Ramcharitmanas PDF Book in Hindi – संपूर्ण रामचरितमानस हिंदी

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गोस्वामी तुलसीदासजी को रामायण से बढ़ कर हिन्दी साहित्य में दूसरा कोई ग्रन्थ नहीं है। ऐसा कौन साहित्य खेबी होगा जो रामचरितमानस से थोड़ा बहुत परिचय न रखता है? इसका भादर भारतवर्ष के कोने कोने में राजाधिराओं के महलों से होकर कंगाल की झोपड़ी पर्यत है और प्रचार में तो यह बाल्मीकीय से भ कई गुना पड़ा हुआ है। विविध मतानुयायी और मन धर्मा- लम्बी भी आदरणीय मान कर इसके उपदेशों से लाभ उठाते हैं।

Ramcharitmanas PDF Book

Name of Book Ramcharitmanas
PDF Size 74.9 MB
No of Pages 1240
Language  Hindi
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About Book – Ramcharitmanas PDF Book

अनेक भाषाओं में अनूदित कर यह मित्र मिश्र देशों में सम्मान पा रहा है भारतीयों में तो कितने ही भावुक जन ऐसे देगे ओ रामचरितमानस का पाठ किये बिना जल तक नहीं दस करते। इसके ओजस्वी और म’ स्पर्थी उप- देशों द्वारा असं स्त्री-पुरुष कुप्रवृत्तियों से छूटकर सदाचारी बन गये और बनते जाते हैं। राम भको का तो यह सवस्य प्राणाधार दी है। इस लोकप्रसिद्ध महाकाव्य की अधिक प्रशंसा करना ते मध्या- हकाल के सूप को हाथ में दीपक लेकर दिखाने के समान है।

यद्यपि रामायण की रचना गोसाँईजी ने अत्यन्त सीधी सादी भाषा में की न तो उन्होंने जटिल लाने का प्रयक्ष किया और न कठिनाई अथवा पावित्य प्रदर्शन के लिये कूट आदि ही स्थान दिया है। उनका ध्येय तो सरलता पूर्वक हद्गत मावों को व्यक्त करने का जान पड़ता है- फिर भी रामायण के अर्थ की गम्भीरता इतनी अधिक है कि न जाने इस पर कितनी ही टीका हो चुकी और होती ही जाती हैं।

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असंक्यों विद्वान तरह तरह की अनोखी उक्तियों से उसकी शोभा बढ़ा रहे हैं, पर कोई भी नहीं लगा सका और रामचरितमानस की गूढ़ता ज्यों की बनी है। जिस प्रकार विजन अपनी मनोहर कल्पनाओं से पाठकों का मनोरंजन करते है उसी प्रकार अविश और महापप्रिय कथकड़ लोग अनावश्यक अर्थों के गढ़ने में नहीं चूकते। कितने दो संशोधों और मूफरीडरों की काटछाँट से बहुत ही पाठान्तर हो गया है ।

तथा कुछ महाकवियों ने बीच बीच में पोषक और भाठयाँ काण्ड जोड़ कर गोसरिंजी की त्रुटि सुधारने की उदारता प्रकट की है। किसी ने श्री चौपाइयों को निकाल कर पिंगल की योग्यता दिखाई है और कविकृत रामायण के रूप ही को बदल डाला है। कहाँ तक कहा जाय ऐसे ही सदसों विद्यावारिधियों ने रामचरितमानस में अप्रासं गिक विषयों को बसात हँस कर इसको खूब ही विकृत किया है जिससे मूल और घोषक का निर्णय करना साधारण हिन्दी जाननेवालों के लिये क्या बड़े बड़े उद्भट विद्वानों को कठिन और समेत्पादक हो गया है।

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इस अनर्थकारी कार्य में स्वार्थलोलुप पुस्तक-विक्रेताओं और साध्यक्षों का भी प्राथ है। काव्य-सौन्दर्य मदो नटखट दोकर गोसरिंजी के सिद्धान्तों पर पानी फिर जाय, पर इससे उन्हें प्रयोजन नहीं। उनका तो स्वार्थ सिद्ध होना चाहिये, क्योंकि दोपर्क और आठवें कार के बिना बहुतेरे ग्राहक उसे खरीदना पसन्द नहीं करते। इन महाशयों ने लेखकों और टीकाकारों को प्रलोभन देकर क्षेपक मिलवाया, रामायण और इसके रचयिता की मानमय्यादा की परवा न करके कंवल कुछ मोखेमाले पाठकों की रुचि के लिहाज से और अपनी विकी बढ़ाने के विचार से रामचरितमानस को का गला करने में कोई बात उठा नहीं रक्खा।

हर्ष का विषय है कि कतिपय विद्वानों ने कवि- छत पाठ की खोज लगाने में सराहनीय उद्योग किया और अश्वप्रकाशकों ने उनका दाय बिंटाया। जहाँ भान से बीस पचीस वर्ष पहले पोषक समापगाधेष्ट समझा जाता था, वहाँ अब क्षेपक रहित मूलपाठ की प्रति का आदर होने लगा है और पोषक से लोग घृणा करने अपने समय के प्रसिद्ध रामायणी और परमभागवंत मिज़ापुर निवासी पण्डित रामगुलामी द्विवेदी ने पोसारंगी के छोरों के मूलपाठ खोज निकालने में खासा प्रयत्न किया था।

और इस काव्य सफलता हुई थी। उनके द्वारा संशोधित रामचरितमानस के आधार पर पक रविं गुट के रूप में शुद्ध पाठ की रामायण सम्वत 1881 में काशी के एक प्रेस से प्रकाशित हुई थी, हमने अपनी टीका में ईसी ‘गुट’ के अनुसार मूलपाठ रा है हिदी- जी० चन्दनपाठक, बाबू हरिहर दाल आदि रामायण के प्रेमियों ने इसी पाठको विकृते विशुद्ध स्वीकार किया है। Ramcharitmanas PDF Book

नागरीप्रचारिणी सभा के सभापति महोदय को एक टौफा १६१६ ई० में छुपी है। इसी सटीक प्रति के मूल पाठ की फंदीं कहीं अपम्यन कर अपनी टीका में हमने उसके ‘सभा की प्रति’ के नाम से उल्लेख किया है। सभा की प्रति मे भी पाठान्तर फी कमी नहीं है, इस बात का पता अध्यासे बहुत है गुटका का पाठ अधिकांश कवित पांडे से मिलता हैतुकीति का पाठ उतना नहीं मिलता।

इसी प्रकार उरकाण्ड में पाठान्तर की अधिकता है, जिसका यथास्थान टीका में हमने दिग्दर्शन किया है बंद पुस्तकां करते संमर्थ पाठको विदित होगा। गोसाईजी के हाथ का लिखा अयोध्याकाण्ड जो अय तक राजापुर के मन्दिर में सुरक्षित है अवासी लाला सीताराम बी०ए० मे उद्योग करके उसकी अक्षरशः प्रतिलिपि प्रकाशित करायी है। अयोध्याकाड का पाठ हमने इसी प्रति के अनुसार रक्जा है अन्तर इस का है ।

कि गोसी ने अवधी और बैसवाड़ी भाषा तथा उस समय की खाली के अनुसार राम को रामु भरत को भरतु, जन को जजु, मन को मनु, धन को पत्र घना के धतु इत्यादि शब्दों को मात्रायुक्त लिया है और सुख को सुप, दुख की दुप, सखि ि अर्थात ” के स्थान में माया का प्रयोग किया है। मेारें तारें हमारे तुम्हारे पहचाने समाने आदि शब्दों पर बिन्दु लगाये हैं। वन्दो मे भाषा में ” धीर ” का बहिष्कार किया है तथा ‘व’ के स्थान में अधिकांश ‘क’ से काम लिया है। Ramcharitmanas PDF Book

इसने पूर्णकृप से तो इसका अनुकरण नहीं किया, पर वर्तमान लेखी के अनुसार छन्दों का कर है किन्तु उससे न तो शब्द के रूप सत्य में किसी प्रकार का है’ और ‘श’ का प्रयोग हमने मो नहीं किया है। समय है कि हिन्दी को चिन्दी निकलनेवाले समालोचकों के लिये यह परिवर्तन बन्ट बढाना पड़े, फिर भी हम इसके निमित्तमाको पाचन करते हैं। पयुक्त तीनों प्रतियों के अतिरिक्त न तो अन्य से पाठ ही लिया गया है और न अपना परित्यने के लिये कहीं माना तोड़े मरे किया गया है।

हमें बचन सीता बोला-दरिप्रेरित समिन मन डोला पाठ गुटका और सभा की प्रति में है प्रथम संस्करण में हमने इसी को प्रधानता दी थी। किन्तु कतिपय रामायण के ज्ञाता विद्वानों ने उसको अशुद्ध उदराया और बदल देने का अनुरोध किया तदनुसार पं० रामबस पांडेय की प्रति का पाठ “मरम पचन जब सीता पोली-दरिप्रेरित समिन मति डोली” प्रधान स्थल में इस बार रक्खा गया है। जिन समा सोचकों ने पाठ तोड़ने मरोड़ने का मुझ पर दोषारोप किया है, यह उनका अभ्याय है।

मूलपाठ के पदलने का हमें कोई अधिकार नहीं, और न कहीं जान बूझ कर हमने वैसा किया है। भ्रम अथवा छापे के दोष से पाठ में कदाचित कहीं अग्तर पड़ गया है तो यह दूसरी बात है। हमारी इच्छा थी कि रामायण के प्रथम संस्करण की प्रतियों का सर्वसाधारण के सुचीतार्थ स्वरूप मूल्य निर्धारित किया जाय, किन्तु काग़ज़ आदि की महंगाई के कारण विवश हो प्रकाशक महोदय आठ रुपये से कम उसका मूल्य नहीं रख सके, फिर भी दो वर्ष के भीतर ही एक सहस्र प्रतियाँ समाप्त हो गयीं। Ramcharitmanas PDF Book

शीघ्रता के साथ इस खपत को देख विश्वास हो रहा है कि रामायण के प्रेमियों को यह टीका पसन्द आई और उन्होंने इसे अपनाया। इसके सिवा कितने दी प्रसिद्ध पत्रों के सुयोग्य सम्पादकों और विद्वानों ने टीका की उपयोगिता के विषय में अनुकूल सम्मति प्रदान कर उस विश्वास को और भी बढ़ कर दिया है। पहले हमें इस बात का कुछ भी भरोसा नहीं था कि विमण्डली में इसे टीका को इतना बड़ा सम्मान प्राप्त होगा। परन्तु ‘केहि न सुसङ्ग बन पावा के अनुसार अब में अपने परिश्रम को सफल समझ रहा हूँ।

रामचरितमानस की टीका इसने पाण्डित्य प्रदर्शन के लिये नहीं किया और न इसी अभि प्राय से लिखने का प्रयास किया है कि हमारी टीका पूर्व के टीकाकारों से बढ़ कर दोगी। वास्तविक बात तो यह है कि रामचरितमानस पर चिरकाल से हमारे हृदय में प्रगाढ़ अनुराग है और उसका कहना, सुनना मनन करना अथवा टीका लिखना एक प्रकार रामभजन कहा जाता है।

यहीं सोच कर हमने इस कार्य को सम्पन्न करने का साहस किया और इस बात की तनिक भी परवाह नहीं की कि भाषा पर मेरा कोई अधिकार है अथवा नहीं। जब रामायण के विषय में अपना अपना विचार व्यक्त करने का स्वत्व पढ़े अनपट्टे छोटे बड़े सभी लोगों को है, तब उससे अकेला में दी यो पति रक्खा जा सकता हूँ। जो भक्तिवान प्रोणी रामवश गान करते हैं वे पार पाने के अभिप्राय से नहीं बरन उसे एक प्रकार ईश्वर का भजन समझ कर वर्णन करते हैं। Ramcharitmanas PDF Book Download

दूषित दृष्टि वाले मनुष्यों को दोष दी से शान्ति मिलती है ये अपनी प्रकृति अनुसार उसके लिये प्रयत्नशील होकर सन्तोष प्रय करते हैं। उन्हें स्वच्छ मानसरोवर में भी दादुर सम्बुकादि के बिना यथार्थ आनन्द नहीं धाता, मस्तु । अपनी टीका में हमने इस प्रकार को कम रक्खा है कि मूल पर्यो ( चौपाई, दोहा, शुन्द श्लोकादि) के अन्त में उनके अंक के नीचे भावार्थ जिस उस पर सूल छन्दों का अंक देकर यह पंक्ति छोड़ दी गयी है।

अर्थ के नीचे कथानकों की टिप्पणी, शङ्कालमाधान, रस, भाव, ध्वनि, अलंकार की समास अथवा व्यास रूप से व्याख्या की गयी है। प्रथम संस्करण की अपेक्षा इस बार गोस्वामी की जीवनी में विस्तार किया गया है। कुछ त्रुटियों का भी सुधार किया गया है। अन्त में एक मानस- पि लगाया है उसमें मानस के समस्त इन्दों के लक्षण और उदाहरण दिये गये हैं। पाठकों के मना पूर्व की अपेक्षा इस बार कई एक रंगीन और सादे चित्र लगाये गये हैं और जिल्ल आदि की पहले से कम नहीं, अर्थात् पुस्तक की सुन्दर बनाने में पूर्ण उद्योग किया गया है।

इतने पर भी मूल्य सर्वसाधारण के साथ घटा दिया गया है। इस टीका के लिखने में पंडित रामपक्स पाण्डेय और वायू श्यामसुन्दर दास की टीकाओं सेवक भाव प्राप्त हुए हैं तथा टिप्पणी लिखने में सहायता मिली है व इन युगल महानुभावों की छतज्ञता स्वीकार करते हुए उन्हें हम दार्दिक धन्यवाद देते हैं। रामायण के प्रेमी विद्वानों और राममनों से हमारा नम्र निवेदन है। Ramcharitmanas PDF Book Download

कि यद्यपि शुद्धता की और विशेष ध्यान रखा गया है, फिर भी या दृष्टिदोष से अथवा छुपते समय मोषाओं के टूट जाने किम्बा के निकल जाने से प्रायः अशुद्धियाँ हो जाया करती हैं। यदि ऐसी त्रुटियाँ कहाँ दिखाई पड़े तो उन्हें सुधार कर पढ़ने जब हरिचरित्र को सरस्वती, शेष, ब्रह्मा, शिव, धनकादि घुषीश्वर शाख पुराय, पेदादिनेति नेति कहते हुए सदा गाम करते हैं, तब उसको एक साधारण मनुष्य गान करके किस प्रकार पार पा सकता है।

एकमात्र पायी पवित्र करने और जीवन सार्थक बनाने के लिये समय गान किया जाता है, न कि पार पाने के निमित्त जिसका वारापार दी नहीं, कोई पार किस तरह पा सकता है ? इस विषय में तो मेरी यह धारणा है कि- यज्ञपूर्वक सीताजी को कैद करना जानकी के वियोग से रामचन्द्रजी का विज्ञाप, गिमिलन और उसका तनत्याग, स्तुति तथा धाद वर्णन ७२५ मिश्र मिश्र चित्रकारों के बनाये भिन्न भिन्न अवस्था के गोस्वामी तुलसीदासजी के सोन चित्र रामचरितमानस में लगे हैं।

उनका परिचय ऐतिहासिक पुस्तकों और किम्बदन्तियों से जहाँ तक उपलब्ध हुआ वह प्रकाशित किया जाता है 1 (१) इस एक रंगे चित्र को बादशाह अकबर के चित्रकारों ने सम्बत् १६२५ विक्रमाब्द के लगभग बनाया, उस समय गोसाँईजी की अवस्था ३६ वर्ष की थी और वे तपश्चर्या में अनुरक थे। इतिहास से पता चलता है कि बादशाह अकबर अपनी राजसमा में प्रत्येक मत के विद्वानों को रखने का अनुरागी और प्रसिद्ध महात्मा पुरुषों के चित्रों का संग्रह कर अपनी चित्राला सजवाने का बड़ा शौकीन था । Ramcharitmanas PDF Book Download

अकबर का प्रद्धि वज़ीर नवाब गाना गोस्वामीजी पर अयन्त प्रेम तथा। बहुत सम्भव है कि यह विए उसी के उद्योग से वन कर शादी चित्रालय में रक्ता गया हो। पहले पहल इस चित्र को लंदन के किसी समाचार पत्र ने प्रकाशित किया और उसी के द्वारा 1 इसका भारत प्रचार हुआ है। (२) दूसरा चित्र पादशाह जहाँगीर के चित्रकारों ने सम्वत् १६६५ विक्रमान्द के लगभग निर्माण किया होगा।

क्योंकि जहाँगीर सम्बत् १६६२ से १६८४ विक्रमान्द पर्यत दिली के राज्यासन पर विराजमान था। उस समय गोस्वामीजी की अवस्था ७६ वर्ष की रही होगी। गोसाईगी के जीवनचरित्र में लिखा है कि बादशाह जहाँगीर उनसे मिलने काशी आया था। बादशाह उनपर बड़ा प्रेम रखता धीर उन्हें पूज्यदृष्टि से देखता था। एकबार गोस्वामीजी भयंकर व्याधि से अत्यन्त पीड़ित हुए थे, सम्भव है कि उनकी बीमारी का समाचार पाकर वह स्नेहवश काशी या हो और उसी समय अपने fasari को चित्र लेने की आशा दी है।

इसी से यह चित्र सः रोगमुक्त अवस्था का सियो मालूम होता है। उन दिनों गोस्वामीजी महादघाट पर पं० गंगा- राम जोशी के यहाँ निवास करते थे। पं० गंगाराम गोसाईजी के मित्रों में कहे जाते हैं, शादी चित्र- कारों से मिल कर किसी प्रकार उन्होंने इस चित्र की प्रतिलिपि प्राप्त कर ली हो तो आश्चर्य नहीं । क्योंकि सुना जाता है कि उनके वंशजों के पास यह चित्र असुरक्षित है। वर्तमान काल के पं० रोताल व्यास अपने को पं० गंगाराम ज्योतिषी का उतराधिकारी बतलाते हैं। Ramcharitmanas PDF Book Free

उन्होंने सन १६१५ ई० में गोस्वामीजी की जीवनी लिखवा कर प्रकाशित करायी है और उसमें यही एकरंगा far भी दिया है। व्यासजी का कथन है कि यह चित्रं बादशाह जहाँगीर ने सम्वत् १६४५ में जयपुर के किसी कारीगर से बनवाया था। परन्तु उस समय तो अकबर गद्दी पर था और अमीर राजकुमार था, वह तो सम्बत १६६२ में गद्दी पर बैठा था।

यदि यह कहा जाय कि राजकुमार की अवस्था में दी जहाँगीर ने चित्र बनवाया से सम्भव नहीं, क्योंकि गद्दी पर बैठने के बाद उसने गोस्वामी को बुलवाकर एक बार जेल में बन्द करवा दिया था। यदि यह राज कुमार की अवस्था में गोस्वामीजी का प्रेमी होता तो राज्यासन पर बैठ कर उन्हें बन्दो बनाता में बन्द करने पर वह उनके महत्व से परिचित हो और दीपिका पं० [रोह का पराय इतिहास से विरुद्ध होने के कारण विश्वास के योग्य नहीं है।

व्यासजी ने अपनी जीवनी में चित्र के विषय में लिखा है कि “इस चित्र की रजिस्टरी हुई है, बिना हमारी आशा कोईना आप की इस अनुदारता पर हंसी आती है और घृणा भी होती है। जिस महापुरुष के दर्शन की साससा हिन्दू-समाज के अतिरिक्त कितने ही विदेशीय सानों के हृदय में वर्त मान है, उनके चिप को इस प्रकार प्रतियन्ध के साथ प्रकाशित करना संकीर्यता की पराकाष्ठा नहीं तो और काशी-नागरीप्रचारिणी सभा का सदल धन्यवाद है। Ramcharitmanas PDF Book Free

कि उसने इस चित्र को चतुर चित्रकार द्वारा रोगीपन का दोष दूर कराकर बड़े साइज़ में प्रकाशित किया है। उसकी एकरंग की प्रतिलिपि (असी चित्र के अनुसार शासकालय मे और रंगीन प्रवृद्धि माधुरी ने प्रकाशित की है। इस चित्र के एक प्रधान दोष पर चित्रकार और सभा ने कुछ ध्यान नहीं दिया, वद द के लिये होती है। सिर पर शिया और छोटे छोटे पास दिखाये गये हैं, ये ऐसे जान पड़ते हैं मान गोस्वामीजी फूलदार कोष दिये हों।

गोस्वामीजी वैयों में बहुत काल से यह रीति प्रचलित है कि या तो शिया के अतिरिक सिर दाढ़ी और मूंड के बाल साथ ही बनवाते हैं धीर साथी, जैसा कि गोस्वामीजी का प्रथम चित्र है जब दाढ़ी मूंड में बाल की डिया नहीं हूँ तब सिर पर उन्हें दिखाना अयुक्त है और असली चित्र में ऐसा प्रकट भी नहीं होता है। हम लोगों ने प्रवीण चित्रकार द्वारा इस दोष को दूर कराकर रंगीन चित्र प्रकाशित किया है। इसमें सन्देद नहीं कि संख्या १ र २ के दोनों चित्र गोसामी तुलसीदासजी के हैं, उनमें अन्तर केवल अवस्था मेद का है।