Padma Purana PDF in Hindi – संपूर्ण पद्म पुराण हिंदी

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र्म कृतज्ञ दयालु मधुरभाषी, सम्मान के योग्य पुरुषोंको सम्मान देनेवाले, विद्वान् भक्त तथा साधुओंपर हो तुम प्रणामपूर्वक मेरी शरण आये हो अतः मैं तुमपर बहुत प्रसन्न हूँ। तुम जो चाहो, मैं तुम्हारे प्रत्येक का उत्तर दूँगा।” ओकिया। बब्द- तथारूप आकाशने विकृत होकर प रचना की। उससे अत्य हुआ, free गुण पर्श माना गया है। तदनन्तर आकाशसे आच्छादित होनेपर वायुविकार आया और उसने रूप-तपत्रसृष्टी अधिके रूपमें प्रकट हुई।

Padma Purana PDF Book

Name of Book Padma Purana
PDF Size 71.7 MB
No of Pages 1001
Language  Hindi
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About Book – Padma Purana PDF Book

रूप उसका गुणहता है। तत्पश्चात् स्पर्श-तत्वरूप तेजको सब ओरसे आवृत किया। इससे अनित्यने विकारको प्राप्त होकर रस- तन्मात्राको उत्पन्न किया। उससे जलकी उत्पत्ति हुई, जिसका गुण रस माना गया है। फिर रूप-तवाले तेज रस-रूप- तत्त्वको सब ओरसे आच्छादित किया। इससे विकृत होकर जलतत्व गन्यमात्राकी सृष्टि की, जिससे यह पृथ्वी उत्पन्न हुई। पृथ्वीका गुण गन्ध माना गया है।

इन्द्रियाँ तैजस कहलाती है [क्योंकि वे राजस अहङ्कारसे प्रकट हुई है] इन्द्रियोंके अधिष्ठाता दस देवता वैकारिक कहे गये है [क्योंकि उनकी उत्पत्ति सात्विक अहङ्कारसे हुई है] इस प्रकार इन्द्रियोंके अधिष्ठाता दस देवता और ग्यारहवाँ मन ये वैकारिक माने गये हैं। त्वचा, चक्षु, नासिका, जिह्वा और क्षेत्र इन्द्रियाँ शब्दादि विषयोंका अनुभव करानेके साधन हैं।

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अतः इन पाँचोंको बुद्धियुक्त अर्थात् ज्ञानेन्द्रिय कहते हैं गुदा, उपस्थ, हाथ, पैर और वाक्ये क्रमशः मल- त्याग, मैथुनजनित सुख, शिल्प-निर्माण (हस्तकौशल), गमन और शब्दोचारण- इन कमोंमें सहायक है। इसलिये इन्हें कर्मेन्द्रिय माना गया है। भीपजीने कहा- भगवन्। पूर्वकालमें भगवान् किस स्थानपर रहकर देवताओं आदिको सृष्टि की थी, यह मुझे बताइये उन महात्माने कैसे ऋषियों तथा देवताओंको उत्पन्न किया?

कैसे पृथ्वी बनायी ? किस तरह आकाशको रचना की और किस प्रकार इन समुद्रोको प्रकट किया? भयङ्कर पर्वत, वन और नगर कैसे बनाये ? मुनियों, प्रजापतियों, श्रेष्ठ सप्तर्षियों और भित्र-भित्र वर्णोंको वायुको, गन्धयों, यक्षों, राक्षसों, तीथों नदियों, सूर्यादि हों तथा तारोंको भगवान् ब्रह्माने किस तरह उत्पन्न किया ? इन सब बातोका वर्णन कीजिये।

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पुलस्त्यजीने कहा- पुरुषश्रेष्ठ भगवान् ब्रह्मा साक्षात् परमात्मा है। वे परसे भी पर तथा अत्यन्त श्रेष्ठ है। उनमें रूप और वर्ण आदिका अभाव है। वे यद्यपि सर्वत्र व्याप्त है, तथापि ब्रह्मरूपसे इस विश्वको उत्पत्ति करनेके कारण विद्वानोंके द्वारा ब्रह्मा कहलाते हैं। उन्होंने पूर्वकालमें जिस प्रकार सृष्टि रचना की, वह सब में बता रहा हूँ सुनो, सृष्टिके प्रारम्भकालमें जब जगत्के स्वामी कमलके आसनसे उठे तब सबसे पहले उन्होंने महत्तत्वको प्रकट किया; फिर महत्तत्त्वसे वैकारिक (सायिक), तेजस (राजस) तथा भूतादिरूप तामस-

तीन प्रकारका अहङ्कार उत्पन्न हुआ, जो कर्मेन्द्रियोसहित बीर। आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी पाँच नेन्द्रियों तथा पञ्चभूतका कारण है। पृथ्वी, जल, क्रमशः शब्दादि उत्तरोत्तर गुणोंसे युक्त है अर्थात तेज, वायु और आकाश ये पाँच भूत है। इनमेंसे आकाशका गुण शब्द: वायुके गुण शब्द और स्पर्श एक-एक क्रमशः वर्णन करता हूँ [भूतादि तेजके गुण शब्द, स्पर्श और रूप के शब्द स मरने होकर शब्दमात्राको रूप और रस तथा पृथ्वी के शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं उप उससे शब्द गुणवाले आकाशका प्रादुर्भाव गन्धये सभी गुण है। उक्त पाँच भूत शोर और हुआ भूतादि (तामस अहङ्कार) ने शब्द-तमरूपमूद * अर्थात् सुख दुख और मोहयुक्त है। 

पुलस्त्यजी बोले- कुरुनन्दन। कहते हैं पहलेके पूजा-बर्गको सृष्टि संकल्पसे, दर्शनसे तथा स्पर्श करनेसे होती थी किन्तु प्रचेताओंके पुत्र दक्ष प्रजापतिके बाद मैथुनसे प्रजाको उत्पत्ति होने लगी। दसने आदिमें जिस प्रकार प्रजाको सृष्टि की, उसका वर्णन सुनो। जब वे [पहलेके नियमानुसार स्कूल्प आदिसे] देवता, ऋषि और नागों की सृष्टि करने लगे किन्तु प्रजाकी वृद्धि नहीं हुई, तब उन्होंने मैथुनके द्वारा अपनी पत्नी वीरिणीके गर्भसे साठ कन्याओंको जन्म दिया। Padma Purana PDF Book

उनसे उन्होंने दस धर्मको, तेरह कश्यपको, सत्ताईस चन्द्रमाको चार अरिष्टनेमिको दो भृगुपुत्रको दो बुद्धिमान् कृश्वश्वको तथा दो महर्षि अङ्गिराको ब्याह दीं। वे सब देवताओंको जननी हुई। उनके वंश विस्तारका आरम्भ से ही वर्णन करता हूँ सुनो। अरुन्धती, वसु, जामी, लंबा, भानु, मरुत्वती, सङ्कल्पा, मुहूर्ता, साध्या और विश्वा—ये दस धर्मको पत्रियों बतायी गयी हैं। इनके पुत्रोंके नाम सुनो विश्वाके गर्भ से विश्वेदेव हुए। साध्याने साध्य नामक देवताओंको जन्म दिया।

महत्वती मरुत्वान् नामक देवताओंको उत्पत्ति हुई। वसुके पुत्र आठ वसु कहलाये। भानुसे भानु और मुहूर्तासे मुहूर्ताभिमानी देवता उत्पन्न हुए लेबासे घोष, जामीसे नागवीथी नामको कन्या तथा अस्थती के गर्भ से पृथ्वीपर होनेवाले समस्त प्राणी उत्पन्न हुए। सङ्कल्पाये सङ्कल्पोंका जन्म हुआ। अब वासुकी सृष्टिका वर्णन सुनो जी देवगण अत्पन्न प्रकाशमान और सम्पूर्ण दिशाओंमें व्यापक है, वसु कहलाते हैं उनके नाम सुनेगे आप, ध्रुव, सोम, है। आप के पुत्र है और रहते है।

और सोम पुत्र हुए हुआ उनके उपर 1 हुए कृतिकाओंको सन्तान होनेके कारण कुम्हारको कार्तिकेय भी कहते हैं। प्रत्यूषके पुत्र देवल नामके मुि हुए प्रभाससे प्रजापति हुआ शिल्पकला जाता है। ये महल, पर, उद्यान, प्रतिमा, आभूषण, तालाब, उपवन और कूप आदिका निर्माण करनेवाले है। देवताओंक कारीगर वे ही है। अनेकवाद अहिर्बुध्द बहुरूप, त्र्यम्बक, सावित्र, जयन्त पिनाकी और अपराजितये ग्यारह रुद्र कहे गये हैं, ये खामी हैं। Padma Purana PDF Book

इनके मानस सङ्कल्पसे उत्पन्न चौरासी करोड़ पुत्र है. जो रुद्रगण कहलाते हैं। वे श्रेष्ठ त्रिशूल धारण किये रहते है उन सबको अविनाशी माना गया है। जो गर सम्पूर्ण दिशाओंमें रहकर सबकी रक्षा करते हैं. वे सब सुरभिके गर्भ से उत्पन्न उन्होंके पुत्र-पौत्रादि है। अब मै कश्यपजीकी स्त्रियोंसे उत्पन्न पुत्र-पौत्रोका वर्णन क अदिति, दिति, दनु, अरिष्टा, सुरसा सुरभि, विनता, ताम्रा, क्रोधवशा, इरा, कडू, खसा और मुनिदे कश्यपजीको पलियोंके नाम है।

इनके पुत्रोका वर्णन सुनो। चाक्षुष मन्वन्तरमे जो तुषित नामसे प्रसिद्ध देवता थे, वे ही वैवस्वत मन्वन्तरमे बारह आदित्य हुए। उनके नाम है- इन्द्र, धाता, भग, त्वष्टा, मित्र, वरुण, अमा विवस्वान्, सविता, पूषा, अंशुमान् और विष्णु ये सहस्रो किरणोंसे सुशोभित बारह आदित्य माने गये हैं। इन श्रेष्ठ पुत्रोंको देवी अदितिने मरीचिदन कश्यपके अंशसे उत्पन्न किया था नामक हुए. उन्हें देव-प्राण कहते हैं।

प्रत्येक घर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभाग आठवार और प्रत्येक एवं स्थान पाम पुण्यमय तीर्थ बन गया। नदी, शूलतापी, पयोष्णी, पयोष्णी-सङ्गमप्रियमे ये भी के लिये अत्यन्त उत्त गतवर्ती पुण्यसलिये है, इ महानदी, महाशाल तीर्थ, गोमती, वरुणा तीर्थ वरतीर्थ हरतीर्थ एवनसलिला नदी, महा महाल दशन महानदी शतरुद्रा, शताढा, पितृपदपुर, अङ्गारवाहिका नदी, शोण (सोन) और घर (घाघरा) नामवाले दो नद परमपावन कालिका नदी और शुभदायिनी पितरा नदी ये समस्त पितृतीर्थ खानदान के लिये उत्तम माने गये है। Padma Purana PDF Book

इन तोमि जो पिण्ड आदि दिया जाता है, वह अनन्त फल देनेवाला माना गया है। शतवटा नदी ज्वाला, शरद्री नदी, श्रीकृष्णतीर्थ द्वारकापुरी, उदक्सरखती, मालवतो नदी, गिरिकर्णिका, दक्षिण- समुद्र के तटपर विद्यमान भूतपापतीर्थ, गोकर्णतीर्थ, राजकर्णतीर्थ परम उत्तम चक्रनदी, श्रीशैल, शाकतीर्थ नारसिंहतीर्थ, महेन्द्र पर्वत तथा पावनसलिला महानदी इन सब तीर्थो में किया हुआ श्राद्ध भी सदा अक्षय फल प्रदान करनेवाला माना गया है। ये दर्शनमात्रसे पुण्य उत्पन्न करनेवाले तथा तत्काल समस्त पापको हर लेनेवाले है।

नागवतीर्थ, सौगिती इन्द्रनी है। इन सबमें दिया हुआ दान का अधिक देनेवाला होता है। पर्यटन किया हुआ भी करोड़ है। इस प्रकार पञ्चतीर्थ और गोदावरी नदी भी चित्र तीर्थ है। गोदावरी दक्षिणवाहिनी नदी है। उसके तटपर हजारों शिवलिङ्ग है। वहीं जामदग्न्यतीर्थ और उत्तम मोदायतनतीर्थ है, जहाँ गोदावरी नदी प्रतीके से सदा प्रवाहित होती रहती है। इसके सिवाण नामका तीर्थ भी है।

वहाँ किये हुए श्राद्ध होग और दान सौ करोड़ गुना अधिक फल देनेवाले होते हैं, सहस्रलिङ्ग और राघवेश्वर नामक तीर्थका माहात्य भी ऐसा ही है। वहाँ किया हुआ श्राद्ध अनन्तगुना फल देता है। शालग्रामतीर्थ, प्रसिद्ध शोणपात (सोनपत) तीर्थ, वैश्वानराशयतीर्थ, सारस्वततीर्थ, स्वामितीर्थ मलंदरा नदी पुण्यसलिला कौशिकी, चन्द्रका, विदर्भा गा प्रामुखा, कावेरी, उत्तराङ्गा और जालन्धर गिरि-इन तीर्थोंमें किया हुआ श्राद्ध अक्षय हो जाता है। Padma Purana PDF Book Download

लोहदण्डतीर्थ, चित्रकूट, सभी स्थानोंमे गङ्गानदीके दिव्य एवं कल्याणमय तट, कुब्बाधक, उर्वशे-पुतिन, संसारमोचन और ऋणमोचनतीर्थ इनमें किया हुआ श्राद्ध अनन्त हो जाता है। अट्टहासतीर्थ गौतमेश्वरतीर्थ प्रसिद्ध पिण्डारकतीर्थ शृङ्गोदातीर्थ, पाण्डे रतीर्थ बिल्कतीर्थ नीलपर्वत, सब तो राजाधिराज बदरीतीर्थ, वसुधारातीर्थ, रामतीर्थ जयन्ती विजय तथा तीर्थ करनेवाले पुरुष परम पदको होते है।

पुण्यमयी तुभद्रा, चक्ररथी, भीमेश्वरतीर्थ, कृष्णवेणा, कावेरी, अञ्जना, पावनसलिला गोदावरी, उत्तम सियातीर्थ और समस्त तीर्थोसे नमस्कृत प्रसिद्ध भगवा है, अत्यन्त उत्तम है। इन सबमें दिया हुआ दान कोटिगुना अधिक फल देनेवाला है। इनके करने पाकि सैकड़ों टुकड़े हो जाते हैं। परम पावन श्रपर्णी नदी, अत्यन्त उत्तम व्यास-तीर्थ शिवतीर्थ सनातन पुण्यतीर्थ पुण्यमय रामेश्वरतीर्थ, वेलायू अमल अमङ्गल अर्थ तपस्याद्वारा पापके सम्पर्क से रहित भगवान् श्रीनारायणको चार वरदान दिये।

राजाओगे श्रेष्ठ अर्जुनने पहले तो आराधना की। इससे सन्तुष्ट होकर श्रीविष्णुने उन्हें अपने लिये एक हजार भुजाएँ माँगी। दूसरे करके द्वारा वरदान दिया, जिससे रजिने देवता, असुर और मनुष्योंको जीत लिया। अब मैं नहुषके पुरोका परिचय देता हूँ। उनके सात पुत्र हुए और वे सब-के-सब धर्मात्मा थे। उनके नाम मे है-यति ययाति, सेयाति, उद्भव, पर, वियति और विद्याति। ये सातों अपने वंशका यश बढ़ानेवाले थे। Padma Purana PDF Book Download

उनमें यति कुमारावस्थामें ही वानप्रस्थ योगी हो गये। ययाति राज्यका पालन करने लगे। उन्होंने एकमात्र धर्मको ही शरण ले रखी थी। दानवराज वृषपर्वाको कन्या शर्मिष्ठा तथा शुक्राचार्यकी पुत्री सती देवयानी ये दोनों उनकी पत्नियाँ थीं ययातिके पांच 1 पुत्र थे। देवयानीने यदु और तुर्वसु नामके दो पुत्रोंको जन्म दिया तथा शर्मिलाने झु, अनु और पूरु नामक तीन पुत्र उत्पन्न किये। उनमें यदु और पूरु ये दोनों अपने वंशका विस्तार करनेवाले हुए यदुसे यादवोंकी उत्पत्ति हुई।

जिनमें पृथ्वीका भार उतारने और पाण्डवोका हित करनेके लिये भगवान् बलराम और श्रीकृष्ण प्रकट हुए हैं। बटुके पाँच पुत्र हुए, जो देवकुमारीके समान थे उनके नाम सहज, क्रोष्टु, नील, अञ्जिक और इन पेश थे। उनके पुत्र राजा शतजित् हुए शह और तीन बड़े पुत्र धर्मके महुआ के संहत और महिमा नाम हुआ महिया हुआ या पुत्र और उन्होंने यह प्रार्थना की कि ‘मेरे राज्यमें लोगोंको अधर्मको बात सोचते हुए भी मुझसे भय हो और वे अधर्मके मार्ग हट जाये।

तीसरा वरदान इस प्रकार था मैं युद्धमें पृथ्वीको जीतकर धर्मपूर्वक बलका संग्रह करूँ। चौथे वरके रूपमें उन्होंने यह माँगा कि ‘संग्राममे लड़ते-लड़ते में अपनी अपेक्षा श्रेष्ठ वीरके हाथसे मारा जाऊँ राजा अर्जुनने सातों द्वीप और नगरोसे युक्त तथा सातों समुद्रोंसे घिरी हुई इस सारी पृथ्वीको क्षात्रधर्मके अनुसार जीत लिया था। उस बुद्धिमान् नरेशके इच्छा करते ही हजार भुजाएँ प्रकट हो जाती थीं। Padma Purana PDF Book Download

महाबाहु अर्जुनके सभी यज्ञोंमें पर्याप्त दक्षिणा बांटी जाती थी सबमे सुवर्णमय यूप (स्तम्भ) और सोनेकी ही 1 वेदियां बनायी जाती थीं। उन यज्ञोंमें सम्पूर्ण देवता सज-धजकर विमानोपर बैठकर प्रत्यक्ष दर्शन देते थे। महाराज कार्तवीर्यने पचासी हजार वर्षोंतक एक राज्य किया ये चक्रवर्ती राजा थे। योगी होनेके कारण अर्जुन समय-समयपर मेपके रूपमें प्रकट हो वृष्टिके द्वारा प्रजाको मुख पहुँचाते थे।

प्रत्यक्षाके आघात से उनकी भुजाओंकी त्वचा कठोर हो गयी थी जब वे अपनी हजारों भुजाओंके साथ खड़े होते थे, उस सम सहस्रकिरणोंसे सुरभितरा सूर्य सम्मान तेजस्वी जान पड़ते थे। परममहाराज अर्जु माहिष्मतीपुरी निवास करते थे और वर्षाकालमे समुद्र वेग भी रोक देते थे। उनक समुद्र उसके देवता जी है। दूसरा मध्यम पुष्कर है जिसके देवता विष्णु है तथा तीसरा कनिष्ठ पुष्कर है, जिसके देवता भगवान् रुद्र है। यह पुष्कर नामक कर आदि प्रधान एवं क्षेत्र है।

वेद भी इसका वर्णन आता || इस तीर्थमे भगवान् ब्रह्मा सदा निवास करते है। उन्होंने इस भागपर बड़ा अनुग्रह किया है पृथ्वीपर विचरनेवाले सम्पूर्ण जीवोपर कृपा करनेके लिये हो ब्रह्माजीने इस तीर्थको प्रकट किया है। यहाँ यज्ञवेदीको उन्होंने सुवर्ण और हरिसे मढ़ा दिया तथा नाना प्रकारके रोंसे सुसज्जित करके उसके फर्शको सब प्रकारसे सुशोभित एवं विचित्र बना दिया। Padma Purana PDF Book Free

तत्पश्चात् लोकपितामह भगवान् ब्रह्माजी यहाँ आनन्दपूर्वक रहने लगे। साथ ही भगवान् श्रीविष्णु, रुद्र, आठो वसु दोनों अश्विनीकुमार, मरुद्गण तथा स्वर्गवासी देवता भी देवराज इन्द्रके साथ यहां आकर विहार करने लगे। यह तीर्थ सम्पूर्ण लोकोंपर अनुग्रह करनेवाला है। मैंने इसकी यथार्थ महिमाका तुमसे वर्णन किया है जो ब्राह्मण अग्रिहोत्र-परायण होकर संहिताके क्रमसे विधिपूर्वक मन्दोका उधारण करते हुए इस तीर्थ में वेदोका पाठ करते है, वे सब लोग ब्रह्माजीके कृपापात्र होकर उन्होंके समीप निवास करते हैं।

इस लोक है? मनुष्यो कैसे लोग माने गये हैं? यह मुझे बताइये। पुलस्त्यजी बोले राज की गयी है-मानस वाचिक और का इसके सिवा भक्तिके तीन भेद और है- वैदिक तथा आध्यात्मिक ध्यान-धारणापूर्वक बुद्धिके द्वारा वेदार्थ जो विचार किया जाता है, उसे मानस भक्ति करते हैं। यह ब्रह्माजीको प्रसन्नता बढ़ानेवाली है। मन्त्र-ज वेदपाठ तथा आरण्यकोंके जपसे होनेवाली भक्ति याचिक कहलाती है।

मन और इन्द्रियोंको रोकनेवाले व्रत, उपवास, नियम, कृच्छ चान्द्रायण आदि भित्र-भित्र व्रत कृष्नास एवं अन्यान्य शुभ नियमों के अनुशानसे जो भगवान्की आराधना की जाती है, उसको कारक भक्ति कहते हैं। यह द्विजातियोंकी विविध भक्ति बतायी गयी। गाय के पी दूध और दही, रम, दीप, कुश, जल, चन्दन, माला, विविध धातुओं तथा पदार्थ काले अगरको सुगन्धसे युक्त एवं घी और गूगुलसे बने हुए धूप, आभूषण, सुवर्ण और रन आदिसे निर्मित विचित्र-विचित्र हार नृत्य, वाद्य, संगीत। Padma Purana PDF Book Free

सब प्रकार के जंगली फल मूलोके उपहार तथा भक्ष्यभोज्य आदि नैवेद्य अर्पण करके मनुष्य ब्रह्माजीके उद्देश्यसे जो पूजा करते हैं, यह लौकिक भक्ति मानी गयी है। वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद के मन्त्रोंका जप और संहिताओंका अध्यापन आदि कर्म यदि ब्रह्माजीके उद्देश्यसे किये जाते है, तो वह वैदिक भक्ति कहलाती है। वेद उचारण- पूर्वक हविष्यको आहुति देकर जो किया सम्पन्न को जाती है वह भी वैदिक भक्ति मानी गयी है।

अथवा पूर्णिमाको जोहो किया जाता है, जो उत्तम दक्षिणा दी जाती है, तथा देवताओंको जो पुरोडाश और किये जाते है ये सब वैदिक अन्तर्गत है। इष्टमि तथा और पृथ्वी, वायु, आकार और उद्देश्य किये हुए जितने कर्म है भीष्णजीने पूछा- भगवन्! तीर्थनिवासी मनुष्यको पुष्कर वनमें किस विधिसे रहना चाहिये ? क्या केवल पुरुषोंको हो वहाँ निवास करना चाहिये या सियोको भी ? अथवा सभी वर्गों एवं आश्रमों लोग यहाँ निवास कर सकते है ?

पुजी बोले राजन् सभी वर्णों एवं पुरषों और नियोको भी उस तीर्थमे निवास करना चाहिये। सबको अपने-अपने धर्म और आचारका पालन करते हुए दम्भ और मोटका परित्याग करके रहना वाणी और कर्म के भक्त कोई किसके प्रतिष-दृष्टि न करे मनुष्य सम्पूर्ण प्राणिक किसी भी नहीं रहना चाहिये। Padma Purana PDF Book Free