहिनी ओरके नीचेके हाथमें पानपात्र और ऊपरके हाथमें गदा है। Durga Saptashati PDF बायीं ओरके ऊपरके हाथमें खेट तथा नीचेके हाथमें श्रीफल है, परंतु वैकृतिक रहस्यमें दक्षिणाध:करक्रमात्’ कहकर जो क्रम दिखाया गया है, उसके अनुसार दाहिनी ओरके निचले हाथमें मातुलुंग, ऊपरवाले हाथमें गदा, बायीं ओरके ऊपरवाले हाथमें खेट तथा नीचेवाले हाथमें पानपात्र है।

चतुर्भुजा महालक्ष्मीने क्रमशः तमोगुण और सत्त्वगुणरूप उपाधिके द्वारा अपने दो रूप और प्रकट किये, जिनकी क्रमश: महाकाली और महासरस्वतीके नामसे प्रसिद्धि हुई। ये दोनों सप्तशतीके प्रथम चरित्र और उत्तर चरित्रमें वर्णित महाकाली और महासरस्वतीसे भिन्न हैं; क्योंकि ये दोनों ही चतुर्भुजा हैं और उक्त चरित्रोंमें वर्णित महाकालीके दस तथा महासरस्वतीके आठ भुजाएँ हैं। चतुर्भुजा महाकालीके हाथों में खड्ग, पानपात्र, मस्तक और ढाल हैं; इनका क्रम भी पूर्ववत् ही है।

चतुर्भुजा सरस्वतीके हाथों में अक्षमाला, अंकुश, वीणा और पुस्तक शोभा पाते हैं। इनका भी पहले जैसा ही क्रम है। फिर इन तीनों देवियोंने स्त्री पुरुषका एक-एक जोड़ा उत्पन्न किया। महाकालीसे शंकर और सरस्वती, महालक्ष्मीसे ब्रह्मा और लक्ष्मी तथा महासरस्वतीसे विष्णु और गौरीका प्रादुर्भाव हुआ। इनमें लक्ष्मी विष्णुको, गौरी शंकरको तथा सरस्वती ब्रह्माजीको प्राप्त हुई। पत्नीसहित ब्रह्माने सृष्टि, विष्णुने पालन और रुद्रने संहारका कार्य सँभाला।

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