Manusmriti PDF Book in Hindi – संपूर्ण मनुस्मृति हिंदी

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मनुस्मृति का नवीन संस्करण पाठकों को सौंपते हुए मुझे प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। लगभग एक वर्ष से यह संस्करण समाप्त था और पाठकों तथा संस्थाओं की मांग दिन- प्रति-दिन बढ़ती जा रही थी। ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित मनुस्मृति के अनुसन्धानकार्य और भाष्य को पाठकों ने अत्यधिक पसन्द किया, इसके लिए में उनका धन्यवाद करता हूँ । मनुस्मृति ट्रस्ट का एक गौरवपूर्ण और अनुपम प्रकाशन है।

Manusmriti PDF Book

Name of Book Manusmriti
PDF Size 74.5 MB
No of Pages 1357
Language  Hindi
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About Book – Manusmriti PDF Book

ट्रस्ट ने मनुस्मृति के प्रक्षेपों के अनुसन्धान का जो प्रामाणिक कार्य जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया है, ऐसा आजतक किसी ने नहीं किया था। यह नवीन संस्करण और भी विशेषताएं लिये हुए है। इसमें मनुस्मृति के मूल्यांकन से सम्बन्धित तथा श्लोकसम्बन्धी समीक्षा से सम्बन्धित लगभग २५० पृष्ठों की नयी सामग्री प्रदान की जा रही है। लेखक ने मनु और मनुस्मृति से सम्बन्धित विवादों प्रश्नों पर प्रक्षेपरहित नवीन दृष्टिकोण से सप्रमाण और युक्तियुक्त विवेचन किया है।

वेदों तथा अन्य शास्त्रग्रन्थों के प्रमाणों से मनु के भावों को उद्घाटित एवं पुष्ट किया है। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह संस्करण पाठकों और अनुसन्धानकर्ताओं के लिए और अधिक उपयोगी सिद्ध होगा । ट्रस्ट का प्रमुख उद्देश्य है – आर्ष साहित्य का प्रचार-प्रसार एवं उसका तथा उस पर किये गये अनुसन्धानकार्य का प्रकाशन । किन्तु प्रचीन आर्ष साहित्य के सन्दर्भ में आज हमारे सामने जो सबसे बड़ी समस्या उपस्थित होती है, वह है उसमें प्रक्षेपों की मिलावट।

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वेदों को छोड़कर प्राय: समस्त प्राचीन ग्रन्थों में स्वार्थी और दुर्भावनाग्रस्त लोगों ने प्रक्षेप कर डाले है । प्राचीन काल में यह काम अत्यन्त आसानी से हो सकता था, क्योंकि ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियां होती थीं। जिसके पास जो प्रति थी, उसने उसमें मनचाही सामग्री जोड़ दी। आज प्रकाशन के युग में भी लोग पूर्ववर्ती लेखकों की पुस्तकों में मनचाहा संशोधन कर डालते है ।

मैं समझता हूं कि आज हमारे सामने जो सबसे पहली और बड़ी चुनौती है, वह हे ‘आर्ष साहित्य को प्रक्षेपों से रहित करना’। क्योंकि जब तक उनमें प्रक्षेप है, तब तक उन पर तरह-तरह की शंकाएं और आक्षेप उठते रहेंगे। उनकी प्रामाणिकता में सन्देह रहेगा और उनके प्रचार में वे बाधा बनेंगे। प्रक्षेपों ने प्रचीन साहित्य के वास्तविक स्वरूप को विकृत कर दिया है। उससे प्राचीन भारत की संस्कृति सभ्यता और इतिहास का स्वरूप भी विकृत हो गया है।

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यह रूप तभी स्वच्छ हो सकता है, जब अनुसन्धान करके उनके प्रक्षेपों का निवेश किया जाये। इस जटिल कार्य को करने का दायित्व ट्रस्ट ने स्वीकार किया है और इस कार्य की पहले भेंट यह मनुस्मृति है। इसके प्रक्षेपों को निकालने में कृतित्व पर आधारित तटस्थ मानदण्डों को अपनाकर जो परिश्रम किया गया है. उसका अनुमान आपको प्रथम संस्कण से हो गया होगा।

ट्रस्ट की ओर से इसी पद्धति पर वाल्मीकि रामायण पर भी कार्य चल रहा है। उस कार्य को भी प्रो. सुरेन्द्र कुमार ही सम्पन्न कर रहे है। एक-आध वर्ष में ही वह पाठकों के सामने आ जायेगा। इस जटिल और परिश्रमसाध्य कार्य को सम्पन्न करने के लिए में श्री सुरेन्द्र कुमार जी को बहुश: धन्यवाद देता हूँ श्री राजवीर जी शास्त्री ने भी इस कार्य में समय-समय पर अपने सुमाव देकर इसे परिष्कृत करने में सहयोग किया है, एतदर्थ में उनका भी आभारी हूँ।

इनके अतिरिक्त जिन विद्वानों, पाठकों या अन्य व्यक्तियों ने प्रत्यक्ष या परोक्षरूप से इस कार्य में किसी भी प्रकार का योगदान किया है, उनका भी में धन्यवादी हूं। आशा करता हूं कि इस अत्यावश्यक एवं महान कार्य को पूर्ण करने में ट्रस्ट को सदैव सभी का सहयोग प्राप्त होता रहेगा। प्रकाशन के साथ-साथ अग्रिम अनुसन्धान कार्य भी चलता रहा था। भूमिका भाग पहले छप चुका था और प्रक्षेपानुन्धान का कार्य उसके बाद भी होता रहा । Manusmriti PDF Book

इन तथा कुछ अन्य कारणों से प्रथम संस्करण में कुछ कमियां और त्रुटियां रह गयी थीं। उनके लिए हमें खेद हैं। अग्रिम संस्करणों में उन त्रुटियों को दूर कर दिया गया है। साथ ही पाठकों के लिए बहुत सारी नयी सामग्री भी इसमें दी जा रही है। भूमिका में मनु एवं मनुस्मृति से सम्बन्धित नये विषयों पर भी विचार किया गया है और नये दृष्टिकोण से निर्णय लेने का प्रयास किया गया है।

इस बात की अत्यन्त आवश्यकता है कि प्रक्षेपानुसन्धान के परिप्रेक्ष्य में मनुस्मृति का पुनर्मूल्यांकन किया जाये। उसी आवश्कता की पूर्ति के लिए यह एक प्रयास है। मैं आशा करता हूँ कि यह संस्करण पाठकों के लिए और अधिक उपयोगी सिद्ध होगा।  स्मृतियों या धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सर्वाधिक प्रामाणिक आर्य ग्रन्थ है। मनुस्मृति के परवर्तीकाल में अनेकों स्मृतिया प्रकाश में आयी किन्तु मनुस्मृति के तेज के समक्ष वे टिक नहीं।

सकी अपना प्रभाव न जमा सकी, जबकि मनुस्मृति का वर्चस्व आज तक पूर्ववत विद्यमान है। मनुस्मृति में एक ओर मानव एवं मानव समाज के लिए सांसारिक श्रेष्ठ कत्तव्यों का विधान है, तो साथ ही मानव को मुक्ति प्राप्त कराने वाले आध्यात्मिक उपदेशों का निरूपण भी है. इस प्रकार मनुस्मृति भौतिक एवं आध्यात्मिक आदेशों— उपदेशों का मिलाजुला अनूठा शास्त्र है। Manusmriti PDF Book

इसके साथ-साथ सभी धर्मशास्त्रों से प्राचीन होने और सृष्टि के प्रारम्भिक काल का शास्त्र होने का गौरव भी मनुस्मृति को ही प्राप्त है। शतपय तैत्तिरीय, काठक, मैत्रायणी, ताण्ड्य आदि ब्राह्मणों में मनु का उल्लेख होना और “मनुवे यत्किञ्चावदत तद् भैषजम” अर्थात् ‘मनु ने जो कुछ कहा है, वह मेषज = औषध के समान गुणकारी एवं कल्याणकारी है, आदि वचनों का प्राप्त होना मनुस्मृति को प्राचीनतम और विशिष्ट धर्मशास्त्र सिद्ध करता है।

महर्षि दयानन्द ने मनुस्मृति का काल आदिसृष्टि में माना है। उसका अभिप्राय यही है कि मनु मानव एवं मानव समाज की मर्यादाओं, व्यवस्थाओं के सर्वप्रथम उपदेष्टा थे। मनु की व्यवस्थाएं सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक रूप में सत्य एवं व्यावहारिक है। इसका कारण यह है कि मनुस्मृति वेदमूलक है। पूर्णत: वेद- मूलक होना मनुस्मृति की एक ओर परमविशेषता है। इस विशेषता के कारण भी मनुस्मृति को वर्णन होने के कारण मनुस्मृति ही सब में प्रधान और प्रशंसनीय है।

इस प्रकार अनेकानेक विशेषताओं के कारण मनुस्मृति मानवमात्र के लिए उपयोगी एवं पठनीय है किन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि आज ऐसे उत्तम और प्रसिद्ध ग्रन्थ का पठन-पाठन लुप्त- प्राय होने लग रहा है। इसके प्रति लोगों में अश्रद्धा की भावना घर करती जा रही है। इसका कारण है – ‘मनुस्मृति में प्रक्षेपों की भरमार होना प्रक्षेपों के कारण मनुस्मृति का उज्ज्वल रूप गन्दा एवं विकृत हो गया है। Manusmriti PDF Book

परस्परविरुद्ध, प्रसंगविरुद्ध एवं पक्षपातपूर्ण बातों से मनुस्मृति का वास्तविक स्वरूप और उसकी गरिमा विलुप्त हो गये हैं एक महान तत्त्वष्टा ऋषि के अनुपम शास्त्र को प्रक्षेपकर्ताओं ने विविध प्रक्षेपों से दूषित करके न केवल इस शास्त्र के साथ अपितु महर्षि मनु के साथ भी अन्याय किया है। इस अनुसन्धानकार्य एवं भाष्य की विशेषताएं- – (१) प्रक्षिप्त श्लोकों के अनुसन्धान के मानदण्डों का निर्धारण और उन पर समीक्षा:

इस प्रकाशन का सबसे प्रमुख प्रयोजन यही है कि मनुस्मृति के दूषित, गदले, विकृत रूप को दूरकर उसके वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत करना। वैसे तो बाजार में हिन्दी-संस्कृत की टीकायुक्त मनुस्मृति के सैकड़ों प्रकाशन उपलब्ध हैं, और कई सौ वर्षों से मनुस्मृति पर लेखन कार्य होता चला आ रहा है, किन्तु अभी तक इस दृष्टि से और इस रूप में किसी भी लेखक ने कार्य नहीं किया।

महर्षि दयानन्द के वचनों से प्रेरणा एवं मार्गदर्शन प्राप्त करके मनुस्मृति के प्रक्षेपों के अनुसन्धान का यह कठिन एवं उलझनभरा कार्य प्रारम्भ किया और कई वर्षों तक सतत प्रयास के परिणामस्वरूप मनुस्मृति के प्रक्षेपों को निकालने का कार्य सम्पन्न हो पाया है। यद्यपि अभी इस अनुसन्धान कार्य को ‘अन्तिम’ नहीं कहा जा सकता, किन्तु इतना अवश्य है कि अधिकांश प्रक्षेपों के निकल जाने से मनुस्मृति का वह दूषित, विकृत और गदला स्वरूप पर्याप्त रूप में दूर हो गया और उसका उज्ज्वल वास्तविक रूप सामने आया है। Manusmriti PDF Book Download

प्रक्षेपों को निकालने में किसी पूर्वाग्रह या पक्षपात की भावना का आश्रय न लेकर तटस्थता को अपनाया है और ऐसे ‘आधारों’ या ‘मानदण्डों को आधार बनाया है, जो सर्वसामान्य है। वे हैं (१) अन्तर्विरोध या परस्परविरोध (२) प्रसंगविरोध (३) विषयविरोध, (४) अवान्तरविरोध, (५) शैलीविरोध. (६) पुनरुक्ति. (७) वेदविरोध। ये सभी मानदण्ड कृति के अन्त साक्ष्य पर आधारित है।

मनुस्मृति के सभी श्लोकों को यथास्थान, यथाक्रम रखते हुए वहाँ जहाँ प्रक्षेप है, वहां-वहां उन पर पूर्वोक्त आधारों के नामोल्लेख पूर्वक ‘अनुशीलन’ नामक समीक्षा दे दी गयी है, जिससे पाठक स्वयं भी उनकी परीक्षा कर सकें उपलब्ध मनुस्मृतियों में कुल श्लोक संख्या २६८५ हे प्रक्षेप- नुसन्धान के पश्चात १४७१ श्लोक प्रक्षिप्त सिद्ध हुए है और १२१४ श्लोक मौलिक अध्यायानुसार किया जाये।

ऐसी बहुत सी मान्यताएं है, जिन्हें स्वयं मनु ने ही अन्य श्लोकों में यत्र-तत्र स्पष्ट या पुष्ट किया है। ऐसे श्लोकों को अथवा उनकी संख्या को सम्बद्ध श्लोक पर अनुशीलन समीक्षा में तुलना या अन्यत्र व्याख्यात के रूप में दे दिया है। इसके अतिरिक्त श्लोकव्याख्या के बीच में भी बृहतकोष्ठक के अन्तर्गत ऐसे श्लोकों की संख्या दी हुई है, जिनसे उस विषय पर प्रकाश पड़ता है। Manusmriti PDF Book Download

मनु की मान्यता के अनुकूल और प्रसंगसम्मत अर्थ परम्परागत संस्कृत एवं हिन्दी के भाष्यों में कुछ श्लोकों के अर्थ ऐसे किये गये है जो मनुस्मृति की मान्यता के अनुकूल सिद्ध नहीं होते और न प्रसंगसम्मत है, जैसे १२.३ ६. २२. १३७ (२।१८) ३।५६ आदि। कुछ श्लोकों के अर्थों में क्रमबद्धता नहीं बन पायी है, जैसे- १।१४ १५ १६ १८ १९ आदि। ऐसे सभी श्लोकों का अर्थ मनु की मान्यता के अनुकूल, प्रसंग एवं क्रमसंगत किया गया है।

और उनकी समीक्षा में उस अर्थ की पुष्टि में कारण युक्तियाँ एवं प्रमाण दिये गये है। साथ ही टिप्पणी में उन श्लोकों का प्रचलित अर्थ भी दे दिया गया है, ताकि पाठक उन पर विचार कर सके। इस माध्य में ऐसे परिवर्तित अर्थ वाले श्लोकों की संख्या ५४ है। साथ ही टिप्पणी में उन श्लोकों के प्रचलित अर्थ भी दे दिये है, ताकि पाठक उन अर्थों पर तुलनापूर्वक विचार कर सके।

(५) भूमिका-भाग में मनुस्मृति का नया मूल्यांकन- ग्रन्थ के प्रारम्भ में मनुस्मृति से सम्बन्धित ‘मनुस्मृति का पुनर्मूल्यांकन’ नामक एक विस्तृत भूमिका दी गयी है। इसमें मनुस्मृति से सम्बन्धित सभी प्रश्नों यथा मनु एवं मनुस्मृति का काल. मनुस्मृति का आच और वर्तमान रूप मनुस्मृति के प्रक्षेपों के अनुसन्धान के आधार और उनका परिभाषा उदाहरण-पूर्वक विवेचन, मनुस्मृति में अध्यायविभाजन, मनु की मौलिक मान्यताएं और उनके कारण, आदि पर युक्ति प्रमाण-पूर्वक विचार किया गया है। यह विवेचन उक्त विषयों पर एक नया मूल्यांकन है। – Manusmriti PDF Book Download

(३) महर्षि दयानन्द के अर्थ और भावार्थ महर्षि दयानन्द ने अपने ग्रन्थों के लिए मनुस्मृति को प्राथमिक आधार माना है, और लगभग ५१४ श्लोकों या श्लोकखण्डों को प्रमाणरूप में उद्धृत किया है, अनेक श्लोकों के केवल मात्र ग्रहण किये. है। महर्षि मनु के श्लोकों पर महर्षि दयानन्द का समग्र माध्य प्रस्तुत करना, इस प्रकाशन की दूसरी प्रमुख विशेषता है। अपने ग्रन्थों में महर्षि दयानन्द ने मनुस्मृति के जिस-जिस श्लोक का भाष्य किया है।

उस श्लोक पर केवल महर्षि का ही माध्य दिया गया है और शेष श्लोकों पर मेरा माध्य है। यदि महर्षि ने किसी श्लोक को अपने ग्रन्थों में एक से अधिक बार उद्धृत करके भाष्य किया है, तो उन सभी अर्थी को इसमें उद्धृत कर दिया है। जहां मनु के श्लोकों के केवल भाव ही महर्षि के अन्यों में उपलब्ध हुए, वहां तच श्लोक पर वे भाव भी सकलित कर दिये है। इन सभी बातों से मनु के भावगाम्भीर्य पर अधिकाधिक प्रकाश पड़ेगा।

महर्षि के माध्य से मनु के श्लोकों की अनेक गुत्थियां सुलफ जाती है। एक मृति ग्रन्थ पर एक ऋषि का ही भाष्य होने से सोने में सुगन्ध’ वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है और उसका महत्त्व कई गुणा बढ़ जाता है। इसी बात को ध्यान में रखकर महर्षि के माध्य को उद्धृत किया है। इस माध्य में कुल ४२२ श्लोकों या श्लोकखण्डों पर महर्षि के अर्थ और भावार्थ दिये गये हैं, जिनमें ३४२ श्लोकों पर महर्षि का अर्थ है और ८० श्लोकों पर केवल भावार्थ है। जिन श्लोकों पर महर्षि का केवल भावार्य है, उन पर पदार्थभाष्य मेरा किया हुआ है। Manusmriti PDF Book Free

मनुस्मृति प्रथम बार हिन्दी पदार्थ टीका प्रस्तुत – पहली बार सम्पूर्ण मनुस्मृति के संस्कृत पदों को रखकर उनके साथ हिन्दी का अर्थ प्रस्तुत किया गया है। इससे विद्यार्थियों को सुगमता होगी और थोड़ी संस्कृत जानने वाले स्वाध्यायी पाठक भी संस्कृत पदों के ज्ञान-मनन पूर्वक श्लोकों का अर्थ आसानी से ग्रहण कर सकेंगे। इस दृष्टि से यह प्रकाशन सर्वसाधारण के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध होगा। (८) सभी अनुक्रमणिकाओं एवं सूचियों से युक्त –

किसी भी ग्रन्थ में अनुक्रमणिकाएं और विषयसूचियां अत्यन्त उपयोगी और सुविधाजनक होती है। छात्रों और पाठकों की सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए इस प्रकाशन में श्लोकों की उभयपंक्ति- अनुक्रमणिका विषयानुक्रमणिका, अनुशीलन समीक्षा में विचारित विषयों की सूची संकेत सूची, हृदाशुद्धि पत्र आदि समस्त आवश्यक सामग्री का समावेश किया गया है। (५) मनुस्मृति के प्रकरणों का उल्लेख-

मनु की यह शैली है कि वे प्रत्येक मुख्य विषय या प्रकरण को प्रारम्भ करते समय उसका स्वयं संकेत करते हैं या समाप्ति पर विषय का संकेत करते हैं। मनु द्वारा प्रदर्शित संकेतों के अनुसार मनुस्मृति में २१ प्रकरण या मुख्यविषय बनते हैं। इस संस्करण में उनका यथास्थान उल्लेख कर उसकी सीमा का भी उल्लेख कर दिया है। मौलिक श्लोकों का ‘विशुद्ध मनुस्मृति’ के नाम से पृथक संस्करण-  Manusmriti PDF Book Free

मनुस्मृति का, इस संस्करण में मौलिक सिद्ध हुए श्लोकों को छांटकर प्रक्षिप्त श्लोकों से रहित विशुद्ध मनुस्मृति’ के नाम से एक पृथक संस्करण भी प्रकाशित किया जा रहा है। इसमें मनु के उपदेशों आदेशों को अविरल रूप से पढ़ने का आनन्द प्राप्त हो सकेगा। आभार प्रदर्शन सर्वप्रथम आर्य साहित्य प्रचार ट्रस्ट के संस्थापक एवं संचालक स्वर्गीय सेठ दीपचन्द जी आर्य का मैं सदैव अत्यन्त आभारी रहूंगा।

जिनकी सतत प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से मनुस्मृति का यह प्रक्षेप- अनुसन्धान तथा भाष्य का कार्य प्रारम्भ एवं सम्पन्न हुआ, जिन्होंने इस बृहत ग्रन्थ के प्रथम संस्करण के प्रकाशन का भार अपने कन्धों पर वहन किया सेठ जी ने प्रक्षेपानुसन्धान सम्बन्धी सुझाव 1 और मार्गदर्शन देकर इस कार्य को और अधिक परिष्कृत करने में भी सहयोग किया, इसके लिये भी मैं उनका आभारी रहूंगा ।

आदि कई नामों से उल्लेख आता है। मनुस्मृति भारतीय साहित्य में सर्वाधिक चर्चित है. क्योंकि अपने रचना काल से ही यह सर्वाधिक प्रामाणिक, मान्य एवं लोकप्रिय ग्रन्थ रहा है। मृत्तियों में इसका स्थान सबसे कक्ष है। यही कारण है कि परवर्ती काल में अनेक स्मृतियां प्रकाश में आयी किन्तु मनुस्मृति के प्रभाव के समक्ष टिक न सकी, अपना प्रभाव न जमा सकीं जबकि मनुस्मृति का वर्चस्व आज तक बना हुआ है Manusmriti PDF Book Free