Click here to Download Shiv Puran PDF in Hindi having PDF Size 49.2 MB and No of Pages 812.
रीशौनकजीने पूछा— महाज्ञानी सूतजी ! आप सम्पूर्ण सिद्धान्तोंके ज्ञाता हैं। प्रभो ! मुझसे पुराणोंकी कथाओंके सारतत्त्वका विशेषरूपसे वर्णन कीजिये । ज्ञान और वैराग्य सहित भक्तिसे प्राप्त होनेवाले विवेककी वृद्धि कैसे होती है ? तथा साधुपुरुष किस प्रकार अपने काम- क्रोध आदि मानसिक विकारोंका निवारण करते हैं ? इस घोर कलिकालमें जीव प्रायः आसुर स्वभावके हो गये हैं, उस जीवसमुदायको शुद्ध (दैवी सम्पत्तिसे युक्त) बनानेके लिये सर्वश्रेष्ठ उपाय क्या है ? आप इस समय मुझे ऐसा कोई शाश्वत साधन बताइये, जो कल्याणकारी वस्तुओंमें भी सबसे उत्कृष्ट एवं परम
Shiv Puran PDF Book
Name of Book | Shiv Puran |
PDF Size | 49.2MB |
No of Pages | 812 |
Language | Hindi |
Buy Book From Amazon |
About Book – Shiv Puran PDF Book
मङ्गलकारी हो तथा पवित्र करनेवाले उपायोंमें भी सर्वोत्तम पवित्रकारक उपाय हो। तात ! वह साधन ऐसा हो, जिसके अनुष्ठानसे शीघ्र ही अन्तःकरणकी विशेष शुद्धि हो जाय तथा उससे निर्मल चित्तवाले पुरुषको सदाके लिये शिवकी प्राप्ति हो जाय। श्रीसूतजीने कहा- मुनिश्रेष्ठ शौनक ! तुम धन्य हो क्योंकि तुम्हारे हृदयमें पुराण कथा सुननेका विशेष प्रेम एवं लालसा है इसलिये में शुद्ध बुद्धिसे विचारकर तुमसे परम उत्तम शास्त्रका वर्णन करता हूँ। वत्स ! वह सम्पूर्ण शास्त्रोंके सिद्धान्तसे सम्पन्न, भक्ति आदिको बढ़ानेवाला तथा भगवान् शिवको संतुष्ट करनेवाला है। कानोंके लिये रसायन- अमृतस्वरूप तथा दिव्य है, तुम उसे श्रवण करो।
मुने! वह परम उत्तम शास्त्र है- शिवपुराण, जिसका पूर्वकालमें भगवान् शिवने ही प्रवचन किया था। यह कालरूपी सर्पसे प्राप्त होनेवाले महान् त्रासका विनाश करनेवाला उत्तम साधन है। गुरुदेव व्यासने सनत्कुमार मुनिका उपदेश पाकर बड़े आदरसे संक्षेपमें ही इस पुराणका प्रतिपादन किया है। इस पुराणके प्रणयनका उद्देश्य है— कलियुगमें उत्पन्न होनेवाले मनुष्योंके
Click here to Download Shiv Puran PDF Book |
यह शिवपुराण परम उत्तम शास्त्र है। इसे इस भूतलपर भगवान् शिवका वाङ्मय स्वरूप समझना चाहिये और सब प्रकारसे इसका सेवन करना चाहिये। इसका पठन और श्रवण सर्वसाधनरूप है। इससे शिव- भक्ति पाकर श्रेष्ठतम स्थितिमें पहुँचा हुआ मनुष्य शीघ्र ही शिवपदको प्राप्त कर लेता है । इसीलिये सम्पूर्ण यत्र करके मनुष्योंने इस पुराणको पढ़नेकी इच्छा की है—अथवा इसके अध्ययनको अभीष्ट साधन माना है। इसी तरह इसका प्रेमपूर्वक श्रवण भी सम्पूर्ण मनोवाति फलोंको देनेवाला है।
भगवान् शिवके इस पुराणको सुननेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है तथा इस जीवनमें बड़े-बड़े उत्कृष्ट भोगोंका उपभोग करके अन्तमें शिवलोकको प्राप्त कर लेता है। यह शिवपुराण नामक ग्रन्थ चौबीस हजार श्लोकोंसे युक्त है। इसकी सात संहिताएँ हैं। मनुष्यको चाहिये कि वह भक्ति, ज्ञान और वैराग्यसे सम्पन्न हो बड़े आदरसे इसका श्रवण करे। सात संहिताओंसे युक्त यह दिव्य शिवपुराण परब्रह्म परमात्माके समान विराजमान है जो निरन्तर अनुसंधानपूर्वक इस शिवपुराणको बाँचता है।
For More PDF Book Click Below Links….!!!
अक्षर 2/812 र प्रेमपूर्वक इसका पाठमात्र करता है, वह पुण्यात्मा है – इसमें संशय नहीं है। जो उत्तम बुद्धिवाला पुरुष अन्तकालमें भक्तिपूर्वक इस पुराणको सुनता है, उसपर अत्यन्त प्रसन्न हुए भगवान् महेश्वर उसे अपना पद (बाम) प्रदान करते हैं। जो प्रतिदिन आदरपूर्वक इस शिवपुराणका पूजन करता है, वह इस संसारमें सम्पूर्ण भोगोंको भोगकर अन्तमें भगवान् शिवके पदको प्राप्त कर लेता है।
जो प्रतिदिन आलस्यरहित हो रेशमी वस्त्र आदिके वेष्टनसे इस शिवपुराणका सत्कार करता है, वह सदा सुखी होता है। यह शिवपुराण निर्मल तथा भगवान् शिवका सर्वस्व है जो इहलोक और परलोकमें भी सुख चाहता हो, उसे आदरके साथ प्रयत्नपूर्वक इसका सेवन करना चाहिये । यह निर्मल एवं उत्तम शिवपुराण धर्म, अर्थ, काम और मोक्षरूप चारों पुरुषार्थीको देनेवाला है। अतः सदा प्रेमपूर्वक इसका श्रवण एवं विशेष पाठ करना चाहिये।
सूतजी बोले—मुने ! जो मनुष्य पापी, दुराबारी, खल तथा काम-क्रोध आदिमें निरन्तर डूबे रहनेवाले हैं, वे भी इस पुराणके श्रवण-पठनसे अवश्य ही शुद्ध हो जाते हैं । इसी विषय में जानकार मुनि इस प्राचीन इतिहासका उदाहरण दिया करते हैं, जिसके श्रवणमात्रसे पापोंका पूर्णतया नाश हो जाता है। पहलेकी बात है, कहीं किरातोंके नगरमें एक ब्राह्मण रहता था, जो ज्ञानमें अत्यन्त दुर्बल, दरिद्र, रस बेचनेवाला तथा वैदिक धर्मसे विमुख था। Shiv Puran PDF Book
वह स्नान-संध्या आदि कर्मोंसे भ्रष्ट हो गया था और वैश्यवृत्तिमें तत्पर रहता था । उसका नाम था देवराज । वह अपने ऊपर विश्वास करनेवाले लोगोंको ठगा करता था। उसने ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों शूद्रों तथा दूसरोंको भी अनेक चहानोंसे मारकर उन-उनका धन हड़प लिया था। परंतु उस पापीका थोड़ा-सा भी धन कभी धर्म काममें नहीं लगा था । वह वेश्यागामी तथा सब प्रकारसे आचार- अष्ट था।
एक दिन घूमता घामता वह दैवयोगसे प्रतिष्ठानपुर (झूसी प्रयाग) में जा पहुँचा । वहाँ उसने एक शिवालय देआये। साक्षात् दूसरे रुद्रोंके समान प्रतीत होनेवाले उन चारों दूतोंको देखका धर्म: 4/812 धर्मराजने उनका विधिपूर्वक पूजन किया और ज्ञानदृष्टिसे देखकर सारा वृत्तान्त जान लिया। उन्होंने भयके कारण भगवान् शिवके उन महात्मा दूतोंसे कोई बात नहीं पूछी, उलटे उन सबकी पूजा एवं प्रार्थना की। तत्पश्चात् वे शिवदूत कैलासको चले गये और वहाँ पहुँचकर उन्होंने उस ब्राह्मणको दयासागर साम्ब शिवके हाथोंमें दे दिया।
शौनकजीने कहा- महाभाग सूतजी ! आप सर्वज्ञ हैं। महामते ! आपके कृपाप्रसादसे में बारंबार कृतार्थ हुआ। इस इतिहासको सुनकर मेरा मन अत्यन्त आनन्दमें निमग्न हो रहा है। अतः अब भगवान् शिवमें प्रेम बढ़ानेवाली शिवसम्बन्धिनी दूसरी कथाको भी कहिये । श्रीसूतजी बोले- शौनक ! सुनो, मैं तुम्हारे सामने गोपनीय कथावस्तुका भी वर्णन करूँगा; क्योंकि तुम शिव भक्तोमें अग्रगण्य तथा वेदवेत्ताओंमें श्रेष्ठ हो । Shiv Puran PDF Book
समुद्रके निकटवर्ती प्रदेशमें एक वाष्कल नामक ग्राम है, जहाँ वैदिक धर्मसे विमुख महापापी द्विज निवास करते हैं। वे सब-के- सब बड़े दुष्ट हैं, उनका मन दूषित विषयखा, जहाँ बहुत जहाँके द्विज ऐसे हों, वहाँके अन्य वर्णोंक विषयमें क्या कहा जाय ।) अन्य वर्णोंक लोग भी उन्हींकी भाँति कुत्सित विचार रखनेवाले, स्वधर्मविमुख एवं खल हैं; वे सदा कुकर्ममें लगे रहते और नित्य विषयभोगोंमें ही डूबे रहते हैं।
वहाँकी सब खियाँ भी कुटिल स्वभावकी, स्वेच्छाचारिणी, पापासक्त, कुत्सित विचारवाली और व्यभिचारिणी हैं। वे सद्व्यवहार तथा सदाचारसे सर्वथा शून्य हैं। इस प्रकार वहाँ दुष्टोंका ही निवास है। उस वाष्कल नामक ग्राममें किसी समय एक बिन्दुग नामधारी ब्राह्मण रहता था, वह बड़ा अधम था। दुरात्मा और महापापी था । यद्यपि उसकी स्त्री बड़ी सुन्दरी थी, तो भी वह कुमार्गपर ही चलता था। उसकी पत्नीका नाम चला था।
वह सदा उत्तम धर्मके पालनमें लगी रहती थी, तो भी उसे छोड़कर यह दुष्ट ब्राह्मण वेश्यागामी हो गया था। इस तरह कुकर्ममे लगे हुए उस बिन्दुगके बहुत वर्ष व्यतीत हो गये। उसकी स्त्री चझुला कामसे पीड़ित होनेपर भी स्वधर्मनाशके भयसे देश सहकर भी दीर्घकालतक धर्मसे भ्रष्ट नहीं हुई। परंतु दुराचारी पतिके आचरणसे प्रभावित हो आगे चलकर वह स्त्री भी दुराचारिणी हो गयी। Shiv Puran PDF Book
बुद्धि पापी विन्ध्यपर्वतपर भयंकर पिशाच हुआ। इधर, उस दुराचारी पति बिन्दुगके मर जानेपर वह मूढह्रदया चझुला बहुत समयतक पुत्रोंके साथ अपने घरमें ही रही । एक दिन दैवयोगसे किसी पुण्य पर्वके आनेपर वह स्त्री भाई-बन्धुओंके साथ गोकर्ण क्षेत्र में गयी। तीर्थयात्रियोंके सङ्गसे उसने भी उस समय जाकर किसी तीर्थके जलमें स्नान किया। फिर वह साधारणतया ( मेला देखनेकी दृष्टिसे) बन्धुजनोंके साथ अत्र तत्र घूमने लगी।
घूमती धामती किसी देवमन्दिरमें गयी और वहाँ उसने एक दैवज्ञ ब्राह्मणके मुखसे भगवान् शिवकी परम afar एवं महलकारिणी उत्तम पौराणिक कथा सुनीं । कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे कि ‘जो खियाँ परपुरुषोंके साथ व्यभिचार जाती हैं, तब यमराजके दूत उनकी योनिमें तपे हुए लोहेका परिघ डालते हैं।’ पौराणिक ब्राह्मणके मुखसे यह वैराग्य बढ़नेसली कथा सुनकर चला भयसे व्याकुल हो वहाँ काँपने लगी।
जब कथा समाप्त और सुननेवाले सब लोग वहाँसे बाहर चले गये, तब वह भयभीत नारी एकान्तमें शिवपुराणको कथा बाँचनेवाले उन ब्राह्मण देवतासे बोली । चशुलाने कहा— ब्रह्मन् ! मैं अपने धर्मको नहीं जानती थी। इसलिये मेरे द्वारा बड़ा दुराचार हुआ है। स्वामिन्! मेरे ऊपर अनुपम कृपा करके आप मेरा उद्धार कीजिये। आज आपके वैराग्य- रससे ओतप्रोत इस प्रवचनको सुनकर मुझे बड़ा भय लग रहा है। Shiv Puran PDF Book Download
मैं काँप उठी हूँ और मुझे इस संसारसे वैराग्य हो गया है। मुझ मूढ चित्तवाली पापिनीको धिक्कार है। मैं सर्वथा निन्दाके योग्य हैं। कुत्सित विषयोंमें फँसी हुई हूँ और अपने धर्मसे त्रियुस हो गयी हूँ। हाय ! न जाने किस-किस घोर कष्टदायक दुर्गतिमें मुझे पड़ना पड़ेगा और वहाँ कौन बुद्धिमान पुरुष कुमार्गमें मन लगानेवाली मुझ पापिनीका साथ देगा। मृत्युकालमें उन भयंकर यमदूतोंको मैं कैसे देखूँगी ?
जब वे बलपूर्वक मेरे गलेमें फंदे डालकर मुझे बाँधेंगे, तब मैं कैसे धीरज धारण कर इस विधिका पालन न किया जाय इसके पूर्व ही यदि जलमें भस्म गिर जाय तो गिरानेवाला नरकमें जाता है। ‘आपोहिष्ठा इत्यादि मन्त्रसे पाप-शासिके लिये सिरपर जल छिड़के तथा यक्षवाद’ इस मन्चको पड़कर पैरपर जल छिड़के। इसे संधिप्रोक्षण कहते हैं ‘आपो हि हा इत्यादि में तीन चाएँ हैं और प्रत्येक थामें गायत्री छन्दके तीन-तीन चरण है।
इनसे प्रथम प्रथाके तीन चरणोंका पाठ करते हुए क्रमश: पैर मस्तक और हृदयमें जल छिड़के। दूसरी शवाके तीन चरणोंको पढ़कर क्रमश: मस्तक, हृदय और पैरमें जल छिड़के तथा तीसरी चाके तीन चरणोंका पाठ करते हुए क्रमशः हृदय, पैर और मस्तकका जलसे प्रोक्षण करे। इसे विद्वान् पुरुष ‘मन्त्र-खान’ मानते हैं। किसी अपवित्र वस्तुसे किंचित् स्पर्श हो जानेपर, अपना स्वास्थ्य ठीक न रहनेपर, राजा और राष्ट्रपर भय उपस्थित होनेपर । Shiv Puran PDF Book Download
तथा पात्राकाल जलकी उपलब्धि न होनेकी विवदाता आ जानेपर ‘मन्त्र- ‘खान’ करना चाहिये। प्रातःकाल सूर्यश्च मा मन्युद्ध’ इत्यादि सूर्यानुवाकसे तथा सायंकाल कराये। ‘अमिय मा मत्युक्ष’ इत्यादि अधि-सम्वन्धी अनुवाकसे जलका आचमन करके पुनः जलसे अपने अङ्गोका प्रोक्षण करे। मध्याह्नकालमें भी ‘आप पुनन्तु इस मन्त्र आचमन करके पूर्ववत् प्रोक्षण या पार्जन करना चाहिये।
सायंकाल आनेपर पश्चिमकी ओर मुख करके बैठ जाय और पृथ्वीपर ही सूर्यक लिये अर्घ्य दे (ऊपरकी ओर नहीं) । प्रातः काल और मध्याह्नके समय अग्रलिये अर्घ्यजल लेकर अंगुलियोकी ओरसे सूर्यदेवके लिये अर्घ्य दे फिर अंगुलियों के छिइसे डलते हुए सूर्यको देखे तथा उनके लिये स्वतः प्रदक्षिणा करके शुद्ध आचमन करे सायंकालमे सूर्यास्तसे दो घड़ी पहले की हुई संध्या निष्फल होती है; क्योंकि यह सायं संध्याका समय नहीं है।
ठीक समयपर संध्या करनी चाहिये, ऐसी शास्त्रकी आज्ञा है। यदि संध्योपासना किये बिना दिन बीत जाय तो प्रत्येक समयके लिये क्रमश: प्रायश्चित करना चाहिये । यदि एक दिन बीते तो प्रत्येक श्रीते हुए संध्याकालके लिये नित्य-नियमके अतिरिक्त सौ गायत्री मन्त्रका अधिक जप करे। यदि नित्यकर्मके लुप्त हुए दस दिनसे अधिक बीत जाय तो उसके प्रायश्विरूपों एक लाख गायत्रीका जय करना चाहिये। यदि एक मासतक नित्यकर्म छूट जाय तो पुनः अपना उपनयन संस्कार Shiv Puran PDF Book Download
अर्थसिद्धिके लिये ईश, गौरी, कार्तिकेय, विष्णु, ब्रह्मा, चन्द्रमा और यमका तथा ऐसे ही अन्य देवताओंका भी शुद्ध जलसे तर्पण करे। फिर तर्पण कर्मको ब्रह्मार्पण करके शुद्ध आचमन करे। तीर्थ दक्षिण प्रशाल मठ, पचालय, प्रातःकालकी संध्योपासनामे गायत्री- देवालयमे पर अथवा अन्य किसी नियत का जप करके तीन बार ऊपरकी ओर स्थानमे आसपर लिपूर्वक बैठकर सुदवको अर्थ देने चाहिये।
ब्राह्मणो विद्वान् पुरुष अपनी बुद्धिको बिर करे और मध्यकाल गायत्री-सारणपूर्वक सम्पूर्ण देवताओको नमस्कार करके पहले शकारका अर्थ है नित्यसुख एवं आनन्द, इकारका अर्थ है पुरुष और विकारका अर्थ है अमृतस्वरूपा शक्ति | । इन सबका सम्मिलित रूप ही शिव कहलाता है। अतः इस रूपमें भगवान् शिवको अपना आत्मा मानकर उनकी पूजा करनी चाहिये; अतः पहले अपने अङ्गोंमें भस्म मले।
फिर ललाटमें उत्तम त्रिपुण्ड्र धारण करे। पूजाकालमें सजल भस्मका उपयोग होता है और द्रव्यशुद्धिके लिये निर्जल भमका । गुणातीत परम शिव राजस आदि सविकार गुणोंका अवरोध करते हैं-दूर हटाते हैं, इसलिये वे सबके गुरुरूपका आश्रय लेकर स्थित है। गुरु विश्वासी शिष्योंके तीनों गुणों को पहले दूर करके फिर उन्हें शिवतत्त्वका बोध कराते हैं, इसीलिये गुरु कहलाते हैं। गुरुकी पूजा परमात्मा शिवकी ही पूजा है। गुरुके उपयोगसे बचा हुआ सारा पदार्थ आत्मशुद्धि करनेवाला होता है। Shiv Puran PDF Book Free
गुरुकी आज्ञा बिना उपयोग लाया हुआ कुछ वैसा ही है, जैसे चोर चोरी करके यी हुई वस्तुका उपयोग करता है। गुरुसे भी विशेष ज्ञानवान् पुरुष मिल जाय तो उसे भी मनपूर्वक गुरु बना लेना चाहिये। बिताते अज्ञानरूपी अन्धन छूटना ही जीवमात्र के लिये साध्य पुरुषार्थ है। अतः जो विशेष ज्ञानवान् है, यही जीवन जुड़ा सकता है। कहलाता है। स्कूल, सूक्ष्म और कारण- तीनों शरीरोंको वशमें कर ऐनेपर जीवका मोक्ष हो जाता है, ऐसा ज्ञानी पुरुषोंका कथन है।
मायाचक्रके निर्माता भगवान् शिव ही परम कारण हैं। वे अपनी मायाके दिये हुए इन्द्रका स्वयं ही परिमार्जन करते हैं। अतः शिवके द्वारा कल्पित हुआ इन्द्र उन्हींको समर्पित कर देना चाहिये। जो शिवकी पूजामें तत्पर हो, वह मौन रहे, सत्य आदि गुणोंसे संयुक्त हो तथा क्रिया, जप, तप, ज्ञान और ध्यानमेंसे एक-एकका अनुष्ठान करता रहे। ऐश्वर्य, दिव्य शरीरकी प्राप्ति, ज्ञानका उदय, अज्ञानका निवारण और भगवान् शिवके सामीप्यका लाभ- ये क्रमशः क्रिया आदिके फल है।
निष्काम कर्म करनेसे अज्ञानका निवारण हो जानेके कारण शिवभक्त पुरुष उसके यथोक्त फलको पाता है। शिवभक्त पुरुष देश, काल, शरीर और धनके अनुसार बच्चायोग्य क्रिया आदिका अनुष्ठान करे। न्यायोपार्जित उत्तम धनसे निर्वाह करते हुए विद्वान्ुरुष शिवके स्थानमें निवास करे। जीवहिंसा आदिसे रहित और अत्यन्त शशून्य जीवन हुए पञ्चाक्षर-मंत्रके जपसे अधिपत्रित अन्न और जलको स्वरूप माना गया है अथवा कहते है कि द पुरुषके लिये भिक्षा प्राप्त हुआ अन्न ज्ञान देनेवाला होता है। Shiv Puran PDF Book Free
सूतजी कहते हैं— महाप्राज्ञ ! महामते शिवरूप शौनक ! अब मैं संक्षेपसे रुद्राक्षका माहात्म्य बता रहा हूँ, सुनो रुद्राक्ष शिवको बहुत ही प्रिय है। इसे परम पावन समझना चाहिये। रुद्राक्षके दर्शनसे, स्पर्शसे तथा उसपर जप करनेसे वह समस्त पापोंका अपहरण करनेवाला माना गया है। मुने! पूर्वकालमें परमात्मा शिवने समस्त लोकोका उपकार करनेके लिये देवी पार्वतीके सामने रुद्राक्षकी महिमाका वर्णन किया था।
भगवान् शिव बोले –महेश्वरि शिवे! मैं तुम्हारे प्रेमवश भक्तोंके हितकी कामनासे रुद्राक्षकी महिमाका वर्णन करता हूँ, सुनो महेशानि ! पूर्वकालको बात है, में मनको संयममें रखकर हजारों दिव्य वर्षोंतक घोर तपस्यायें लगा रहा। एक दिन सहसा मेरा मन क्षुब्ध हो उठा। परमेश्वरि ! मैं सम्पूर्ण कोंका उपकार करनेवाला स्वतन्त्र परमेश्वर हूँ। अतः उस समय मैंने लीलावश ही अपने दोनों नेत्र खोले, खोलते ही मेरे मनोहर नेत्रपुटोंसे कुछ जलकी बूंदें गिरीं। सुनो। आँसूकी उनसे यहाँ स्वाक्ष नामक वृक्ष पैदा हो गया। Shiv Puran PDF Book Free