Click here to Download Vayu Purana PDF in Hindi – संपूर्ण वायू पुराण हिंदी PDF in Hindi having PDF Size 34 MB and No of Pages 1160.
भारतीय जीवन साहित्य के शृंगार ‘पुराण’ अतीत को वर्तमान के साथ जोड़ने वाली स्वर्णिम श्रृंखला है। विश्व साहित्य की अक्षय निधि में अठारह पुराण सर्वश्रेष्ठ अठारह रत्न हैं। प्रतीकवाद, परोक्षवाद और रहस्यवाद से अनुप्राणित ये पुराण हमारे राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन के दर्पण हैं। अपनी सरल सुबोध भाषा और प्रबुद्ध कथानक शैली के कारण अतिप्राचीन होते हुए भी नवीनता और स्फूर्ति उत्पन्न करते हैं।
Vayu Purana PDF Book
Name of Book | Vayu Purana |
PDF Size | 34 MB |
No of Pages | 1160 |
Language | Hindi |
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About Book – Vayu Purana PDF Book
‘पुराण’ यह एक पारिभाषिक शब्द है जिससे यह सहज हो व्यक्त होता है कि पुराण उन ग्रन्थों को कहते हैं, जिनमें सगँ (ईश्वरीय कृति) प्रतिसगं (सृष्टि और प्रलय) वंश, मन्वन्तर, वंश्यानुचरित इन पांच विषयों का समावेश रहता है। पुराणों में परस्पर शैली और भाषा का सामंजस्य होते हुए भी वण्यं विषयों की विशेषता से वैषम्य भी है। इन्हीं विशेषताओं के कारण पुराण, उपपुराण और महापुराण संज्ञाओं से स्वयं विभाजित हैं।
पुराणों की प्राचीनता इतिहास के आलोक में हमारी भारतीय मान्यता पुराणों को वेदों की प्रतिच्छाया सिद्ध करती हुई उन्हें अति प्राचीन मानती है। अथर्ववेद (७१।७।२४) के अनुसार यजुर्वेद के साथ ऋक्, साम, छन्द और पुराण उत्पन्न हुए हैं। बृहदारण्यक (२|४|१०) का मत है कि गीली लकड़ी के संयोग से जलती हुई आग में से जैसे बलग-अलग धुंआ निकलता रहता है उसी प्रकार इस महाभूत के निःश्वास से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथवगिरस, इतिहास, पुराण, विद्या, उपनिषद्, श्लोक, सूत्र, व्याख्यान और अनुध्यान निकले हैं।
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छान्दोग्योपनिषद् के मत से इतिहास और पुराण वेद निकाय में पांचवें वेद हैं। पुराणों के पूर्व रूप पुराणों की कहानी स्वयं पुराण भी कहते हैं। प्रायः सभी पुराण यह स्वीकार करते हैं कि “पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृत, अनंतरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिःसृताः” अर्थात् पुराण सभी शास्त्रों से पूर्व थे पदचात् ब्रह्मा के मुख से वेद निकले। इसका मूल तात्पर्य वृद्ध जनों से श्रुत कथाओं और मनोरंजक कहानियों से है।
पुराणों के अध्ययन से भी यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि पुराण वस्तुतः वैदिक कथाओं, जन तियों एवं सृष्टि, विसृष्टि, प्रलय, मन्वन्तर, आचारवर्णन, राजवंश वर्णन के प्रतीक है। पौराणिक सूतों के कथनानुसार पुराण तत्वज्ञ भगवान् वेदव्यास ने आख्यान, उपाख्यान, गाथा, कल्पशुद्धि के साथ पुराण संहिताओं की रचना की। पुराणों की इस स्वीकृति से सिद्ध होता है कि वेदों की भांति इतस्ततः बिखरे हुए पुराणों को भी संग्रह करके व्यास जी ने अपनी मान्यता के अनुसार उनका संपादन किया।
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वेद की भाँति आदिकाल में ‘पुराणमेकमेवासीत् अर्थात् पुराण एक ही या कालान्तर में पुराणों का विभाजन सूतों द्वारा हुआ। पुराणों में पाठान्तर और प्रक्षेप वेदव्यास द्वारा संपादित पुराण की कथाओं का प्रचार तात्कालिक सूतों द्वारा हुआ। सूत एक जाति या संप्रदाय था जो वंश परम्परा के अनुसार घूमघूम कर कथाओं द्वारा समाज का संशोधन एवं मनोरंजन करता था। विभिन्न सूतों के मुख से उद्गीणं पौराणिक कथायों में कालक्रमानुसार पाठांतर और प्रक्षेप का होना स्वतः सिद्ध है।
कालांतर में स्वायं निरत व्यासों और सूतों ने अपनी-अपनी मान्यता का समावेश किया। धीरे-धीरे पुराण तिल के ताड़ बनाये गये। उनकी शाखा प्रशाखायें उत्पन्न हुई। राजवंशों के वर्णन में दोष और वर्णनात्मक विवर्तन उत्पन्न हुए। सांप्रदायिक घृणा, द्वेष की प्रवृत्तियाँ समाविष्ट हुई। पाठांतर और प्रक्षेप उत्तरोत्तर बढ़ते हो गए फिर भी पुराणों को मौलिकता और वास्तविकता समूल नष्ट न हुई ह समीक्ष्यकारी पाठकों के लिए भ्रम और विवाद का हेतु उत्पन्न हो गया। पुराणों का निर्माण काल
भावनामूलक शोध प्रणाली से व्यतिरिक्त यदि हम तर्क और बुद्धिवाद का सहारा लेकर पुराण रचना- काल पर विचार करते हैं तो प्रथम हमें यह स्वीकार करना पड़ता है, कि पुराणों की रचना विभिन्न समय और वातावरण में हुई है। आधुनिक आलोचक और इतिहासकार पुराणों की रचना का समय ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी भी मानने में सकोच करते हैं। कुछ पुराणों को तो एकदम अर्वाचीन भी मानते हैं। Vayu Purana PDF Book
यह निर्णय स्थूलतया उन घटनाओं को पढ़कर किया जाता है जो वैदिक काल से लेकर यवनकाल किम्बा मरहठा काल और अंग्रेजी राज से संबद्ध हैं। पुराणों की विशृंखलता और अनैतिहासिकता प्रकट करने में दूसरा प्रमाण वंश वर्णन में परस्पर अनुक्रम-भेद है। इसमें संदेह नहीं कि पुराधों में कथानकों का परस्पर सामंजस और वैषम्य विचित्र रूप से है, साथ ही काल भेद भी पाया जाता है।
किंतु जब तर्क की कसौटी पर अन्वीक्षणशक्ति से विचार करते हैं तो इन कारणों से पुराणों की प्राचीनता और ऐतिहासिकता कलंकित इसलिए नहीं होती कि बिखरे हुए पुराण कथानकों को व्यासजी ने मूलसंहिता का रूप दिया फिर उसे अपने शिष्य रोमर्पण को पढ़ाया। रोहमचंण से उनके शिष्य पायन आदि ने अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार विभाजन किया और फिर सूतों द्वारा उन कथाओं का प्रचार] मनमाने ढंग से होने लगा।
शिष्य की इस परम्परा ने पुराण कथाओं को अनियन्त्रित और अमर्यादित बना दिया । भविष्यत् की कमाओं के वर्णन में आपततः संदेह करना निर्मूल है यह सही हो सकता है कि भविष्य की सांकेतिक घटनाओं को अतिरंजित और विकसित बाद में बना दिया गया हो किंतु भविष्यत् की कथाओं पर पुराणों की प्राचीनता पर आक्षेप उचित नहीं है। भविष्य में होने वाले कल्कि अवतार और उससे पूर्व होने वाली समाज की स्थिति के वर्णन की सत्यता से सहसा इनकार इसलिए नहीं किया जा सकता कि घटनाओं की सत्यता उत्तरोत्तर प्रमाणित होती जा रही है। Vayu Purana PDF Book
कुछ भी हो बाजुपुराण, मत्स्यपुराण, विष्णुपुराण और ब्रह्मपुराण का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद उन्हें महाभारतकालीन मानना अस्वीकृत नहीं किया जा सकता । पुराणों के नाम, संख्या और क्रम में मतभेद है। नाम संख्या आदि प्रतिपादक पुराण ही इस संबंध में एक दूसरे से असंगति रखते हैं। विष्णुपुराण में दिए गए पुराणों के नामक्रम के अनुसार बाह्य, पद्म, विष्णु, शिव, भागवत, नारदीय, मार्कंडेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्मववर्त, लिंग, वराह, स्कन्द, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड़ और ब्रह्माण्ड ऐसा क्रम है।
किन्तु इस नामक्रम में वायुपुराण का कहीं भी निर्देश नहीं है। समालोचकों की दृष्टि से वायुपुराण शिवपुराण के अन्तर्गत है या उसी का विकल्प रूप है। बंगला-विश्वकोषकार ने दोनों नाम से एक ही शिवपुराण की विषय-सूची दी है। किन्तु आनन्दाश्रम संस्कृत ग्रंथावली में छपे हुए वायुपुराण की विषयसूची शिवपुराण के अन्तर्गत दी हुई वायवीय संहिता की विषयसूची से भिन्न है।
इसलिए शिवपुराण के अन्तर्गत वायुपुराण को मानना ठीक नहीं हाँ शिवपुराण का विकल्प रूप मानने से वायुपुराण की गणना अष्टादश पुराणों की क्रम संख्या सूची में की जा सकती है। मत्स्यपुराण में दी हुई पुराणों की उपक्रमणिका में शिवपुराण के स्थान पर वायुपुराण का जो उल्लेख है, उससे वायुपुराण के नाम पढ़ने का कारण स्पष्ट होने के साथ ही उसका पुराण होना भी सिद्ध होता है। Vayu Purana PDF Book
पुराणों के आन्तरिक रहस्य पुराणों को वेदों के साथ प्रादुर्भूत ईश्वरीय निःश्वास तर्कहीन श्रद्धा अवश्य स्वीकार करती है किन्तु बुद्धिवादी तार्किक अपनी अन्वीक्षण शक्ति द्वारा जब वेद और पुराण का तुलनात्मक अध्ययन करता है तो उसे भी पुराणों के आन्तरिक रहस्य और वेदों के साथ पुराणों के सम्बन्ध स्पष्ट ज्ञात हो जाते हैं। श्रीमदभागवत (१२४१२८) में लिखा है कि “भारतव्यपदेशेन ह्याम्नायावंश्च दर्शितः ” अर्थात् पुराणों में भारत के इतिहास के ब्याज से वेदों का रहस्य खोला गया है।
इसी आशय को स्वीकार करते हुए महाभारत में भी स्पष्ट कर दिया गया है कि “इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत्” अर्थात् इतिहास पुराणों से वेदों का मर्म जाना जाता है। यदि हम वेदों का वैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं, तो सचमुच उनमें ऐतिहासिक सामग्री के स्थान पर भूगोल और खगोल का ही प्रमुख वर्णन है। वेदों में जो ऐतिहासिक सामग्री बतायी जाती है।
वह अधिकतर पुराणों के कारण ही वस्तुतः वेदों के चमत्कारपूर्ण आलंकारिक वर्णनों को पुराणकारों ने ऐतिहासिक पुरुषों और घटनाओं के साथ मिलाकर उनका रहस्य उस साधारण जनता तक पहुँचाया जो वेदों की सूक्ष्म, गंभीर, रहस्यमयी बातें नहीं समझ सकती थीं और जो “स्त्रीशूद्रद्विजबन्धूनां त्रयी न श्रुतिगोचरा” की व्यवस्था से वेद पढ़ने और सुनने के अधिकारी नहीं दे इस चातुर्य का परिणाम वेदों के हक में बुरा सिद्ध हुआ। Vayu Purana PDF Book
लोगों में यह भ्रांत धारणा समा गयी कि वेदों में पुरूरवा नहुष, ययाति, गंगा, यमुना, व्रज, अयोध्या आदि वंशों, नदियों, स्थानों और युद्धों का वर्णन है। उदाहरण के लिए विश्वामित्र और मेनका वेद के चामत्कारिक पदार्थ हैं। इधर दुष्यन्त और शकुन्तला पौराणिक मनुष्य हैं। पर दोनों को मिलाने से भरत को इन्द्र के यहाँ जाना पड़ा। इन्द्र भी आकाशीय चामत्कारिक पदार्थ।
ऐसी स्थिति में भरत और दुष्यन्त को, मेनका और विश्वामित्र के साथ जोड़ कर यह भ्रम उत्पन्न करा दिया गया कि वेदों में भरत वंश का वर्णन है, किन्तु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इन वैदिक ऋचाओं का यदि विश्लेषण किया जाता है तो लेशमात्र भी मानुषी वर्णन नहीं मिलता। पुराणों की वंशावली एक तो महाभारत काल में पूर्व की है और दूसरी महाभारत के बाद की है। प्रथम श्रेणी की वंशावलियों में वेदों के चामत्कारिक वर्णनों के अधिक अंश तत्कालीन इतिहास लिखने में ग्राह्य हुआ है।
दूसरे प्रकार की वंशावलियों में वैदिक आख्यानो और चमत्कारों के बहुत कम अंश ग्रहण कर व्यक्तियों के इतिहास लिखे गए हैं। जो आगे चल कर धीरे धीरे एक में मिला दिये गए और आज हमारे लिए एक गोरखधंधा बन रहे हैं। सृष्टि प्रक्रिया में ब्रह्माण्ड और विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय का वर्णन युक्ति-युक्त ढंग से किया गया है। तर्क और कल्पनाओं को भी प्रश्रय प्रदान किया गया है। Vayu Purana PDF Book Download
भुवन विश्वास में तत्कालीन भूगोल का समीक्ष्यकारी वर्णन है। पाशुपतयोग, परमाश्रय विधि, योग-निरूपण आदि अध्यायों द्वारा तत्कालीन प्रचलित और ग्राह्य योग क्रियाओं, रूढ़ियों और सिद्धियों को व्यक्त किया गया है। नाथ पंथियों द्वारा स्वीकृत योग मार्ग का प्रकृत स्वरूप उस समय था ऐसा ज्ञात होता है। सम्भवतः बौद्ध परम्परा ने उसी को अपनाकर उसको भ्रष्ट बना दिया था जिसका परिष्कृत रूप पुनः नाथपथ में देखने का मिला।
छियासी और सतासी अध्याय में गीतालंकार का वर्णन कर संगीतशास्त्र के स्वर, राग, मूच्र्छना आदि का सामान्य परिचय दिया गया है। शव पुराण होते हुए भी तीन अध्यायों में (९६,९७,९८) विष्णु माहात्म्य का वर्णन कर इस पुराण ने अपनी पक्षपातहीनता का परिचय दिया है। इसी व्याज से श्रीकृष्ण चरित्र का भी वर्णन हो गया है। श्राद्ध, श्राद्ध माहात्म्य, श्राद्धकाल, श्राद्धीप सामग्री और विधियों का वर्णन भी किया गया है।
प्रायः प्रत्येक पुराणों में श्राद्ध का वर्णन है, क्योंकि श्राद्ध हिन्दू धर्म का अनिवार्य अंग है। इस श्राद्ध वर्णन के कतिपय अध्याय मत्स्यपुराण के श्राद्ध वर्णन से मिलते जुलते है। केवल श्लोकों में थोड़ा सा परिवर्तन किया गया है। आचार, आंधम ओरवर्ण व्यवस्था का भी संक्षेप में वर्णन है गयाबाद्ध महिमा ग्रन्थमध्य और ग्रन्थान्त में दो बार दी गई है। राजवंश वर्णन अधिक प्रामाणिक है केवल निन्यानवे अध्याय अधिक लम्बा है जो कि प्रक्षिप्त जान पड़ता है। Vayu Purana PDF Book Download
मत्स्यपुराण में इसके सम्पूर्ण श्लोकों की संख्या चौबीस हजार कही गई है परन्तु इसके एक सौ बारह अध्यायों की श्लोक गणना में नव कम ग्यारह हजार है। अतः मत्स्य पुराण के अनुसार तेरह हजार और इस पुराण के अनुसार बारह हजार श्लोकों का पता नहीं चलता। इसके चौथे अध्याय में जहाँ पुराणों की संख्या या नामावली दी गई है वहाँ ‘एवमष्टादशोक्तानि पुराणानि बृहन्ति च पुराणेष्वेषु बहवो धर्मास्ते निरूपिताः (अ० १०४ श्लोक ११) अष्टादश पुराण तो कहा गया परन्तु गणना में सोलह ही होते हैं।
अतः जान पड़ता है कि बीच में दो इलोक छूट गए हैं जिनमें दो पुराणों का उल्लेख रहा होगा। यहां यह विचारणीय है कि एक सौ चार अध्याय में ग्रन्थ समाप्त सा जान पड़ता है, क्योंकि उसमें ग्रन्थ माहात्म्य दिखा कर उपसंहार किया गया है। उसके बाद के गया माहात्म्य के आठ अध्याय अलग से जोड़े गये से जान पड़ते हैं। इन आठ अध्यायों को प्रक्षिप्त कहा जाता है क्योंकि बीच में भी गया का माहात्म्यं लिखा गया है ।
भौगोलिक और ऐतिहासिक तथ्य प्रत्येक पुराणों में सर्ग का वर्णन किया गया है। इस प्रसंग में पृथ्वी ग्रहों, उपग्रहों, नक्षत्र और ब्रह्माण्ड निर्माण का जो क्रम है वह प्रायः सम्पूर्ण पुराणों में एक सा है। सप्तद्वीपा और सप्त समुद्रा पृथ्वी का वर्णन भी सब में पाया जाता है। द्वीपान्तर्गत वर्षों का वर्णन, उनको सीमा और विस्तार प्रमाण के विषय में यही कहा प्रत्येक पुराणों में सगं का वर्णन किया गया है। Vayu Purana PDF Book Free
इस प्रसंग में पृथ्वी ग्रहों, उपग्रहों, नक्षत्र और ब्रह्माण्ड निर्माण का जो क्रम है वह प्रायः सम्पूर्ण पुराणों में एक सा है। सप्तद्वीपा और सप्त समुद्रा पृथ्वी का वर्णन भी सब में पाया जाता है। द्वीपान्तर्गत वर्षों का वर्णन, उनको सीमा और विस्तार प्रमाण के विषय में यही कहा जा सकता है कि ये आधुनिक परिमाणों से मेल नहीं रखते। जम्बू द्वीप, प्लक्ष द्वीप आदि द्वीपों का नामकरण आज के भौगोलिक नामों के प्रतिकूल है।
यद्यपि उस समय के ऋषि मुनि अधिकतर अरण्यवासी थे, पृथ्वी परिक्रमा के भी आख्यान पुराणों में आये हैं तो भी जो वर्णन दिया गया है वह काल्पनिक जान पड़ता है। जो ऋऋषि दिव्यदृष्टि संपन्न थे, चन्द्रलोक तक यात्रा करते थे, उनके मुख से भूमण्डल का यह परिमाण या द्वीपों का ऐसा वर्णन कैसे हो सकता है ? सम्भव है ऐसा वर्णन जनयति के आधार पर किया गया हो अथवा उस समय की भौगोलिक सीमा कुछ दूसरी रही हो।
योजन परिमाण के विषय में तो यही कहना पड़ता है कि पुराणों के योजन या तो कोई छोटे परिमाण थे या ये वर्णन अतिरंजित हैं। इस पुराण में समग्र भूवलय पर स्थित देशों का वर्णन किया गया है। वहाँ के निवासियों के आचार विचार, स्वभाव, सभ्यता, रुचि और भौगोलिक स्थिति (पर्वत, नदी) आदि का वर्णन भी है भारतवर्ष से अन्य देशों के नामों के अप्रचलित होने के कारण उनके विषय में कुछ कहना असंगत है। यहाँ केवल भारतवर्ष और इसके सीमावर्ती देशों के विषय में ही कहा जा सकता है। यह पुराण भारतवर्ष को जम्बू द्वीप का मध्य स्थान मानता है। जम्बू द्वीप सम्भवतः एशिया का प्राचीन नाम जान पड़ता है। Vayu Purana PDF Book Free