Vaivarta Purana PDF in Hindi – संपूर्ण वैवर्त पुराण हिंदी

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गणेशब्रह्मेशसुरेशशेषाः सुराश्च सर्वे मनवो मुनीन्द्राः । सरस्वती श्रीगिरिजादिकाश्च नमन्ति देव्यः प्रणमामि तं विभुम् ॥ १ ॥ गणेश, ब्रह्मा, महादेवजी, देवराज इन्द्र, शेषनाग आदि सब देवता, मनु, मुनीन्द्र, सरस्वती, लक्ष्मी तथा पार्वती आदि देवियाँ भी जिन्हें मस्तक झुकाती हैं, उन सर्वव्यापी परमात्माको मैं प्रणाम करता हूँ । स्थूलास्तनूर्विदधतं त्रिगुणं विराजं विश्वानि लोमविवरेषु महान्तमाद्यम्। सृष्टघुन्मुखः स्वकलयापि ससर्ज सूक्ष्मं नित्यं समेत्य हृदि यस्तमजं भजामि ॥ २ ॥

Vaivarta Purana PDF Book

Name of Book Vaivarta Purana
PDF Size 51.7 MB
No of Pages 796
Language  Hindi
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About Book – Vaivarta Purana PDF Book

जो सृष्टिके लिये उन्मुख हो तीन गुणोंको स्वीकार करके ब्रह्मा, विष्णु और शिव नामवाले तीन दिव्य स्थूल शरीरोंको ग्रहण करते तथा विराट् पुरुषरूप हो अपने रोमकूपोंमें सम्पूर्ण विश्वको धारण करते हैं, जिन्होंने अपनी कलाद्वारा भी सृष्टि रचना की है तथा जो सूक्ष्म ( अन्तर्यामी आत्मा) – रूपसे सदा सबके हृदयमें विराजमान हैं, उन महान् आदिपुरुष अजन्मा परमेश्वरका मँ

भजन करता हूँ। ध्यायन्ते ध्याननिष्ठाः सुरनरमनवो योगिनो योगरूढाः सन्तः स्वप्रेऽपि सन्तं कतिकतिजनिभिर्यं न पश्यन्ति तप्त्वा । ध्याये स्वेच्छामयं तं त्रिगुणपरमहो निर्विकारं निरीहं भक्तध्यानैकहेतोर्निरुपमरुचिरश्यामरूपं दधानम् ॥ ३ ॥ ध्यानपरायण देवता, मनुष्य और स्वायम्भुव आदि मनु जिनका ध्यान करते हैं, योगारूढ योगिजन जिनका चिन्तन करते हैं, जाग्रत्, स्वप्न और सुषुप्ति सभी अवस्थाओं में विद्यमान होनेपर भी जिन्हें बहुत से साधक संत कितने ही जन्मोंतक तपस्या करके भी देख नहीं पाते हैं ।

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तथा जो केवल भक्त पुरुषोंके ध्यान करनेके लिये स्वेच्छामय अनुपम एवं परम मनोहर श्यामरूप धारण करते हैं, उन त्रिगुणातीत निरीह एवं निर्विकार परमात्मा श्रीकृष्णका में ध्यान करता हूँ। वन्दे कृष्णं गुणातीतं परं ब्रह्माच्युतं यतः । आविर्बभूवुः प्रकृतिब्रह्मविष्णुशिवादयः ॥ ४ ॥ जिनसे प्रकृति, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव आदिका आविर्भाव हुआ है, उन त्रिगुणातीत परब्रह्म परमात्मा अच्युत श्रीकृष्णकी मैं वन्दना करता हूँ।

हे भोले-भाले मनुष्यो ! व्यासदेवने श्रुतिगणोंको बछड़ा बनाकर भारतीरूपिणी कामधेनुसे जो अपूर्व, अमृतसे भी उत्तम, अक्षय, प्रिय एवं मधुर दूध दुहा था, वही यह अत्यन्त सुन्दर ब्रह्मवैवर्तपुराण है। तुम अपने श्रवणपुटोंद्वारा इसका पान करो, पान करो। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॐ नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् । देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥

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परम पुरुष नारायण, नरश्रेष्ठ नर, इनकी लीलाओंको प्रकट करनेवाली देवी सरस्वती तथा उन लीलाओंका गान करनेवाले वेदव्यासको नमस्कार करके फिर जयका उच्चारण ( इतिहास- पुराणका पाठ) करना चाहिये। भारतवर्षके नैमिषारण्य तीर्थमें शौनक आदि ऋषि प्रातः काल नित्य और नैमित्तिक क्रियाओंका अनुष्ठान करके कुशासनपर बैठे हुए थे। इसी समय सूतपुत्र उग्रश्रवा अकस्मात् वहाँ आ पहुँचे ।

आकर उन्होंने विनीत भावसे मुनियोंके चरणों में प्रणाम किया। उन्हें आया देख ऋषियोंने बैठनेके लिये आसन दिया। मुनिवर शौनकने भक्तिभावसे उन नवागत अतिथिका भलीभाँति पूजन करके प्रसन्नतापूर्वक उनका कुशल- समाचार पूछा। शौनकजी शम आदि गुणोंसे सम्पन्न थे, पौराणिक सूतजी भी शान्त चित्तवाले महात्मा थे। अब वे रास्तेकी थकावटसे छूटकर सुस्थिर आसनपर आरामसे बैठे थे। उनके मुखपर मन्द मुस्कानकी छटा छा रही थी।

उन्हें पुराणोंके सम्पूर्ण तत्त्वका ज्ञान था। शौनकजी भी पुराण- विद्याके ज्ञाता थे। वे मुनियोंकी उस सभामें विनीत भावसे बैठे थे और आकाशमें ताराओंके बीच चन्द्रमाकी भाँति शोभा पा रहे थे। उन्होंने परम विनीत सूतजीसे एक ऐसे पुराणके विषयमें प्रश्न किया, जो परम उत्तम, श्रीकृष्णकी कथासे युक्त, सुननेमें सुन्दर एवं सुखद, मङ्गलमय, मङ्गलयोग्य तथा सर्वदा मङ्गलधाम हो, जिसमें सम्पूर्ण मङ्गलोंका शनिकजीन पूछा— सूतजी ! Vaivarta Purana PDF Book

आपने कहाक लिये प्रस्थान किया है और कहाँसे आप आ रहे हैं? आपका कल्याण हो। आज आपके दर्शनसे हमारा दिन कैसा पुण्यमय हो गया। हम सभी लोग कलियुगमें श्रेष्ठ ज्ञानसे वञ्चित होनेके कारण भयभीत हैं। संसार सागरमें डूबे हुए हैं और इस कष्टसे मुक्त होना चाहते हैं। हमारा उद्धार करनेके लिये ही आप यहाँ पधारे हैं। आप बड़े भाग्यशाली साधु पुरुष हैं। पुराणोंके ज्ञाता हैं। सम्पूर्ण पुराणोंमें निष्णात हैं और अत्यन्त कृपानिधान हैं।

महाभाग ! जिसके श्रवण और पठनसे भगवान् श्रीकृष्णमें अविचल भक्ति प्राप्त हो तथा जो तत्त्वज्ञानको बढ़ानेवाला हो, उस पुराणकी कथा कहिये । सूतनन्दन! जो मोक्षसे भी बढ़कर है, कर्मका मूलोच्छेद करनेवाली तथा संसाररूपी कारागारमें बँधे हुए जीवोंकी बेड़ी काटनेवाली है, वह कृष्ण-भक्ति ही जगत्-रूपी दावानलसे दग्ध हुए जीवोंपर अमृत रसकी वर्षा करनेवाली है। वही जीवधारियोंके हृदयमें नित्य निरन्तर परम सुख एवं परमानन्द प्रदान करती है। “

आप वह पुराण सुनाइये, जिसमें पहले सबके बीज ( कारणतत्त्व ) – का प्रतिपादन तथा परब्रह्मके स्वरूपका निरूपण हो । सृष्टिके लिये उन्मुख हुए उस परमात्माकी सृष्टिका भी उत्कृष्ट वर्णन हो। मैं यह जानना चाहता हूँ कि परमात्माका स्वरूप साकार है या निराकार ? ब्रह्मका स्वरूप कैसा है? उसका ध्यान अथवा चिन्तन कैसे करना चाहिये? वैष्णव महात्मा किसका ध्यान करते हैं?वत्स! जिस पुराणमें प्रकृतिके स्वरूपका निरूपण हुआ हो। Vaivarta Purana PDF Book

गुणोंका लक्षण वर्णित हो तथा ‘महत्’ आदि तत्त्वोंका निर्णय किया गया हो; जिसमें गोलोक, वैकुण्ठ, शिवलोक तथा अन्यान्य स्वर्गादि लोकोंका वर्णन हो तथा अंशों और कलाओंका निरूपण हो, उस पुराणको श्रवण कराइये। सूतनन्दन ! प्राकृत पदार्थ क्या हैं? प्रकृति क्या है तथा प्रकृतिसे परे जो आत्मा या परमात्मा है, उसका स्वरूप क्या है? जिन देवताओं और देवाङ्गनाओंका भूतलपर गूढ़रूपसे जन्म या अवतरण हुआ है, उनका भी परिचय दीजिये ।

समुद्रों, पर्वतों और सरिताओंके प्रादुर्भावकी भी कथा कहिये । प्रकृतिके अंश कौन हैं? उसकी कलाएँ और उन कलाओंकी भी कलाएँ क्या हैं? उन सबके शुभ चरित्र, ध्यान, पूजन और स्तोत्र आदिका वर्णन कीजिये। जिस पुराणमें दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी और सावित्रीका वर्णन हो, श्रीराधिकाका अत्यन्त अपूर्व और अमृतोपम आख्यान हो, जीवोंके कर्मविपाकका प्रतिपादन तथा नरकोंका भी वर्णन हो।

जहाँ कर्मबन्धनका खण्डन तथा उन कमसे छूटनेके उपायका जहाँ जो-जो शुभ या अशुभ स्थान प्राप्त होता हो, उन्हें जिस कर्मसे जिन-जिन योनियोंमें जन्म लेना पड़ता हो, इस लोकमें देहधारियोंको जिस कर्मसे जो-जो रोग होता हो तथा जिस कर्मके अनुष्ठानसे उन रोगोंसे छुटकारा मिलता हो, उन निरूपण हो, उसे सुनाइये। जिन जीवधारियोंको सबका प्रतिपादन कीजिये । Vaivarta Purana PDF Book

जहाँ गणेशजीके चरित्र, जन्म और कर्मका तथा उनके गूढ़ कवच स्तोत्र और मन्त्रोंका वर्णन हो, जो उपाख्यान अत्यन्त अद्भुत और अपूर्व हो तथा कभी सुननेमें न आया हो, 3/796 वह सब मन-ही-मन याद करके इस समय आप उसका वर्णन करें। परमात्मा श्रीकृष्ण सर्वत्र परिपूर्ण हैं तथापि इस जगत् में पुण्य क्षेत्र भारतवर्षमें जन्म (अवतार) लेकर उन्होंने नाना प्रकारके लीला-विहार किये।

मुने! जिस पुराणमें उनके इस अवतार तथा लीला – विहारका वर्णन हो, उसकी कथा कहिये। उन्होंने किस पुण्यात्माके पुण्यमय गृहमें अवतार ग्रहण किया था? किस धन्या, मान्या, पुण्यवती सती नारीने उनको पुत्ररूपसे उत्पन्न किया था? उसके घरमें प्रकट होकर वे भगवान् फिर कहाँ और किस कारणसे चले गये? वहाँ जाकर उन्होंने क्या किया और वहाँसे फिर अपने स्थानपर कैसे आये ?

किसकी प्रार्थनासे उन्होंने पृथ्वीका भार उतारा? तथा किस सेतुका निर्माण (मर्यादाकी स्थापना ) करके वे भगवान् पुनः गोलोकको पधारे ? इन सबसे तथा अन्य उपाख्यानोंसे परिपूर्ण जो श्रुतिदुर्लभ पुराण है, उसका सम्यक् ज्ञान मुनियोंके लिये भी दुर्लभ है। वह मनको निर्मल बनानेका उत्तम साधन है। अपने ज्ञानके अनुसार मैंने जो भी शुभाशुभ बात पूछी है या नहीं पूछी है, उसके समाधानसे युक्त जो पुराण तत्काल वैराग्य उत्पन्न करनेवाला हो। Vaivarta Purana PDF Book Download

मेरे समक्ष उसीकी कथा कहिये जो शिष्यके पूछे अथवा उपस्थित देख नमस्कार करनेके लिये चला आया हूँ। साथ ही भारतवर्षके पुण्यदायक क्षेत्र नैमिषारण्यका दर्शन भी मेरे यहाँ आगमनका उद्देश्य है। जो देवता, ब्राह्मण और गुरुको देखकर वेगपूर्वक उनके सामने मस्तक नहीं झुकाता है, वह ‘कालसूत्र’ नामक नरकमें जाता है तथा जबतक चन्द्रमा और सूर्यको सत्ता रहती है, तबतक वह वहीं पड़ा रहता है। साक्षात् श्रीहरि ही भारतवर्षमें ब्राह्मणरूपसे सदा भ्रमण करते रहते हैं।

श्रीहरि स्वरूप उस ब्राह्मणको कोई पुण्यात्मा ही अपने पुण्यके प्रभावसे प्रणाम करता है। भगवन्! आपने जो कुछ पूछा है तथा आपको जो कुछ जानना अभीष्ट है, वह सब आपको पहलेसे ही ज्ञात है, तथापि आपकी आज्ञा शिरोधार्य कर मैं इस विषयमें कुछ निवेदन करता हूँ। पुराणोंमें सारभूत जो ब्रह्मवैवर्त नामक पुराण हैं, वही सबसे उत्तम है। वह हरिभक्ति देनेवाला तथा सम्पूर्ण तत्त्वोंके ज्ञानकी वृद्धि करनेवाला है।

यह भोग चाहनेवालोंको भोग, मुक्तिकी इच्छा रखनेवालोंको मोक्ष तथा वैष्णवोंको हरिभक्ति सबकी इच्छा पूर्ण करनेके लिये यह साक्षात् कल्पवृक्ष स्वरूप है। इसके ब्रह्मखण्डमें सर्वबीजस्वरूप उस परब्रह्म परमात्माका निरूपण है जिसका योगी, संत और वैष्णव ध्यान करते हैं तथा जो परात्पर रूप है। शौनकजी ! वैष्णव, योगी और अन्य संत महात्मा एक दूसरेसे भिन्न नहीं हैं। जीवधारी मनुष्य अपने ज्ञानके परिणामस्वरूप क्रमश: संत योगी और वैष्णव होते हैं। Vaivarta Purana PDF Book Download

सत्संगसे मनुष्य संत होते हैं। योगियोंके संगसे योगी होते हैं तथा भक्तोंके संगसे वैष्णव होते हैं। ये क्रमशः उत्तरोत्तर श्रेष्ठ योगी हैं। ब्रह्मखण्ड के अनन्तर प्रकृतिखण्ड है, जिसमें देवताओं, देवियों और सम्पूर्ण जीवोंकी उत्पत्तिका कथन है। साथ ही देवियोंके शुभ चरित्रका वर्णन है। जीवोंके कर्मविपाक और शालग्राम शिलाके – महत्त्वका निरूपण है। उन देवियोंके कवच, स्तोत्र, मन्त्र और पूजा पद्धतिका भी प्रतिपादन किया गया है।

उस प्रकृतिखण्डमें प्रकृतिके लक्षणका वर्णन है। उसके अंशों और कलाओंका निरूपण है। उनकी कीर्तिका कीर्तन तथा प्रभावका प्रतिपादन है। पुण्यात्माओं और पापियोंको जो-जो शुभाशुभ स्थान प्राप्त होते हैं, उनका वर्णन है। पापकर्मसे प्राप्त होनेवाले नरकों तथा रोगोंका कथन है। उनसे छूटनेके उपायका भी विचार किया गया है। प्रकृतिखण्डके पश्चात् गणेशखण्डमें गणेशजीके आकाश अथवा परम व्योममें स्थित हुए उस श्रेष्ठ धामको परमात्माने अपनी योगशक्तिसे धारण कर रखा है।

वहाँ आधि, व्याधि, जरा, मृत्यु तथा शोक और भयका प्रवेश नहीं है। 6/796 दिव्य रखोंद्वारा रचित असंख्य भवन सब ओरसे उस लोककी शोभा बढ़ाते हैं। प्रलयकालमें वहाँ केवल श्रीकृष्ण रहते हैं और सृष्टिकालमें वह गोप-गोपियोंसे भरा रहता है। गोलोकसे नीचे पचास करोड़ योजन दूर दक्षिणभागमें वैकुण्ठ और वामभागमें शिवलोक है। ये दोनों लोक भी गोलोकके समान ही परम मनोहर हैं। मण्डलाकार वैकुण्ठलोकका विस्तार एक करोड़ योजन है। Vaivarta Purana PDF Book Download

वहाँ भगवती लक्ष्मी और भगवान् नारायण सदा विराजमान रहते हैं। उनके साथ उनके चार भुजावाले पार्षद भी रहते हैं। वैकुण्ठलोक भी जरा-मृत्यु आदिसे रहित है। उसके वामभागमें शिवलोक है, जिसका विस्तार एक करोड़ योजन है। वहाँ पार्षदोंसहित भगवान् शिव विराजमान हैं। गोलोकके भीतर अत्यन्त मनोहर ज्योति है, जो परम आह्लादजनक तथा नित्य परमानन्दकी प्राप्तिका कारण है।

योगीजन योग एवं ज्ञानदृष्टिसे सदा उसीका चिन्तन करते हैं। वह ज्योति ही परमानन्ददायक, निराकार एवं परात्पर ब्रह्म हैं । उस ब्रह्म-ज्योतिके भीतर अत्यन्त मनोहर रूप सुशोभित होता है, जो नूतन जलधरके समान श्याम है। उसके नेत्र लाल कमलके समान प्रफुल्ल दिखायी देते हैं। उसका निर्मल एवं सर्वेश्वर हैं, वेद जिनका स्वरूप है, जो वेदोंके बीज, वेदोक्त फलके दाता और फलरूप हैं, वेदोंके ज्ञाता, उसके विधानको जाननेवाले तथा सम्पूर्ण वेदवेत्ताओंके शिरोमणि हैं।

उन भगवान् श्रीकृष्णको मैं प्रणाम करता हूँ। ऐसा कहकर वे नारायणदेव भक्तिभावसे युक्त हो उनकी आज्ञासे उन परमात्माके सामने रमणीय रत्रमय सिंहासनपर विराज गये। जो पुरुष प्रतिदिन एकाग्रचित्त हो तीनों संध्याओंके समय नारायणद्वारा किये गये इस स्तोत्रको सुनता और पढ़ता है, वह निष्पाप हो जाता है। उसे यदि पुत्रकी इच्छा हो तो पुत्र मिलता है और भार्याकी इच्छा हो तो प्यारी भार्या प्राप्त होती है। Vaivarta Purana PDF Book Free

जो अपने राज्यसे भ्रष्ट हो गया है, वह इस स्तोत्रके पाठसे पुनः राज्य प्राप्त कर लेता है तथा धनसे वञ्चित हुए पुरुषको धनकी प्राप्ति हो जाती है। कारागारके भीतर विपत्तिमें पड़ा हुआ मनुष्य यदि इस स्तोत्रका पाठ करे तो निश्चय ही संकटसे मुक्त हो जाता है। एक वर्षतक इसका संयमपूर्वक श्रवण करनेसे रोगी अपने रोगसे छुटकारा पा जाता है। सौति कहते हैं— शौनकजी ! तत्पश्चात् परमात्मा श्रीकृष्णके वामपार्श्वसे भगवान् शिव प्रकट हुए ।

उनकी अङ्गकान्ति शुद्ध स्फटिकमणिके समान निर्मल एवं उज्ज्वल थी। उनके पाँच मुख थे और दिशाएँ ही उनके लिये वस्त्र थीं। उन्होंने मस्तकपर तपाये हुए सुवर्णके समान पीले रंगकी उनके प्रत्येक मस्तकर्म तीन-तीन नेत्र थे। उनक सिरपर चन्द्राकार मुकुट शोभा पाता था। परमेश्वर शिवने हाथोंमें त्रिशूल, पट्टिश और जपमाला ले रखी थी। वे सिद्ध तो हैं ही, सम्पूर्ण सिद्धोंके ईश्वर भी हैं। योगियोंके गुरुके भी गुरु हैं। मृत्युकी भी मृत्यु हैं, मृत्युके ईश्वर हैं, मृत्युस्वरूप हैं और मृत्युपर विजय पानेवाले मृत्युञ्जय हैं।

वे ज्ञानानन्दरूप, महाज्ञानी, महान् ज्ञानदाता तथा सबसे श्रेष्ठ हैं। पूर्ण चन्द्रमाकी प्रभासे धुले हुए- से गौरवर्ण शिवका दर्शन सुखपूर्वक होता है। उनकी आकृति मनको मोह लेती है। ब्रह्मतेजसे जाज्वल्यमान भगवान् शिव वैष्णवोंके शिरोमणि हैं। प्रकट होनेके पश्चात् श्रीकृष्णके सामने खड़े हो भगवान् शिवने भी हाथ जोड़कर उनका स्तवन किया। उस समय उनके सम्पूर्ण अङ्गोंमें रोमाञ्च हो आया था। नेत्रोंसे अश्रु झर रहे थे और उनकी वाणी अत्यन्त गगद हो रही थी। Vaivarta Purana PDF Book Free

महादेवजी बोले- जो जयके मूर्तिमान् रूप, जय देनेवाले, जय देनेमें समर्थ जयकी प्राप्तिके कारण तथा विजयदाताओंमें सर्वश्रेष्ठ हैं, उन अपराजित देवता भगवान् श्रीकृष्णकी मैं वन्दना करता हूँ । सम्पूर्ण विश्व जिनका रूप है, जो विश्वके ईश्वरोंके भी ईश्वर हैं, विश्वेश्वर, विश्वकारण, विश्वाधार विश्वके विश्वासभाजन तथा विश्वके कारणोंके भी कारण हैं, भगवान् श्रीकृष्णकी मैं वन्दना करता हूँ। जो जगत्की रक्षाके कारण, जगत्के संहारक तथा

संवर्त आदिके नामसे विख्यात हैं। महर्षि मार्कण्डेय सात कल्पोंतक जीनेवाले बताये गये हैं; परंतु वह कल्प ब्रह्माजीके एक दिनके बराबर ही बताया गया है। तात्पर्य यह कि मार्कण्डेय मुनिकी आयु ब्रह्माजीके सात दिनमें ही पूरी हो जाती है, ऐसा निश्चय किया गया है। ब्राह्म, वाराह और पाद्म- ये तीन महाकल्प कहे गये हैं। इनमें जिस प्रकार सृष्टि होती है, वह बताता हूँ, सुनिये। ब्राह्मकल्पमें मधु-कैटभके मेदसे मेदिनीकी सृष्टि करके स्रष्टाने भगवान् श्रीकृष्णकी आज्ञा ले सृष्टि रचना की थी।

फिर वाराहकल्पमें जब पृथ्वी एकार्णवके जलमें डूब गयी थी, वाराहरूपधारी भगवान् विष्णुके द्वारा अत्यन्त प्रयत्नपूर्वक रसातलसे उसका उद्धार करवाया और सृष्टि रचना की; तत्पश्चात् पाद्मकल्प में सृष्टिकर्ता ब्रह्माने विष्णुके नाभिकमलपर सृष्टिका निर्माण किया। ब्रह्मलोकपर्यन्त जो त्रिलोकी है, उसीकी रचना की, ऊपरके जो नित्य तीन लोक हैं, उनकी नहीं। सृष्टि- निरूपणके प्रसंग मैंने यह काल-गणना बतायी है और किञ्चिन्मात्र सृष्टिका निरूपण किया है। Vaivarta Purana PDF Book Free

अब फिर आप क्या सुनना चाहते हैं? शौनकजीने पूछा- सूतनन्दन ! अब यह बताइये कि गोलोकमें सर्वव्यापी महान् परमात्मा गोलोकनाथने इन नारायण आदिकी सृष्टि करके फिर क्या किया? इस विषयका विस्तारपूर्वक वर्णन करनेकी कृपा करें। सौतिने कहा- ब्रह्मन् ! इन सब