Garuda Purana PDF in Hindi – गरुड पुराण हिंदी

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पनयन संस्कारकी अनिवार्यता दिग्दर्शक और स्मृतिस्वरूप है। यदि इन दोनों दिशा-निर्देश नहीं मिल पाता है तो सदाचार (रि-धर्मका करना चाहिये इस प्रकार पुति स्मृति और रिसे प्राप्त धर्मये तीन प्रकारके सनातन धर्म है। गया है। गृहस्थाश्रम धर्मों का भी विवेचन हुआ है। स्वियोंको अपने पतिको आज्ञा पालन करना चाहिये यहाँ उनका परम धर्म है। जिस पर पति-प मध्य किसी प्रकारका विरोध नहीं होता।

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Name of Book Garuda Purana
PDF Size 32.3 MB
No of Pages 528
Language  Hindi
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About Book – Garuda Purana PDF Book

उस पर धर्म अर्थ और काम इसकी अभिवृद्धि होती है जो स्त्री पतिको मृत्युके पश्चात् अथवा उसके जीवित रहते हुए अन्य पुरुषका आश्रय नहीं लेती, वह इस लोकमें यश प्राप्त करती है और अपने पातिव्रत्यके प्रभावसे परलोक जाकर पार्वतीके साहचर्यमें आनन्द प्राप्त करती है। सत्यदार दया, निलोभा, विद्या, यह पूजा और इन्द्रिय-दमन आठ शिष्टाचार के पवित्र लक्षण कहे गये। है यहाँ प्रातःकाल जगनेसे लेकर यत्रिमें सोनेतक पालन करने योग्य गृहस्थ धर्मका वर्णन भी हुआ है।

गृहस्थको ब्राह्ममुहूर्तमें निद्राका परित्याग करके धर्म और अर्थका भी चिन्तन करना चाहिये। शौचादिक्रियाओंसे निवृत होकर दावन स्नान करके समाहितचित होकर संध्यापार तर्पण वाचन आदि नित्यक्रिया सम्पन करनी चाहिये। शौचादि क्रियाओंकी शुद्धिका विस्तृत वर्ण अग्निहोत्रका पालन, पृथ्वीपर शयन, मृगचर्मका धारण, वनमेंनिकस, दूध, मूल, फल तथा निवारकर भक्षण, निषिद्ध कर्मका परित्याग, त्रिकाल संध्या ब्रह्मचर्य का पालन और यहाँ हुआ है।

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देवता तथा अतिथिको पूजा यह वानप्रस्थका धर्म है। शुद्धि दो प्रकारको है पहली मा तथा दूसरी सभी प्रकार आरम्भका परित्याग, भिक्षा प्राप्त अनका आध्यतरिक मिट्टी तथा जलसे की जा और भागोंको शुद्धि ही आभ्यन्तरिक शुद्धि मानी गयी है। आचमनको शुद्धिका प्रमुख अङ्ग माना गया है। भोजन वृक्षको छायामें निवास अपरिग्रह, अद्रोह, सभी प्राणियोंमें समानभाव, प्रिय तथा अप्रियको प्राप्ति एवं और दुःखमें समान स्थिति।

शरीरको बाह्य और आन्तरिक संयम, पामात्माका ध्यान, सभी निधारण तथा ध्यान तत्परता और भाग-द्ध सभी परिया संन्यासी धर्म कहे गये हैं। दूर और अदृष्ट दोनों प्रकारका हित सम्पादन होनेके कारण प्रात:काल स्नानको अत्यधिक प्रशंसा की गयी है। शरीर अत्पन्न मलिन है। उसमें स्थित नव छिद्रों मल निकलता ही रहता अतः प्रात:कालका न ‘इसके साथ हो अहिंसा प्रिय और सत्य वचना हेतु मनको प्रसन्न रखनेवाला रूप और सौभाग्यको वृद्धि करनेवाला है।

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यह शोक और दुःखका विनाशक है। गङ्गायनकी विशेष महिमा है। गङ्गास्नानमे सर्वविध पाका नाश होता है। विस्ता क्षमा तथा दया सभी आश्रमों और धमका सामान्य धर्म कहा- मासुता वाणीदा सामान्य धर्म (१२९३।२२) सदाचार और शौचाचारका निरूपण करते हुए जी कहते हैं कि ति (वेद) और स्मृति का प्रकार अध्ययन करके प्रतिपादन धर्मका पालन करना चाहिये करते 1 है। गया धर्म परमधर्म स्मृति और धर्म पर धर्म और तीन करोड़ मंदेश नामक राक्षस माने गये हैं।

वे दुरात्मा राक्षस सदैव प्रातःकाल उदित हो रहे सूर्यदेवको जानेकी इच्छा करते हैं। अतः पूर्व करके संध्योपाननकर्म नहीं करना सूर्यदेवका हो है जो लोग यथाविधि स्नानकर कार किये गये – उदे नामदे गोदान सूर्यलोकको प्राप्ति होती है। पान और या दान करनेपर भार्या, भयभीतको अभय प्रदान करनेसे ऐकी प्राप्ति होती है। धान्यदानसे अविनाशी सुख तथा वेदाध्यापन (वेदके दान से मुक्ति हो जाती है।

इनके लिये काठ आदिका दान करनेसे व्यक्ति प्रदीप्त अनिके समान तेजस्वी हो जाता है। रोगियोंके रोग-शान्तिके लिये औषधि तेल आदि पदार्थ होता है। जो मनुष्य परलोकमें अक्षय सुखको अहैि. उसे अपने लिये संसार या पर जो वस्तु सर्वाधिक प्रिय है, उसका दान गुणवान् को करना चाहिये। आदि विविध प्राणी कुर द्वारका केदार बदरिका द्वीप, मायापुरी (हरिद्वार), नैमिषारण्य, पुकार अयोध्या विकू काही गा एवं भोजन देनेवाला मनुष्य रोगरहित। Garuda Purana PDF Book

सुखी और दबन्ध-रामेश्वर, अमरकण्टक उनी मथुरापुरी आदि स्थानोंको गया है। इन किया गया नाराज पूजा पिण्डदान आदि अक्षय होता है। धर्म इस संसारमें जियोंके लिये कोई दूसरा नहीं है। गी बहन अग्नि तथा देवोंको दिये दल जो मनुष्य मोहवश दूसरोंको रोकता है, वह पति (पक्षी)को योनिको प्राप्त करता है। यामाहात्म्य तथा गादि करने फल सविस्तार समारोहपूर्वक यहाँ प्रस्तुत हुआ है। गम नामक असुरको उत्कट तपस्या संतप्त देवी प्रार्थना भगवान् विष्णुको गदासे वह असुर मारा गया।

उस गयासुर नामपर होगी प्रसिद्ध हुआ गदाधर भगवान् विष्णु मुख्यदेवके रूपमें अवस्थित है। धर्मके बाद प्रायश्चितका निरूपण किया गया है। त्या मदिरापान, स्वयंको चोरी, और गुरुजीगमन ये का महापाप कहे गये हैं। इन सभीका साथ करनेवाला महापातक होता है। गोहत्या आदि जो अन्य पाप 8. उपमा गये हैं। इन सभी पापका प्राक्षिमनुष्य चोरद्वारा मारे जाते हैं। जिनकी मृत्यु विधान यहाँ प्रस्तुत किया गया है।

करनेसे पापको निवृत्ति तो होती ही है, इसके साथ हो अन्य सम्पूर्ण पापोंका भी विनाश होता है। जिनको संस्काररहित में मृत्यु हो जाती है अथवा सर्पके काटने से होती है, सभी के पुण्य उन्मुक्त होकर स्वर्ग चले जाते हैं। गया पिटन उनकी महिमा प्रस्तुत की गयी है। ज्योतिश्वकर्माको परम गति प्राप्त होती है। इसके अनन्तर भारतवर्षका वर्णन तोयका वर्णन और उनके एवं कतिपय शुभ-अशुभ योगों तथा मुहूतका वर्णन प्रहदशा, बाधा। Garuda Purana PDF Book

शकुन कका फल ग्रह शुभ एवं अशुभ स्थान तथा उनके अनुसार शुभाशुभ विवेचन यहाँ प्रस्तुत है। इसी प्रकार लग्न-फल किये जाने योग्य प्रशस्त कार्यका भी निरूपण किया है के अनुसार स्त्री-पुरुष के शुभाशुभ एवं स्तर आपका परिभी यहाँ हैवान भी हुआ है। तिथि आदि का निरूपण, नविन एकादशी या गया है। इसके अतिरिक पितरके लिये न करनेसे प्राप्त होता है, सौ करोड़ भी उसका ब नहीं किया जा सकता है। यहाँतक कहा गया है कि गयागमनमा ही व्यक्ति से हो जाता है।

स्थिर आदि भेद का स्वभाव तथा पितॄणामनृणं भवेत्। कहते है भगवान् विष्णु पितृदेवताके रूपमें विराजमान रहते हैं। ढकाउन भगवान् जनाना दर्शनाने अपने तीनों हो जाता है। गया कोई ऐसा स्थान नहीं है. जहाँपर पाँचको क्षेत्रफल रह पिण्डदान करनेवाला मनुष्य अपने है। पितृगणको प्रदान करता प्राचीन नाम परिभाया- व्यक्ति पर यह महापुराण रहता है, उसको जाती है जो मनुष्य इसके एक भी लोका करता है, उसको अकालमूल्य नहीं होती है।

इस महराको पड़ने एवं धर्म ही कहा गया यह महापुराण धन्य है। यह इसी जन्म सब कुछ प्राप्त हो जाता है। अर्थ, काम और मोक्ष-इन चारों पुरुषोंकी सिद्धि हो सकनेवाला है। धर्मकाण्ड – प्रेतकल्प धर्मप्रेतकल्प) में सर्वप्रथम भगवान् श्री नमस्कार किया गया है। तदनन्तर क्षेत्र में शौनकादि गणसूतजी महाराज प्रश्न करते हैं कि कुछ लोगों का कहना है कि शरीरधारी जीव एक शरीरके बाद दूसरे शरीरका आश्रय ग्रहण करता है। Garuda Purana PDF Book

जबकि दूसरे विद्वानोंका कहना है कि प्राणीको मृत्युके पातु यमराजकी ओंका भोग करनेके बाद दूसरे शरीरको प्राप्ति होती इन दोनों क्या सत्य है, यह मानेकी कृपा करें सूजी महाराज प्रश्नको सुनकर प्रसन्न होते हैं और इस प्रकार काका वर्णन करते है- एक बार विनतापुत्र गरके हृदय के सभी लोकोंको देखनेकी इच्छा हुई। अतः हरिनामका उच्चारण करते हुए उन्होंने पाताल तथा स्वर्ग आदि सभी लोकोंका भ्रमण किया।

स्वपन्ति भूमः पुरुषाः सुयात् (ख) पूछते हैं प्रभो। आप यह बताने की कृपा करें कि मरणासन्न व्यक्तिको किस कारण पृथ्वीपर जाता उसके मुख पर क्यों जाता है? उसके नीचे और तिल क्यों दिखाये जाते हैं? है । मृत्युके समय विविध वस्तु दान एवं गोदार, अ महादान किसलिये दिया जाता है? प्राणी कैसे मरता है और मरनेके बाद कहाँ जाता है? उस समय प्राणी आतिवाहिक कैसे करता है? देनेवाले उ ले जाते हैं? में तका लेप क्यों किया जाता है? सबके उत्तर दिशामें ‘यम’ का है?

मरे हुए को पीनेके लिये जल एक ही धारण करके क्यों दिया जाता है? सबका दाह-संस्कार करनेके उस व्यक्तिको अपने परिजनोंके साथ बैठकर भोजन आदि क्यों नहीं करना चाहिये? मुल व्यक्ति र दसवें दिन पहले किसलिये नीि दान देते हैं? यह संस्कार तथा उसके अनन्तर किया क्यों की जाती है? विधान पितरोंको पिण्डदान देना चाहिये? उस पिण्डको स्वीकार करनेके लिये उनका आवाहन कैसे किया जाता है?  Garuda Purana PDF Book Download

संस्कार बाद अस्थि-संचयन और घटने विधान क्यों है? दसवें दिन सभी परिजनोंके साथ शुद्धिके लिये तथा पिण्डदान क्यों करना चाहिये? दिन प्रदान आदि क्यों किया है? पृथ्वीलोक दुःख अत्यन्त दुःखित एवं अति होकर वे पुनः वैकुण्ठलोक वापस आ गये। बैठक मृत्युलोकके समान रजोगुण तथा तमोगुण आदिकी प्रवृत्ति नहीं है। केवल शुद्ध सत्य हो प्रवृत्ति है। यहाँ यग यदि निकार भी नहीं है। किसीका यहाँ विनाश नहीं भगवान् मनोहारी सुन्दर पार्षद उपस्थित है।

जीने देखा कि हर पर विराजमान है। भगवान् हरिका दर्शन करनेसे विनाविभोर हो उठा। आनन्द होकर उन्होंने प्रभुको प्रणाम करते हुए कहा- भगवन्! आपकी कृपासे त्रिलोकका परिभ्रमन मैंने कर लिया है। यमलोकको छोड़कर पृथ्वीलोक सत्य सब कुछ पदे है। सभीद सहित पिण्डदान करने का प्रयोजन है? लोकोकी अपेक्षा पृथ्वीलोक प्राणियों से अधिक परिपूर्ण है। सभी पोनियो मानवयोनि ही भोग और मोक्षका शुभ है।

अतः कृतियोंके लिये ऐसा लोक न तो अभी और भविष्य बनेगा ‘देवता लोग भी इस लोककी भूमि है। गण प्राणी अपने जीवनकाल और पी भी स्वर्ग एवं अपवर्ग की प्राप्तिके लिये पुनः प्रकार दान देता है, शरीर भारतभूमि मनुष्य जन्म करते हैं- हो पर कैसे हैं? मरे हुए प्राणी कहा उत्तम और सुनीतक पुत्र हुआन प्राप्त उपदेशके द्वारा देवाभिदेव भगवानको आराधना करके स्थान प्राप्त किया। Garuda Purana PDF Book Download

पुणे सामुद्री सामना किया। उस प्र सामुनेदपु हुए धर्मानिरत रखते हुए दरअ घुमके महाबलशाली एवं पराक्रमी लिप उत्पानमा हुआ उसमे प्राचीन नामक पुत्रकी हुई। उसमें उदारथी नामक जन्म लिया उसके नामक पुत्र हुआ उसका पुत्र हुआ नामक पुत्र जन्म लिया प्राप्त की थी। उस मत्पन हुआ हुआ उस पुत्रसे (वेन) ने जन्म लिया, जो एवं धर्म था। मुनियोंके द्वारा किये गये कुशात उस अथ को मृत्यु हुई।

उसके बाद पुत्र प्राप्त करने एक पुत्र हुआ, जो अपनोटा और कृष्ण नहीं उसको इसी है डर इस प्रकार उन हानि हो मनसे उसको निवाद नामको प्रसिद्धि प्राप्त हुई पुनः हजार जन्मदि विकेने सर जन्म का सबसे पहले चार प्रकारको की कंपन मानहीं हुई। उन तर उसके भी अनमोलकी इसके बाद दक्ष प्रजापति साथ विवाह किया। इस अनि गउनके हजार पुत्र उत्पन्न हुए। नाटके उपदेश के सभी उसके भाग किया, जिससे अन्तिम सीमा जानेके लिये निपु और हमें निवास करनेके लिये चला गया।

तदनन्तर जन मुनियोंने पुनः उस बेनके दाहिने हाका किया समन कर्मकानरूप धारण करनेवाला नामका पुत्र हुआ लियेथीका दोहन किया उस राजा नामक एक पुत्र था उसन नामक उत्पत्ति हुई उस विधानका पुत्र प्राचीन हुआ कन्याको जन्म दिया, जिनमें उन्होंने नामसे प्रसिद्ध हुए उन लोगोंने भी अपने बड़े भ मार्गका हो अनुसरण किया के ऐसे निक (कुट) ने रोप दे दिया कि तुम्हें भी जन्म लेना होगा। अतः उत्पन्न हुए। Garuda Purana PDF Book Download

इसके तत्पश्चात् उसी मुद्राकृतिर्मे परमतत्वस्वरूप, अनामय, सर्वेश्वर भगवान् केशवके पास ही अवस्थित विमलादि शक्तियाँको अष्टदल कमलपर विन्यस्त करके नवीं शक्तिको कर्णिकार्मे भगवान् नारायणका चिन्तन करे। इसके बाद इन्हीं बीजमन्त्रों क्रमश: तर्जनी आदि स्थापित करे। अङ्गुलियों में न्यास करके यथाक्रम सिर, नेत्र, मुख, कण्ठ. हृदय नाभि गुडा जानुद्रय तथा पादद्वयमें भी न्यास करना चाहिये।

इस प्रकार ध्यान करके उस साधकको योगपीठकी विधिवत् पूजा करनी चाहिये। तत्पक्षात् वह पुन: मनसे भगवान् विष्णुका अङ्गसहित आवाहनकर [उस योगपीठमें उन्हें] प्रतिष्ठित करे। तदनन्तर पूर्वादि चारों दिशाओंमें अवस्थित चतुर्दल- कमलपर हृदयादिन्यास करना चाहिये। कमलके मध्यभागमें तथा कोणोंपर अस्त्रमन्त्रका न्यास करे। अर्थात् उसके पूर्व दलमें ‘हृदयाय नमः दक्षिण दलमें “शिरसे स्वाहा’ पश्चिम दलमें ‘शिखायै वषट्र उत्तर दलमें “कवचाय हुम् मध्यमें नेत्रत्रयाय वौषट् तथा कोणमें ।

“अस्त्राय फट् कहकर न्यास करना चाहिये। बीजमन्त्रोंसे दोनों हाथोंमें न्यास तथा षडङ्गन्यास करके सम्पूर्ण शरीरमें न्यास करना चाहिये। वह अनुष्ठसे कनिष्ठा अङ्गुलितक पाँच बीजमन्त्रोंसे न्यास करे। उसके बाद हाथके मध्य भागमें नेत्रके बीजमन्त्र न्यास करनेका विधान है। अङ्गन्यासमें भी इसी क्रमसे हृदय भागमें हृदय, मस्तकर्मे मस्तक, शिखामें शिखा, दोनों स्तन- प्रदेशमें कवच नेत्रद्वय नेत्र तथा दोनों हाथोंमें अस्त्र-बीजमन्त्रको अवस्थित करना चाहिये। Garuda Purana PDF Book Free

तत्पश्चात् पूर्वादि दिशाओंमें यमाक्रम सङ्करंण आदिके बीजमन्त्रोंको विन्यस्त करनेका विधान है। तदनन्तर रह पूर्व और पश्चिम दिशाके द्वारपर ॐ नमः कहकर वैनतेयको प्रतिशित करे। उसके बाद दक्षिण द्वारपर ॐ सुदर्शनाय नमःॐ का उच्चारण करके हजार अरोवाले सुदर्शन चक्रको वह स्थापना करे। तदनन्तर दक्षिण द्वारपर ये नमः यान्यास करके उत्तर द्वारा ॐ नमः मन्यसे लक्ष्मीको प्रतिक्षित करे

तदनन्तर उन्हीं बीजमन्त्रोंसे दिशाओंको प्रतिबद्ध करके साधक पूजनकी क्रिया प्रारम्भ करें। सबसे पहले एकाग्रचित्त होकर उसको अपने हृदयमें योगपीठका ध्यान करना चाहिये। उसके बाद वह आग्नेयादिसे पूर्व दिशाओंमें यथाक्रम धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्यको विन्यस्त करके पूर्वादि दिशाओं अपदिकान्यास करे यथा अग्निकोणमें ॐ नमः कोण ‘ॐ ज्ञानाय नमः’, वायुकोजमें ‘ॐ नमः’ और ईशानको नमः पूर्व दिशामें अदा अनाय नमः पश्चिम दिशाॐ नमः तथा काम करे।

साधकको इसके बाद उत्तर दिशामें ‘ॐ कोणसभा सूतजीने कहा- हे ऋषियो। अब में पद्ममुख शिवकी पूजाका वर्णन करूंगा, जो साधकको भुक्ति और मुक्ति दोनों प्रदान करती है। साधकको सबसे पहले निम्र मन्त्र उन देवका आवाहन करना चाहिये- होना चाहिये, जो अस्य है। इसके साथ ‘ही’ लिख देना चाहिये यह महामन्त्र है और सम्पूर्ण अर्थोको देनेवाला है। Garuda Purana PDF Book Free

साधक मूर्ति ऊर्ध्वभागसे लेकर मूर्तिक चरणपर्यन्त अपने दोनों हाथोंसे स्पर्श करे और महामुद्रा दिखाये इसके ‘ बाद सम्पूर्ण अङ्ग न्यास करन्यास आदि करे। ॐ भूर्विष्णवे आदिभूताय सर्वाधाराय मूर्तये स्वाहा। पुनः ॐ सद्योजाताय नमः’ कहकर साधक सद्योजातका आवाहन करे इन सद्योजातकी आठ कलाएँ कही गयी है। उनका नाम सिद्धि ऋद्ध, धृति, लक्ष्मी, मेधा, कान्ति, स्वधा और स्थिति है। सद्योजातकी पूजा करनेके पश्चात् ‘ॐ नमः इत्यादि मन्त्रोंसे उन सभी आठ कताओंकी पूजा करनेका विधान है।

तदनन्तर ॐ वामदेवाय नमः इस मन्त्रसे साधक वामदेवकी पूजा करे। वामदेवकी तेरह कलाएँ हैं, जिन्हें रजा रक्षा, रति पाल्पा, कान्ति, तृष्णा, मति, क्रिया, कामा, बुद्धि, रात्रि आसनी तथा मोहिनी कला कहा गया है। इन कलाओंक अतिरिक्त मनोन्मनी, अघोरा, मोहा, सुधा, निद्रा, मृत्यु माया तथा धर्मका नामकी आठ कलाएँ (अधोरकी) हैं। तदनन्तर वह अस्त्रमन्त्र ॐ फट्’ का उच्चारण करता हुआ दाहिनी हथेली से स्पर्श करके शोधन करे।

उसके बाद कनिष्ठा अँगुलीसे लेकर महामन्त्रसे ही तर्जनी अंगुलीतक न्यास करना चाहिये। अब मैं हृदय कमलकी कर्णिकामें पूजनकी विधि बतलाऊँगा उसमें धर्म, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्यादिको अर्थना करे सर्वप्रथम आवाहन, स्थापन, पाद्य, अयं, आचमन, खान अर्पित करे तथा अन्य विविध मानस उपचारोंको करके तदाकार हो जाय। उसके बाद अग्रिमें आहुति देनेकी विधि कह रहा हूँ। साधकको पूजा स्थलपर अग्रि प्रज्वलित करनेके लिये ‘ॐ फट्’ अस्त्रमन्त्रसे एक कुण्डका निर्माण करना चाहिये। Garuda Purana PDF Book Free

तत्पश्चात् ॐ हूँ इस कवचमा उस उक्त समस्त कलाओंका पूजन करनेके बाद साधकको कुण्डका अभ्युक्षण करके मानसिकरूपसे उसमें शक्तिका ‘ॐ पुरुषाय नम:’ इस मन्त्रसे तत्पुरुषदेवकी पूजा विन्यास करे। उसके बाद साधकको हृदय अथवा शक्तिकुण्ड।